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मुस्कुराते हो बहुत पछताओगे

मुस्कुराते हो बहुत पछताओगे
बज़्म से तुम भी निकाले जाओगे


तुम विसाले यार को बेताब हो
उस से मिल कर भी बहुत पछताओगे


साथ तेरा मिलगया मगरूर हूँ
तुम भला क्यों गीत मेरे गाओगे


रूह को माँ बाप की तस्लीम कर
साथ अपने सब उजाले पाओगे


भूख से बच्चा बिलखता हो अगर
किस तरहा से रोटियां खा पाओगे


बात सच्ची कह रहे हो तुम मनु
इस जुबा पर तुम भी छाले पाओगे
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
विजय कुमार मनु

Views: 550

Comment

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Comment by vijay on February 4, 2015 at 8:22am
@ गिरिराज जी
सर बेहद शुक्र गुजार हूँ आप लोगों की सलाहियत का
मैं जरूर सुधार करूंगा

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 3, 2015 at 5:45pm

आदरणीय विजय भाई , बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है , दिली मुबारक बाद कुबूल करें ।

बस - तरहा को तरह कर लीजियेगा म मिसरा बेबह्र हो रहा है ।

और अगर सही लगे तो , मगरूर के बदले मश्कूर पढ़ के दिखियेगा , ज़रूरी नही है , फिर भी एक सलाह ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 2, 2015 at 10:35pm
यूँ तो पूरी ग़ज़ल बहुत सुन्दर बनी है पर
बात सच्ची कह रहे हो तुम मनु
इस जुबा पर तुम भी छाले पाओगे।
की कुछ बात अलग सी है ,
सादर बधाई आदरणीय विजय जी।
Comment by vijay on February 2, 2015 at 8:55pm
बेहद शुक्रगुजार हूँ आप सब का
हौसला आफजाई के लिए

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 2, 2015 at 8:21pm

इस बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2015 at 7:58pm

आदरणीय विजय जी...

मुस्कुराते हो बहुत पछताओगे
बज़्म से तुम भी निकाले जाओगे...सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 2, 2015 at 12:32pm

//भूख से बच्चा बिलखता हो अगर
किस तरहा से रोटियां खा पाओगे//

बहुत ही खुबसूरत शे'र, अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय विजय जी, बहुत बहुत बधाई.

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