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गज़ल - गांधियों के रूप में ढलते गए

बह्र -- रमल मुसद्दस महजूफ
२१२२, २१२२, २१२
हम चले थे आस में चलते गए
और वो सब हाथ ही मलते गए

खूबसूरत रुत न थी औ रहगुज़र
तीरगी की बाढ़ को छलते गए

खूब रोका कंटकों नें राह में
राह में हम फूल सा खिलते गए

कह रहीं थीं आँधियाँ रुक जा जरा
आँधियों सा राह में चलते गए

झूठ आया रूप धर के सामने
गांधियों के रूप में ढ़लते गए

देख सुन कह मत गलत बुनते रहे
वानरों के पेट भी पलते गए

या खुदा तूने न देखा कारवाँ
चाँदनी ले हाथ में चलते गए

पूनम शुक्ला

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 768

Comment

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Comment by Abhinav Arun on September 30, 2013 at 10:56am

सुन्दर सशक्त तेवरदार ग़ज़ल , बधाई आदरणीया !!

Comment by Poonam Shukla on September 30, 2013 at 10:46am
कृपया सुधार के बाद ग़ज़ल फिर से देखें ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 11:04am

आ० पूनम जी 

बिना काफिया के रचना ग़ज़ल की श्रेणी में नहीं रखी जा सकती. ग़ज़ल की बातें, ग़ज़ल की कक्षा आदि से ग़ज़ल पर विस्तृत पाठ पड़ें जा सकते हैं .. 

शुभेच्छाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 23, 2013 at 10:50am

आदरनीया पूनम जी , आपके उदाहरण 

ख़्वाब था या ख़्याल था क्या था
हिज्र था या विसाल था क्या था  ------------  काफिया- आल है , न कि ,

आप जैसे ही पहले मै भी सझता था ! जब एक गज़ल खारिज़ हुई तो समझ मे बात आई !!

Comment by Poonam Shukla on September 23, 2013 at 10:47am
यानि की व्यंजन साम्य काफिया इस्तेमाल किया जा सकता है ।
Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on September 23, 2013 at 10:41am

इस ग़ज़ल में काफ़िया है आल (ख़्याल, विसाल), न कि केवल ल !

Comment by Poonam Shukla on September 23, 2013 at 10:39am
दूसरा उदाहरण - मुस्ह़फी की गजल

ख़्वाब था या ख़्याल था क्या था
हिज्र था या विसाल था क्या था

मेरे पहलू में रात आकर वो
महा ँथा या हिलाल था क्या था
Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on September 23, 2013 at 10:35am

इस ग़ज़ल में काफ़िया है अर (गुजर, सफ़र, जिगर, भर) | 

नियम से यह व्यंजन-साम्य काफ़िया हुआ  |

Comment by Poonam Shukla on September 23, 2013 at 10:30am
ऊषा यादव ऊषा की ग़ज़ल
रात तन्हा है रहगुज़र तन्हा
अब कटे कैसे ये सफर तन्हा

हिज्र का चाँद औ जिगर तन्हा
दिल तड़पता है रात भर तन्हा
Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on September 23, 2013 at 10:24am

पूनम जी, ऐसी कुछ ग़ज़लों का उदहारण दीजिये ताकि बात साफ़ हो सके |

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