बह रही थी एक नदी मेरे सपने में
रह गयी फिर भी प्यासी सपने में
जी रही थी इस दुनिया में मगर
देखती थी दूसरी दुनिया सपने में
करती थी इंतेजार उसका दिनभर
आता था जो आंसू पोछने सपने में
यकीन था आएगा वो पूरा करने
कर गया था वादे, जो सपने में
ढूढती हूँ एक वही चेहरा भीड़ में
बस गया था अक्श जिसका सपने में
काश ।अब सूरज ना निकले कभी
'शुभ' देखती रहे हरवक्त उसे सपने में
Comment
श्री मनोज नौटियाल जी , आपकी सराहना हेतु बहुत बहुत धन्यवाद
सुन्दर भाव , शुभ्रा जी शुभकामनायें
स्वागत है आदरणीया |
आदरणीय बागी जी सराहना हेतु धन्यवाद, आपकी अभिव्यक्ति का इंतज़ार था मुझे
अच्छी रचना आदरणीया शुभ्रा जी, बधाई |
अनंत जी मेरी रचना अच्छी लगी आपको , धन्यवाद
शुभ्रा जी सपने ही सपने में अपने को आपने बहुत ही सुन्दरता के साथ व्यक्त किया है, सुन्दर रचना हार्दिक बधाई .
आदरणीय सतीश जी शुक्रिया
काश ।अब सूरज ना निकले कभी
'शुभ' देखती रहे हरवक्त उसे सपने में
वाह शुभ्रा जी वाह .... कमाल की अभिव्यक्ति . आपके सपने ने तो मुझे भी सपनों की दुनिया में ला दिया . सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई
अन्वेषा जी शुक्रिया
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