For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फूलों ने जब खिलना है तशीर मुताबिक
फेलेगी  खुशबु भी तब समीर मुताबिक

कर ले, कह ले, कुछ भी ये हक है तेरा
कलम लिखेगी जब,अपनी जमीर मुताबिक

यूँ तो सपने हजारों तेरे मन में हें, 
याद करेंगे लोग पर तदबीर मुताबिक

साथ निभाएँगे कब तक पंख जो मंगवें, 
तुम कब उड़ोगे न खुद की जमीर मुताबिक

शख्स जिसका उम्र भर घर ना हुआ था अपना
ऐसा मिलेगा  जब भी  तो  फकीर मुताबिक

चाल ढाल मेरी भी मुझ को समझ ना आई
चलता रहाँ हूँ मैं भी राहगीर मुताबिक

यूँ ही भाग भाग में उसकी तरफ था  आया
प्यास न जब थी मेरी उस के नीर मुताबिक

Views: 539

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on April 2, 2013 at 9:40pm

आदरणीय मोहन जी, जहां तक मुझे लगता है मात्रा गणना कुछ इस प्रकार होगी।

फू(2)लों(2)  ने(2) जब(2) खिल(2)ना(2) है(2) त(1)शी(2)र(1) मु(1)ता(2)बिक(2)

आगे आपको गुरूजन मार्गदर्शन प्रदान करेंगे। मैं भी अभी सीख ही रहा हूं।

सादर!

Comment by मोहन बेगोवाल on April 2, 2013 at 8:21pm

गुरुजनों और दोस्तों की तरफ से मेरे प्रति स्नेह दिखाने के लिए धन्यवाद में इस रचना को फेलुन बहर में कहने की कोशिश की है, क्या सफल हो पाया हूँ ? 

२ २     २ २    २ २    २  २   २   २  २ 

फूलों  ने जब खिलना है तशीर मुताबिक

फेले गी खुश बू भी तो समीर मुताबिक

कर ले कह ले कुछ भी ये हक है तेरा

कलम लिखेगी जब,अपनी जमीर मुताबिक

यूँ तो लाखों सपने पाले होंगे ,पर

याद रखेगी दुनिया तदबीर मुताबिक

साथ निभाएंगे कब तक मंगवे पंख तेरे

कब उड़ना है मन के पंछी जमीर मुताबिक

सख्स वे जिस का घर ना था कोई अपना

ऐसा सख्स जब मिले तो फकीर मुताबिक

चाल ढाल जब मेरी मुझ को समझ न आई

चलता मैं भी रहा था राहगीर मुताबिक

यूँ ही भाग भाग हम ढूंड रहे थे उसको

वो भी, ना हम भी रहे उस पीर मुताबिक 

Comment by बृजेश नीरज on April 2, 2013 at 4:38pm

आदरणीय मोहन जी, जैसा कि गुरूजनों ने कहा आप उसका अनुपालन करें। सुधार स्वयं आने लगेगा। आपने जो गज़ल पोस्ट की है उसका वज़्न बताएं। इससे आपको भी अपनी गलती का एहसास होगा तथा औरों को भी आकलन में सुविधा होगी। यह एक प्रक्रिया है अपनी रचना को तौलने की।
सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 2, 2013 at 4:28pm

प्रस्तुत प्रविष्टि पर अपनी पहली ही टिप्पणी में हमने आपसे बोल्ड फ़ौण्ट मे निवेदन किया है. आप उसका उत्तर देंगे तो स्वयं आपको अपना उत्तर मिलने लगेगा, आदरणीय.

दूसरे, इसी पेज पर सबसे नीचे ग़ज़लों से संबन्धित कुछ लिंक दिये गये हैं. आप उन पोस्ट को देखें. ग़ज़लों पर आधारभूत जानकारियाँ अवश्य प्राप्त होंगीं. श्रीमान, ऐसे क्या साझा किया जाय ?

