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बिन तुम्हारे मैं अधूरा

अश्रु गण साथी रहे

मेरे ह्रदय की पीर बनकर !

रात चुभ जाती हमेशा तीर बनकर !

मैं भटकता नीर बनकर !

तुम सुनहरे स्वप्न सी हो

मैं नयन हूँ !

बिन तुम्हारे मैं अधूरा

और मेरे बिन तुम्हारा अर्थ कैसा !

जीत की उम्मीद से प्रारंभ होकर

निज अहम के हार तक का ,

प्रथम चितवन से शुरू हो प्यार तक का ,

प्यार से उद्धार तक का

मार्ग हो तुम !

मै पथिक हूँ !

निहित हैं तुझमे सदा से

कर्म मेरे

भाग्य मेरा,

और सार्थकता तुम्हारी

कौन है मेरे अलावा !

 

मेरे माथे का तिलक हो

कौन कहता धूल हो तुम !

कीच में हो किन्तु पावन फूल हो तुम !

रंग की सुन्दर मरीचिका से परे

तुम गंध हो !

मैं पवन हूँ !

है तेरे सानिध्य से पहचान मेरी ,

और मेरे बिन

तुम्हारा भी कहाँ अस्तित्व होगा !

तुम विभा हो

और मैं  

तेरा अरुण हूँ !

कर्म मैं विश्राम हो तुम !

मैं नही तो कौन तुमको मान देगा

तुम न हो तो

कौन देगा अर्घ्य मुझको !

 

 

......................................अरुन श्री !

 

 

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 25, 2012 at 5:53pm

कर्म मैं विश्राम हो तुम !

मैं नही तो कौन तुमको मान देगा

तुम न हो तो

कौन देगा अर्घ्य मुझको !

सुन्दर रचना अरुण जी , भावों का बढ़िया सम्प्रेषण , बधाई आपको |

Comment by Arun Sri on February 25, 2012 at 10:03am

धन्यवाद आदरणीय !

Comment by satish mapatpuri on February 25, 2012 at 12:04am

रात चुभ जाती हमेशा तीर बनकर !

मैं भटकता नीर बनकर !

तुम सुनहरे स्वप्न सी हो

मैं नयन हूँ !

अरुण जी ........................ वाकई................... खुबसूरत ख्याल ................... खुबसूरत कहन. बधाई
Comment by Arun Sri on February 23, 2012 at 10:03am

राजेश कुमारी मैम , रचना आपके ह्रदय तक पहुँच सकी सार्थक हो गई !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 23, 2012 at 8:35am

और मेरे बिन

तुम्हारा भी कहाँ अस्तित्व होगा !

तुम विभा हो

और मैं  

तेरा अरुण हूँ !वाह अतिसुंदर बहुत प्रभावशाली रचना

Comment by Arun Sri on February 22, 2012 at 1:32pm

सराहना के लिए धन्यवाद आशा मैम !

Comment by asha pandey ojha on February 22, 2012 at 1:18pm

 इसी पूरकता का नाम जिन्दगी है .. हम सब एक दूजे से बने एक दूजे सें गूंथे .. सार्थकता भी तो इसी में है जीवन की .. प्रभावशाली रचना के लिए बधाई अरुन श्री जी 

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