एक तो पिछला कर्ज ही अभी तक माफ नहीं हुआ था उस पर इस बार फिर फसल के चौपट होने और साहूकार के ब्याज की दोहरी मार उसके लिए असहनीय थी, घर में सभी को कुपोषण और बीमारी ने घेर रखा था। इस बार ना तो मदद को सरकार थी, ना ही लोग।
आखिरकार उसने शहर जाकर मजदूरी या कुछ और कर कमाने का फैसला लिया और जब वह लगभग नग्न बदन, एक बोझ भरी गठरी जिसमें कुछ सुखी रोटी और प्याज थी, लेकर , शहर के चौराहे नुमा पुल पर पहुंचा तो उसने पाया की उसके लिए सभी रास्ते बंद हैं और अवसाद ग्रस्त होकर उसने उसी पुल से नीचे…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 19, 2019 at 12:30pm — 3 Comments
“अरे सुनो !”
“अभी अम्मा जाग रहीं है... चुप !”
“बक पगली, कुछ काम की बात है, इधर तो आओ !”
“हां , बोलो !”
अरे ये मूँगफली का ठेला अब बेकार हो गया है, कोई कमाई नहीं रही !”
“काहें, अब का हुआ?!”
अरे, ससुरे सब आतें हैं , थोडा सा कुछ खरीदतें हैं बाकी सब फोड़-फोड़ चबा जातें है, जानती…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 26, 2018 at 8:30pm — 3 Comments
सुदूर पहाड़ी पर एक प्रसिध्द ‘माँ दुर्गा’ का एक मन्दिर था, जिसका संचालन एक ट्रस्ट के हाथ में था। उसमे पुजारी, आरती करने वाला, प्रसाद वितरण करने वाला, मंदिर की सफाई करने वाला, मंदिर की आरती के समय घंटी बजाने वाला आदि सभी लोग ट्रस्ट द्वारा दी जाने वाली दक्षिणा एवम भोजन पर रखे गए थे।
आरती खत्म हो जाने के बाद जहाँ अन्य लोग चढ़ावे को इक्कठा कर कोष में जमा कराने में तत्पर रहते थे वही घंटी बजाने वाला ‘घनश्याम’ आरती के समय भाव के साथ इतना भावविभोर हो जाता था कि होश में ही नही…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on November 1, 2018 at 10:09pm — 3 Comments
आज उसे अपने वादे के मुताबिक अपनी पत्नी के साथ पास के एक माॅल में ही फिल्म देखने जाना था। कुछ ज्यादा उत्साहित तो नहीं था, लेकिन फिर भी अपनी पत्नी के लिए कुछ 'खास' करने की खुशी उसके चेहरे पर दिखाई दे रही थी। आॅफिस की नोंक झोंक और रास्ते में ट्रैफिक की रोक टोक जैसी बाधाओं को पार कर, जब वो घर पहुंचा तो अत्याधिक शांति पाकर थोड़ा ठिठक सा गया। हाॅल में घुसते ही, एक जाना पहचाना चेहरा जो शायद…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on September 10, 2018 at 3:00pm — 6 Comments
राहुल ने जैसे ही रात को घर में कदम रखा वैसे ही उसका सामना अपनी धर्मपत्नी ‘कविता’ से हो गया । उसे देखते ही वह बोली “देख रही हूं आजकल, तुम बहुत बदल गए हो, मुझसे आजकल ठीक से बात भी नहीं करते हो ।”
नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, बस जरा काम का बोझ कुछ ज्यादा ही लग रहा है ।”
ये बहाना तो तुम कई दिनों से बना रहे हो, हाय राम ! कहीं तुम मुझसे कुछ छुपा तो नहीं रहे हो, “कौन है वो करमजली?”
यह सुनते ही राहुल का पारा चढ़ गया उसने झुंझुलाते हुए कहा “कविता,…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 27, 2018 at 8:23pm — 18 Comments
घने जंगलों के बीच जगह जगह लाल झंडे लगे हुए थे. सैनिकों की जैसी वर्दी में कुछ लोग आदिवासियों को समझा रहे थे, “सुनो इस जंगल, जमीन और सारे संसाधनों पर सिर्फ तुम्हारा और तुम्हारा ही हक़ है, इन पूंजीपतियों के और इनकी रखैल सरकार के खिलाफ, हम तुम्हारे लिए ही लड़ रहें है, इनको तो हम नेस्तनाबूद कर देंगें !”
