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फिलहाल कुछ ऐसा कीजिए
चुन के कांटे फूल धर दीजिए


और कुछ संभव हो या ना ,
छत को चोग से  भर दीजिए

बहुत अंधेरो की बोई फसल
रौशनी की भी मगर बीजिए

तीसरा नेत्र खोल के रखिए
चाहे दोनों आंखे भर लीजिए

हर कोई फोटो फ्रेम लगाए,
दिल में जगह मगर दीजिए 

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Comment

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Comment by बृजेश नीरज on April 2, 2013 at 10:01am

आदरणीय शुभ्रांशु जी ने जिस तरह से नए सदस्यों पर उंगली उठा दी है वह उचित नहीं है। वे स्वयं यदि पुराने सदस्य हैं तो शायद यह भी अवगत होंगे कि यहां किसी भी सदस्य पर आक्षेप करने की प्रथा नहीं है, जैसा मैंने अभी तक समझा है।
रही बात रचनाकार की गलती और उसकी प्रशंसा की तो मुझे नहीं लगता कि यहां किसी ने झूठी वाहवाही की है। मैंने अपनी पहली टिप्पणी में ही रचनाकार को गज़ल की कक्षा की लिंक दी और उसे पढ़ने को कहा है।
मुझे लगता है कि बेहतर यह होता कि शुभ्रांशु जी ने इस रचना में रचनाकार द्वारा की गयी गलती की तरफ इशारा किया होता जैसा अन्य गुरूजन किया करते हैं।
यहां यह भी ध्यान देने की बात है कि यदि रचनाकार कुछ सीखना चाहता है तो उसे अपनी रचना पोस्ट करने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं बचता। छोटी छोटी बातें आपसे कोई पूछना चाहे तो आपसे कोई कैसे पूछे शुभ्रांशु जी। मैंने कुछ प्रश्न पुराने सदस्यों से पूछना चाहा उनका उत्तर तो आज तक मुझे नहीं मिला। प्रश्न जस के तस उसी जगह पोस्ट हैं। आपने भी उन प्रश्नों का उत्तर देने की अभी तक जहमत नहीं उठायी। गुरूजनों द्वारा ही यह निर्देश दिया गया कि इस तरह से समस्या का समाधान नहीं होगा। उनका कहना था कि आप अध्ययन करिए फिर कोई रचना लिखने का प्रयास करिए जिससे कमियों का पता चल सके।
यह बेहतर भी होता है। अध्ययन करने के उपरान्त नियमों को ध्यान में रखकर कोई रचना लिखी जाए। फिर गुरूजन उस पर जो टिप्पणी करते हैं उससे कमियां भी पता चलती हैं और सुधार की संभावना भी बनती है।
आशा है नए और पुराने का द्वंद यहां प्रारम्भ नहीं होगा।
सादर!

Comment by Shubhranshu Pandey on April 2, 2013 at 9:42am
मैं ग़ज़ल की महीनी नहीं जानता. लेकिन यह अवश्य है कि यह ग़ज़ल नियमानुसार कच्ची है. कोरी वाहवाही करने वाले इस साइट के नये सदस्य इस साइट के उद्येश्य या गहनता की अनदेखी कर रहे हैं. इस वाहवाह से किसका भला होने वाला है ? ग़ज़लकार द्वारा ग़ज़ल पोस्ट करने या करते जाने की अपेक्षा अच्छा यह होता कि वे इसी साइट पर ग़ज़ल की कक्षा को ज्वाइन करते, ग़ज़ल पर कई पोस्ट हैं उन्हें पढ़ते और तब प्रयास करते. यहाँ ग़ज़लों के कई जानकार हैं उनसे ग़ज़ल पोस्ट करने से पहले पूछ लिया जाता या ग़ज़ल पर सलाह लेली जाती.
उत्साहवर्धन जरूरी है लेकिन ऐसी बिना मतलब की वाहवाही तो किसी नये रचनाकार को बहकाना हुआ. और ओ बी ओ के स्पेस को जाया करना हुआ.
आपके पोस्ट को एप्रुवल मिला है उसका रचनाकार महोदय अर्थ समझेंगे और बार-बार एक ही गलती वाली रचनाएँ पोस्ट नहीं करेंगे
धन्यवाद
Comment by बृजेश नीरज on April 1, 2013 at 8:24pm

मोहन जी मैं सदैव आपके साथ हूं बल्कि यहां का हर सदस्य आपके साथ है। बस प्रयास जारी रखिए।

Comment by SALIM RAZA REWA on March 27, 2013 at 6:39pm
फिलहाल कुछ ऐसा कीजिए
चुन के कांटे फूल धर दीजिए ....accha hai prayas karte rhe
Comment by मोहन बेगोवाल on March 26, 2013 at 4:04pm

भाई ब्रजेश जी ,

धन्यवाद, पूरी कोशिश करेंगे समझने की ,दोस्तों का साथ भी जरूरी 

Comment by बृजेश नीरज on March 26, 2013 at 1:10pm

कृपया इस लिंक का लाभ उठाएं!

http://www.openbooksonline.com/group/kaksha
होली की शुभकामनाएं!

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