For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सारी उमर मैं बोझ उठाता रहा जिनका
उन आल-औलादों की वफ़ा गौर कीजिये
मरने के बाद मेरा बोझ ले के यूँ चले
मानो निजात पा गए हों सारे बोझ से

मैंने समझ के फूल जिनके बोझ को सहा
छाती से लगाया जिन्हें अपना ही जानकर
वे ही बारात ले के बड़ी धूम धाम से
बाजे के साथ मेरा बोझ फेंकने चले

अपने लिए ही बोझ था मै खुद हयात में
अल्लाह ये तेरा भला कैसा मजाक है
ज्योही जरा हल्का हुआ मै मरकर बेखबर
खातिर मै दूसरों के एक बोझ बन गया

लगती थी बोझ जिन्दगी उनके बिना मुझे
यह चाह थी मरकर कभी उनसे गले मिलूँ
मरकर भी बेवफा को जब मै न पा सका
लिल्लाह मेरी मौत मेरा बोझ बन गयी
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 590

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 1, 2014 at 5:25pm

करुण जी

रचना पर समय देने के लिए मै ह्रदय से आभारी हूँ i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 1, 2014 at 5:25pm

मित्र

आपका स्नेह ह्रदय से स्वीकार I

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 1, 2014 at 5:24pm

आशुतोष जी

आपका शत-शत आभार i

Comment by Santlal Karun on September 1, 2014 at 5:13pm

आदरणीय डॉ. श्रीवास्तव जी, 

वृद्धावस्था की बोझिल विसंगति पर हृदयवेधी भावनाएँ इस रचना में आई हैं --

"मरने के बाद मेरा बोझ ले के यूँ चले
मानो निजात पा गए हों सारे बोझ से

मैंने समझ के फूल जिनके बोझ को सहा 
छाती से लगाया जिन्हें अपना ही जानकर 
वे ही बारात ले के बड़ी धूम धाम से 
बाजे के साथ मेरा बोझ फेंकने चले"

...हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 1, 2014 at 4:51pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , लाजवाब रचना की है आपने , बस वाह वह | जीवन की तल्ख सच्चाई को नंगा कर दिया है | तहे दिल से बधाई स्वीकार करें | और निम्न पंक्तियों के लिए अलग से बधाई --

मरकर भी बेवफा को जब मै न पा सका
लिल्लाह मेरी मौत मेरा बोझ बन गयी -  वाह |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 31, 2014 at 9:50pm

आदरणीय गोपाल सर ..इस रचना के माध्यम से जिन्दगी की कटु यथार्थ से आपने रूबरू कराया है ..इस बेहतरीन रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 31, 2014 at 1:13pm

जीतू जी

आपका हार्दिक आभार i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2014 at 12:06pm

एक कोरा और कटु सत्य कहती हुई रचना. एक अंतिम सत्य. आदरणीय डा. गोपाल जी इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 30, 2014 at 5:02pm

नरेन्द्र जी

आपका आभारी हूँ i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 30, 2014 at 5:02pm

विजय सर

आपका  प्रोत्साहन मेरी उर्जा बने i सादर i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
4 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना आँखों को किसने सीखा है दिल से…See More
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service