अपनो से दूर
अपने पराये
पराये अपने
चुटकी भर
सिंदूर से
पास मेरे
तन मन
अर्पण
मैं सुखी
उसकी खुशी
हर चाहते
सपने उमंग
चेहरे पर तेज
हर पल साथ
साँसो के साथ
मेरे अपने
उसके अपने
निर्स्वाथ सेवा
हम दो शब्द
प्यार के नहीं
जज्बातो से खेलते
हर सपने तोड़ते
शिव है हम
मगर वह सीता
सह गयी जुल्म
मगर ना मिला
राम को चैन
पुरूर्षाथ अधूरा
वह अनेक रूपों में
आज तक
चल रही
निभा रही
आशा
विश्वास
निर्स्वाथ
हर रिश्ते, हर फर्ज
मेरे साथ
दिखा रही
अँधेरो में रास्ता
कोशिश बचाने की
सम्मान दिलाने की
हमारी अर्धागिनी
मेरी जीवन संगिनी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय ram shiromani pathak ji मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन के सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्वीकार करें
सार्थक प्रयास के लिए हार्दिक बधाई आपको भाईजी, और हार्दिक शुभकामनाएँ.
आदरणीय Saurabh Pandey जी मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन के सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्वीकार करें
इस सार्थक प्रयास के लिए धन्यवाद, भाईजी, और हार्दिक शुभकामनाएँ.
आदरणीय रमेश कुमार चौहान जी मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन के सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्वीकार करें
आदरणीय अरुन शर्मा 'अनन्त' जी मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन के सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्वीकार करें
आदरणीया savitamishra जी मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन के सदैव आकांक्षी है प्रणाम स्वीकार करें
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय अखंड जी बधाई स्वीकारें.
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