“पर कामरेड अब तो सरकार हम पर ध्यान दे रही है, सड़क पानी उद्योग की व्यवस्था भी कर रही है, क्यों न इस लड़ाई को छोड़ दिया जाए, वैसे भी सालों से कितना खून बह रहा…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on August 4, 2017 at 11:43pm — 3 Comments
कितनी सहज हो तुम
कोई रिश्ता नही
मेरा ओर तुम्हारा
फिर भी
अनगिनत पढ़ी जा रही हो,मुझे
बिन कुछ कहे
बस मुस्कुरा कर
अनवरत सुनी जा रही हो ,मुझे
बस यही अहसास काफी है
संपूर्ण होने का,मेरे लिए !!
"मौलिक व अप्रकाशित"
© हरि प्रकाश दुबे
Added by Hari Prakash Dubey on August 2, 2017 at 11:30pm — 2 Comments
“बेटा एक बात कहूं क्या?”
“हाँ बोल न माँ, पर अपनी बहू के बारे में नहीं।“
माँ चुप हो गयी, फिर बोली “बेटा, अपने से जुड़े हुए लोगों का महत्व समझना चाहिये, हमे देखना चाहिये की वो हमसे कितना प्यार करते हैं, हमे भी उनको उतना ही स्नेह और महत्व देना चाहिये, कभी-कभी हम अपने से स्नेह करने वालों से, चाहे वो कोई भी क्यों न हों, इस तरह का व्यवहार करने लग जाते हैं, जैसे ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’ ।“
बेटा हो सकता है वो आपको, आपके इस तरह के उपेक्षापूर्ण…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on August 1, 2017 at 9:02pm — 9 Comments
“सुन कमला, सारा काम निपट गया या अभी भी कुछ बाकी है!”
नहीं ‘मेमसाहब’ सब काम पूरा कर दिया है, दाल और सब्जी भी बना के फ्रिज मैं रख दी है, आटा भी गूंथ दिया है, साहब आयेंगे तो आप बना कर दे दीजियेगा !
“अरे बस जरा सा ही काम तो बचा है, कमला,ऐसा कर रोटी भी बना कर हॉट केस मैं रख जा !”
“मेमसाहब मुझे देर हो रही है, घर पर बच्चे भूखे होंगे !”
अरे चल पगली १५ मिनट में मर थोड़ी ही जायेंगे, चल जल्दी से बना दे !
गरीबी चाहे जो न…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on July 25, 2017 at 2:49am — 5 Comments
दिल्ली में भी
सूरज उगता है
शहादरा में
काले धुएं की, ओट से
धीरे –धीरे संघर्ष करते
ठीक उसी तरह जैसे
माँ के गर्भ से कोई
बच्चा निकलता है
बड़ा होता है
बसों और मेट्रो में
लटक –लटक कर
धक्के खा-खा कर
जीवन जीना सीखता है
पसीने को पीता जाता है
पर थक हार कर भी
जनकपुरी की तरफ बढ़ता जाता है
रक्त से लाल होकर
वहीँ कहीं किसी स्टाप पर
चुपके से उतर जाता है
पर, सूरज का जीवन…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on July 24, 2017 at 11:10pm — 1 Comment
122--122 / 122--122
मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत लिखेंगे,
अलावा नहीं कुछ हिमाकत लिखेंगे !
नहीं कल्पना ही लिखेंगे यहाँ अब,
लिखेंगे तो बस हम हकीकत लिखेंगे!
लिखेंगे नहीं हम कभी झूठ बातें,
सलामत अगर हैं सलामत लिखेंगे!
मुहब्बत ही करते रहें हैं यहाँ जो ,
ग़ज़ल दर ग़ज़ल हम मुहब्बत लिखेंगे!
ग़ज़ल जब लिखेंगे तुम्हारे लिए तो,
कसम से तुम्हें खूबसूरत लिखेंगे!
इशारा हमें जो किया…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on July 18, 2017 at 5:11pm — 11 Comments
शानदार फूलों से सुसज्जित मंच पर धर्मगुरु विद्यमान ,साथ ही भजन कीर्तन करने वाली भाड़े पर रखी गयी टीम ,सामने लम्बा पांडाल , अति विशिष्ट भक्तों के लिए आगे सुन्दर सोफों की कतार ,पीछे दरी पर हाथ जोड़ कर बैठे भक्तजन , जगह –जगह एलसीडी ,साउंड सिस्टम , अब प्रवचन शुरू ..........
