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तेरी मैं परछाई , तुम हो मेरी पिया
अब कहीं लागे नहीं तुम बिन यह जिया/
आसमाँ से है उँचा,सागर से गहन
ऐसा सच्चा प्यार हमने तुमको किया/
चाँद तुम मेरे अगर, मैं हूँ चाँदनी
ऐसा है अपना मिलन ओ मेरे पिया/
आइना तुम हो अगर मैं तस्वीर हूँ
अक्स तुझमें मेरा ही है दिखता पिया
तुम अगर दीया हो तो 'बाती' हूँ तेरी
हैं अधूरे एक दूजे बिन ओ पिया/
मैं समाई सिन्धु में जैसे है लहर
एक ऐसा अपना संगम है ओ पिया //
.........................................
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
गीत का सुन्दर प्रयास हुआ है. ग़ज़ल की बह्र को साधने का प्रयास रोचक है लेकिन प्रस्तुति इतने से ही ग़ज़ल नहीं होती.
गीत के लिए बधाई.
सुधीजनों के सुझावों पर ध्यान दें.
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान....... भावों का अच्छा समावेश है आदरणीया सरिता जी.... बाकी गज़ल के ज्ञाताओं ने टिप्पणियों में कुछ हिदायतें दी हैं... उनका ध्यान रखिएगा..... बधाई इस प्रयास के लिए....
अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!
ग़ज़ल पर सुन्दर प्रयास है
बधाई स्वीकारें
शेर में एक ही व्यक्ति को तुम और तेरी का संबोधन शुतुर्गुरबा का कारण बन रहा है
कृपया ध्यान दें
सुन्दर रचना ...हार्दिक बधाई भाव ह्रदय को भा रहे हैं !!
आदरणीया सरिता जी, बहुत सुन्दर प्रयास। अच्छी गजल हुर्इ है। आप तहेदिल से बधार्इ स्वीकारें। सादर,
आदरणीया सरिता जी प्रेम रस में भीगे सुन्दर अशआर हैं अच्छी ग़ज़ल हुई है किन्तु कसावट की कमी है. प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें. निम्न अशआर पुनः देख लें.
तेरी मैं परछाई , तू है मेरी पिया (आदरणीया मेरी पिया या मेरा पिया)
अब कहीं लागे नहीं तुम बिन यह जिया/
चाँद तुम मेरे अगर, मैं हूँ चाँदनी
ऐसा है अपना मिलन ओ रे पिया/ ( तक्तीय पुनः करें शेर बेबह्र है)
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