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अकेलापन [कुण्डलिया

बैठ अकेले सोचती ,तुमको दिन और रात
जान हमारी ले गए ,बहते हैं जज्बात /
बहते हैं जज्बात सजल हैं आँखें रहती
टूटा है विश्वास, हर निगाह यही कहती
तुम बिन हैं सुनसान सभी दुनिया के मेले
सरिता रही पुकार, हर रोज बैठ अकेले //

.........................................................

..................मौलिक व अप्रकाशित .............

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 26, 2014 at 8:33pm

मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति पर शिल्पगत त्रुटियाँ रह गयी हैं ...

बैठ अकेले सोचती ,तुमको दिन और रात  ................रेखांकित अंश की मात्रा १२ हो रही है 

जान हमारी ले गए ,बहते हैं जज्बात
बहते हैं जज्बात सजल हैं आँखें रहती......................एक ही पंक्ति में दो बार 'हैं ' दूसरे हैं को बदला जा सके तो बेहतर होगा 
टूटा है विश्वास, हर निगाह यही कहती ...................यहाँ गेयता भी बाधित है, और 'हर निगाह' से आपका क्या तात्पर्य है ?
तुम बिन हैं सुनसान सभी दुनिया के मेले 
सरिता रही पुकार, हर रोज बैठ अकेले //.................यहाँ भी रेखांकित अंश में गेयता बाधित है 

इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें 

Comment by Sarita Bhatia on March 22, 2014 at 9:52am

शुक्रिया आदरणीय जितेन्द्र जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 22, 2014 at 8:18am

मर्मस्पर्शी रचना , बधाई आपको आदरणीया सरिता जी

Comment by Sarita Bhatia on March 21, 2014 at 8:28pm

आदरणीय भाई राम जी आपने ठीक कहा मैंने मौलिक में सुधार कर लिया है 

Comment by Sarita Bhatia on March 21, 2014 at 8:27pm

आदरणीया शशि जी शुक्रिया 

Comment by Sarita Bhatia on March 21, 2014 at 8:27pm

आदरणीय लक्ष्मण जी हार्दिक आभार 

Comment by ram shiromani pathak on March 20, 2014 at 9:33pm

सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया। हार्दिक बधाई आपको

तुमको दिन और रात=१२
तुमको दिन औ रात=११ सादर

Comment by shashi purwar on March 20, 2014 at 7:39pm

सुन्दर प्रयास आदरणीय सरिता जी बधाई आपको

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 20, 2014 at 4:54pm

आदरणीया सरिता जी सुन्दर कुंडलियों के लिए हार्दिक बधाई .

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