For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रात की रानी : नवगीत : हरि प्रकाश दुबे

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

बिस्तर पर लेटी राज दुलारी ,

पर उसको चोट लगी है भारी ,

लौटा दो फिर से उसकी हँसी,

उसे धीरे से गुदगुदाया करो !

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

तरह - तरह के मर्ज पड़े है,

जाने कितने दुःख-दर्द पड़ें हैं,

पीड़ा कम हो जाए उनकी,

ऐसा मरहम लगाया करो !

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

कुछ लोगों का रोग है भारी,

असाध्य है उन सबकी बीमारी,

देखी नहीं जाती अब लाचारी,

उन्हें भी रोशन कर जाया करो !

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

कुछ के मन में सूनापन है

दुर्गन्ध भरा उनका जीवन है

जीने की अब चाह नहीं है 

उन्हें रोज-रोज महकाया करो !

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

मौत के मुहँ में पढ़ी जिंदगी

अंतिम साँसे मांग रही है

मौत से लडती जिंदगी को

अमरत्व से भर जाया करो !

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

देखो जा रही है एक अरथी,

लिए साथ में चार सारथी,

तुम तो कन्धा दें नहीं सकती

उसपर फूल ही बरसाया करो

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!  

 

 

तुमको काट दिया लोगों ने

जड़ से उखाड़ दिया लोगों ने

तुम भी अमरबेल बनकर

बार-बार  उग जाया करो !!

 

रात की रानी अस्पताल में,

तुम फिर से मुस्कराया करो !!

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 1113

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 10:09pm

भाई महर्षि त्रिपाठी जी ,रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए आपका  हार्दिक आभार !

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 10:04pm

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला सर, आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ! सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 10:00pm

 सोमेश भाई आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 9:58pm

आदरणीय शिज्जु "शकूर" सर , बहुत - बहुत  धन्यवाद  आपका ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 9:54pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर रचना पर आपकी उपस्थिति  और आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 9:51pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी सर ,आपका  हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ ,हार्दिक धन्यवाद !

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 9:48pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर, रचना पर आपके समर्थन के लिए आपका हार्दिक आभार ! सादर !

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 9:44pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सुन्दर  प्रतिक्रया के लिए आपका  हार्दिक आभार !

Comment by maharshi tripathi on March 18, 2015 at 9:39pm

तुमको काट दिया लोगों ने

जड़ से उखाड़ दिया लोगों ने

तुम भी अमरबेल बनकर

बार-बार  उग जाया करो !!,,,बहुत बहुत बधाई आ.Hari Prakash Dubey जी |

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 9:39pm

आदरणीय वीरेन्द्र मेहता जी , आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
14 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
16 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service