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,,,,,,,,,ख़ुदा जानॆं ,,,,,,,,
=================
क्या था कल क्या आज है, ख़ुदा जाने !!
छुपा दिल मॆं  क्या राज़ है, ख़ुदा जाने !!१!!

हलचल बहुत है,संसद की गलियॊं मॆं,
किस खेल का आगाज़ है, ख़ुदा जाने !!२!!

बॆटॆ नॆं लूटीं अस्मतॆं,खुद नॆं मुल्क लूटा,
फ़िर भी क्या उसकॊ नाज़ है,खुदा जानॆ !!३!!

डर है इस बात का,कफ़स मॆं कबूतर है,
उसकी रखवाली मॆं बाज है,ख़ुदा जाने !!४!!

चुन चुन कॆ सभी नॆं, भॆजा है जिसकॊ,
बन कॆ गिरा वही गाज़ है, ख़ुदा जानॆ !!५!!

ज़िंदा-दिली रास, आती नहीं उसकॊ,
वॊ कम-जर्फ़ मिज़ाज है, ख़ुदा जानॆ !!६!!

हमॆं अपनॆ हाल पॆ,रहनॆ दॊ नॆता जी,
हमारॆ जीनॆ  का अंदाज़ है,ख़ुदा जानॆ !!७!!

इक ख़ता की लाखॊं मुआफ़ी मांगीं,
बॆग़म फिर भी नाराज़ है,ख़ुदा जानॆ !!८!!

खटास आनॆ लगी है, अब दोस्ती मॆं ,
बांधॆ कौन सा लिहाज़ है,ख़ुदा जानॆ !!९!!

अज़ब दस्तूर है,भाई सियासत का,

बहरॆ-गूँगॆ कॆ सर ताज़ है,ख़ुदा जानॆ !!१०!!

 दीवार मॆं चुनवा दॊ, मगर बॊलॆगी,
यॆ "राज" की आवाज़ है, ख़ुदा जानॆ !!११!!

    कवि-राज बुन्देली
    ०६/१२/२०१२

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Comment by लतीफ़ ख़ान on December 7, 2012 at 8:30pm

मान्यवर ,, पुष्यमित्र एवं राज बुन्देली साहब ,, उम्दा ख्यालात से सजी आप दोनों की रचनाओं की मैं कदर करता हूँ ,,बधाई ,, लेकिन ग़ज़ल लिखने से पहले उसके शिल्प को जानना भी अति आवश्यक है कृपया किसी एक बहर को लेकर उसके वज़न के हिसाब से ग़ज़ल लिखी जाए तो बेहतर होगा ,,,आप काफ़िये पर भी ध्यान दीजिये ,,, मसलन,,,पायें, आजमायें , सताएं के साथ निगाहें का प्रयोग ठीक नहीं, वैसे ही ,,,राज़ , आगाज़ , नाज़ , आवाज़ के साथ आज और ताज का इस्तेमाल ठीक नहीं लगता ,,, उम्मीद है ग़ज़ल में इन चीज़ों का ख्याल रखेंगे ...

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 7, 2012 at 12:11pm
सुन्दर सामयिक रचना बढ़ी राज बुन्देली जी-
 
नेता के मन में क्या राज छुपा है खुदा जाने 
उसके बगल में छुरी सी कौन है खुदा जाने । 
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2012 at 11:30am

वाह राज साहब क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही है आज की बारीकियों को बयां करने का अंदाज बेहद उम्दा है आपका बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

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