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परेशां है समंदर तिश्नगी से - ग़ज़ल

परेशां है समंदर तिश्नगी से 
मिलेगा क्या मगर इसको नदी से

अमीरे शहर उसका ख़ाब देखे  

कमाया है जो हमने मुफलिसी से

 

पुराना मस्अला ये तीरगी का 
कभी क्या हल भी होगा रोशनी से 

यहीं तो खुद से खा जाता हूँ धोका 
निभाना चाहता हूँ मैं सभी से 

नदी वाला तिलिस्मी ख़्वाब टूटा 
भरा बैठा हूँ अब मैं तिश्नगी से 

भुला बैठे जो रस्ता उस गली का  
गुज़रना हो गया किस किस गली से

 

खुशामद भर है जो महबूब की तो,  
मुझे आजिज समझिए शाइरी से

 

पुराना है मेरा लहज़ा यकीनन

मगर बरता है किस शाइस्तगी से

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by वीनस केसरी on May 2, 2013 at 12:28am

vijay nikore ji  HARDIK AABHAR

Comment by vijay nikore on April 29, 2013 at 7:05pm

बहुत ही उम्दा गज़ल के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by वीनस केसरी on April 28, 2013 at 2:31pm

भावना जी,

हार्दिक आभारी हूँ 

Comment by भावना तिवारी on April 28, 2013 at 2:26pm

भुला बैठे जो रस्ता उस गली का  
गुज़रना हो गया किस किस गली से..............पुराना है मेरा लहज़ा यकीनन

मगर बरता है किस शाइस्तगी से........SADAA KI TARAH UNMDAA SHER वीनस केसरी JI ....BADHAAI .......

Comment by वीनस केसरी on April 28, 2013 at 2:09pm

dr. prachi ji dhanyvaad 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 28, 2013 at 1:03pm

खूबसूरत गज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय वीनस जी 

ये दो शेर खास पसंद आये..

यहीं तो खुद से खा जाता हूँ धोका 
निभाना चाहता हूँ मैं सभी से 

भुला बैठे जो रस्ता उस गली का  
गुज़रना हो गया किस किस गली से

सादर. 

Comment by वीनस केसरी on April 27, 2013 at 11:09pm

श्याम जी, सौरभ जी, प्रदीप जी, केवल जी, अशोक जी,

ग़ज़ल को अपना बहुमूल्य समय दे कर आशिर्वचन से अभिसिंचित करने हेतु आप सभी का हार्दिक आभारी हूँ
सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 26, 2013 at 11:12pm

यहीं तो खुद से खा जाता हूँ धोका 
निभाना चाहता हूँ मैं सभी से ............वाह! बहुत बढ़िया कहा है.

सादर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय वीनस जी सुन्दर गजल पर.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 26, 2013 at 6:45pm

आदरणीय वीनस जी,    अतिसुन्दर!  लाजवाब शे‘र ।  कितनी सादगी से बयां कि  ’पुराना है मेरा लहज़ा यकीनन!  मगर बरता है किस शाइस्तगी से!!’   हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 26, 2013 at 3:50pm

परेशां है समंदर तिश्नगी से 
मिलेगा क्या मगर इसको नदी से

अमीरे शहर उसका ख़ाब देखे  

कमाया है जो हमने मुफलिसी से

आदरणीय वीनस जी शानदार शेर हेतु सादर बधाई 

 

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