For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस मुकम्मल जहाँ में

यादों में जी कर उसकी खुद को परेशान  कर रहें है
अब यही काम सरे आम कर रहे हैं 
होते थे पहले औरों से,
 मगर अब खुद ही को बर्बाद कर रहे हैं 

आँखों में उसकी जीते थे 
सांसों को उसकी छुते थे
राहों से उनकी गुज़रते थे
चाहों में उनकी संवरते थे

तनहा ही तनहा हैं  अब तो हम  हर घडी
मुश्किल से पाई  थी मंजिल आगे खड़ी   
छुआ जो हमने तो मंजिल को दूर हुई 
दुआ अब इस दिले से बस यही निकली ............

ना चाहतें हों ,ना हसरतें हों , ना आरज़ू हो  इस मुकम्मल  जहाँ में 
ना ख्वाहिशें हों , ना दिलबरी हो , ना दिलजले  हों इस मुकम्मल जहाँ में 

अधूरा सा ख्वाब जो टूटा  था 
तेरी ही यादों ने लूटा था 
रिश्तों की डोर जो टूटी थी
तेरे ही हाथों वो उलझी थी



तेरे बिना तनहा रातें  पहले भी होती  थी, 
गुज़रकर वो रातें  सवेरा  बनकर  आती  थी 
करवटों में रातें गुज़रती है अब तो,
नींदें भी गुम सी  अंधेरों में है हर पल 
गाती है अब यही फ़साना ........

ना दोस्ती हो , ना दिलकशी हो ना , ना फासले हों इस मुकम्मल जहाँ में 
ना सादगी हो ,  ना आशिकी हो , ना  टूटे दिल फिर इस मुकम्मल जहाँ में 

यादों में जी कर उसकी खुद को परेशान  कर रहें है
अब यही काम सरे आम कर रहे हैं 
होते थे पहले औरों से,
 मगर अब खुद ही को बर्बाद कर रहे हैं 

Views: 460

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rohit Dubey "योद्धा " on May 30, 2012 at 7:26pm

Thanx a lot Pradeep Jee

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 30, 2012 at 4:11pm
रोहित   जी, सादर 
अधूरा सा ख्वाब जो टूटा  था 
तेरी ही यादों ने लूटा था 
रिश्तों की डोर जो टूटी थी
तेरे ही हाथों वो उलझी थी
 बधाई.
 
Comment by Rohit Dubey "योद्धा " on May 28, 2012 at 11:39pm

Thanx a lot Rekha jee

Comment by Rekha Joshi on May 28, 2012 at 9:36pm

Rohit ji ,

अधूरा सा ख्वाब जो टूटा  था 

तेरी ही यादों ने लूटा था 
रिश्तों की डोर जो टूटी थी
तेरे ही हाथों वो उलझी थी,sundr bhaav ,bahut bahut badhai
Comment by Rohit Dubey "योद्धा " on May 28, 2012 at 8:51pm

lakh lakh dhanyawad Albela Khatri  jee

Comment by Albela Khatri on May 28, 2012 at 9:31am

bahut khoob kaha  Rohit Dubey ji...........badhaai

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service