सादर

Comment by मोहन बेगोवाल on April 2, 2013 at 4:15pm

आप की कही बातों  पे अपनी तथा शकित के साथ अम्ल करने की कोश्शि करुगां

कृपा इस रचना में गलतियों की निशानदेही के दीजिए , धन्यवाद होगा

 फूलों ने जब खिलना है तशीर मुताबिक
फेलेगी  खुशबु भी तब समीर मुताबिक

कर ले, कह ले, कुछ भी ये हक है तेरा
कलम लिखेगी जब,अपनी जमीर मुताबिक

यूँ तो सपने हजारों तेरे मन में हें, 
याद करेंगे लोग पर तदबीर मुताबिक

साथ निभाएँगे कब तक पंख जो मंगवें, 
तुम कब उड़ोगे न खुद की जमीर मुताबिक

शख्स जिसका उम्र भर घर ना हुआ था अपना 
ऐसा मिलेगा  जब भी  तो  फकीर मुताबिक

चाल ढाल मेरी भी मुझ को समझ ना आई
चलता रहाँ हूँ मैं भी राहगीर मुताबिक

यूँ ही भाग भाग में उसकी तरफ था  आया
प्यास न जब थी मेरी उस के नीर मुताबिक


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 2, 2013 at 3:36pm

//पर यहाँ तो विधार्थी हूँ ,जो सीखना है गुरु जनों से //

बिना तैयारी के आये किसी विद्यार्थी को आप भी एक गुरुजी के तौर पर ’पहले पढ़ के आओ..’ ही कहते होंगे, आदरणीय. ताकि विषय की आधारभूत जानकारियों से वह वाकिफ़ हो जाय.

आपको इस मंच पर धैर्य से सुना गया और आपकी पोस्ट को एप्रुवल भी मिला है. इतने से समझिये कि आपके रचनाकर्म का भरपूर सम्मान हुआ है. अब अपेक्षा है कि आप स्वयं अपनी रचनाओं का सम्मान करें. उन्हें उचित समय, शिल्प, तथ्य तथा अध्ययन दें.

सादर

Comment by मोहन बेगोवाल on April 2, 2013 at 3:22pm

दोस्तों बहुत धन्यवाद,

प्राधापक हूँ,  मालूम है केसे सिखाना होता है,पर यहाँ तो विधार्थी हूँ ,जो सीखना है गुरु जनों से 

Comment by बृजेश नीरज on April 1, 2013 at 5:29pm

मोहन जी आपका कहन बहुत अच्छा है। गुरूजनों के मार्गदर्शन अनुसार कार्य करें। आप स्वयं परिवर्तन महसूस करेंगे। मैं स्वयं यहां विद्यार्थी हूं और यहां आने के बाद से अपने में काफी सुधार महसूस कर रहा हूं। अभी प्रयासरत ही हूं। आइए मैं और आप दोनों साथ साथ सीखते हैं।

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 1, 2013 at 5:24pm

आदरणीय मोहन जी आपका प्रयास सराहनीय है किन्तु अगर ग़ज़ल के लिहाज़ से आपकी ग़ज़ल को जांचा जाए तो आपकी ग़ज़ल ख़ारिज मानी जायेगी, अन्य आदरणीय गुरुदेव श्री ने कह ही दिया है उनकी बातों पर अमल करें. मेरी बातों को अन्यथा न लें यहाँ सीखना और सिखाना यूँ ही परस्पर एक दुसरे के सहयोग से चलता रहता है. आप इस मंच पर आयें हैं तो यह सुधार भी हो जायेगा. सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 1, 2013 at 1:30pm

आदरणीय मोहन जी, आपसे सादर अपेक्षा है कि अपनी ग़ज़लों के मिसरों का वज़्न अवश्य साझा करें जैसा कि इस मंच पर अक्सर अन्य प्रबुद्ध ग़ज़लकार करते हैं.

दूसरे, आपके मतले के अनुसार आपकी इस ग़ज़ल का काफ़िया शीर तथा रदीफ़ मुताबिक तय हुआ है. इस लिहाज से ग़ज़ल के अश’आर के काफ़िये ग़लत हैं.

ग़ज़ल संबंधी कई पोस्ट इस मंच पर हैं. ग़ज़ल के व्याकरण की जानकारी के लिए एक विशेष समूह ही है. कृपया आधारभूत जानकारियों के लिए उनका पहले अध्ययन कर लें तभी आपका प्रयास सार्थक तथा समुचित होगा.

शुभेच्छाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
14 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है हर हाल में  दीप के भाव जलना है हर हाल में   हर अँधेरा निपट…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत धन्यवाद"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service