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दिल से प्‍यार

रूह से प्‍यार

प्रतिक ताजमहल

सीता,सती,अनुसुईया

बाते किताबों की

आज का प्रेम तन

वासना, भूख

अंहकार,पुरूषार्थ का

अपमान सहे कैसे

खोजे सूनी राह

शांत गलीयाँ

लूटे अस्‍मत,

इज्‍जत तार तार

अबला देख रही  थी सपने

दिखा रही सपने

कर गुजरने की चाहत

सीखने सीखाने की चाहत

पर अब अंधकार में  कैद

लाख साथ जमाना

साथ में ताना

क्‍यों क्‍या कैसे

दिल को भेदते शब्‍द

मगर वो

आजाद शिकारी

तलाश नये शिकार की

जाल में फसे भी तो

जाल के जाल में

उलझ कर जीवन

बंद हवा में खुल के जीवन

वो अबला खुली हवा में

मौत की जीवन

आखिर क्‍यों

आखिर क्‍यों नहीं

मसलते हम भैरो को

क्‍यों नही छीनते

अधिकार  जीने का

अधिकार , रोटी का

समाजिक बहिष्‍कार

पूरे परिवार का

कुल खानदान का

सजा ऐसी रूह कॉप उठे

हमारी बहने सुरक्षित

ना हो दामिन का

दामन दागदार

बेटी कलंकित,

ना जीवन का अंत

उसे हो विश्‍वास रक्षा

अस्‍मत की मान की करेगें

हम आप और समाज

करे इंन्‍साफ है जो

देगें इंन्‍साफ जो नहीं

मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on January 15, 2014 at 10:19am

प्रयासरत रहें भाई। ...............शुभ शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2014 at 12:45am

आप अपनी रचना को पढिये और टंकण त्रुटियों को शुद्ध कर दीजिये.

शुभ-शुभ

Comment by sarika choudhary on January 14, 2014 at 1:28pm

बहुत सुन्दर.........

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 14, 2014 at 8:11am

बहुत सुंदर रचना आदरणीय अखंड जी, बधाई स्वीकारें

Comment by Meena Pathak on January 13, 2014 at 12:44pm

बहुत सुन्दर रचना आ० गहमरी जी , बधाई 

Comment by coontee mukerji on January 12, 2014 at 9:55pm

सीखने सीखाने की चाहत

पर अब अंधकार में  कैद

लाख साथ जमाना

साथ में ताना

क्‍यों क्‍या कैसे

दिल को भेदते शब्‍द.....शायद इंसान अपनी फितरत  कभी नहीं बदलेगा....आपने एक मज़लूम औरत की दुखती रग पर उँगली रखी है.सादर.

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