” आप सब के दुखों का कारण ही यही है की आप लोग तमाम मोह ,माया के बंधन में फसें हुए हैं,किसी को परिवार की चिंता है ,कोई धन के पीछे भाग रहा है ,अरे कुत्ते की तरह जिंदगी बना ली है आप लोगों ने अपनी, अरे मैं तो…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on July 16, 2017 at 3:00pm — 4 Comments
“डॉक्टर साहब, देखिये ना मेरी फूल सी बिटिया को क्या हो गया है, कुछ दिनों से ये अचानक दौड़ते-भागते हुए गिर जाती है, ठीक से सीढ़ियाँ भी नहीं चढ़ पाती है।“
“अरे आप इतना क्यों घबरा रहें है? लीजिये कुछ टेस्ट लिख दियें हैं, बच्ची की जाँच करवा के मुझे दिखाइये ।“-डॉक्टर ने कहा।
अगले ही दिन बृजमोहन सारी जाँच रिपोर्ट लेकर डॉक्टर मिश्रा के अस्पताल पहुँच गया।
डॉक्टर मिश्रा जैसे –जैसे रिपोर्ट पढ़ते जा रहे थे…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on July 15, 2017 at 9:30pm — 12 Comments
सर्द रात में कोहरे को चीरती हुईं कई गाड़ियाँ, आपस में बतियाती हुयीं शहरों की झुग्गियों में कुछ ढूँढ रहीं थी तभी अचानक !
“अबे गाड़ी रोक, बॉस का फ़ोन आ रहा है I”
ड्राईवर ने कस कर ब्रेक दबा दिया और धमाके के साथ “जी, साहब , कहते ही आदमी फ़ोन सहित गाडी के बाहर I”
“अबे ! यह धमाका कैसा सुनाई दिया, जिन्दा हो या फ्री में खर्च हो गए ?”
“नहीं जनाब, सब ठीक है, लगभग सब काम हो गया है, सारे छुटभैये नेता खरीद लिए हैं!” “अल्लाह ने चाहा तो…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on July 11, 2017 at 12:51am — 10 Comments
“खाना लगा दूं ! लेफ्टिनेंट साहब ?”
“अभी नहीं ! रूक जा जरा, बस यह चित्र पूरा ही होने वाला है, तब तक जरा एक पैग बना ला ‘ऑन द रोक्स’ I”
“क्या साब, आज दिन में ही...?”
“हूँ ! ... बेटा, एक काम कर सारे खिड़की दरवाजे बंद कर दे और लाइट्स जला दे I”
थापा ने ठीक वैसा ही किया, पैग बना लाया और बोला, “लीजिये साब, हो गयी रात I”
लेफ्टिनेंट साहब अपनी बैसाखी के सहारे मुस्कराते हुए आगे बढे, गिलास पकड़ लिया और बोले…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on July 10, 2017 at 10:47pm — 5 Comments
“यार अच्छी-खासी नौकरी है तुम्हारी ये दिन रात इंटरनेट और मोबाइल पर क्या खेल खेलते रहते हो, थोड़ा हम लोगों के पास भी बैठा करो, पिता ने बड़ी ही मित्रतापूर्वक भाव से ‘आनंद’ से पूछा !
आनंद ने अपना लैपटॉप बंद करते हुए बड़े ही सहज भाव से कहा “कुछ नहीं पिताजी आपकी समझ से बाहर है यह सब, जब मैं बड़ा आदमी बन जाऊँगा तब आपको अपने आप पता चल जाएगा !”
पिता अपना सा मुहँ लेकर खामोश हो गए तभी आनंद की माँ आ गईं और उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, बेटा सबकुछ तो ठीक चल रहा है, अच्छी खासी तन्खाव्ह है…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on June 16, 2017 at 3:30pm — 10 Comments
“अंकल, जरा अपना मोबाइल फ़ोन दे दीजिये I"
“पर क्यों बेटा, तुम्हारे फ़ोन को क्या हुआ?”
“घर पर पिताजी बीमार हैं, माँ से बात कर रहा था, तभी फ़ोन की बैटरी डिस्चार्ज हो गयी, और देखिये ना यहाँ पर कोई चार्जिंग की जगह भी नहीं है, प्लीज अंकल, ज्यादा बात नहीं करूंगा, चाहे तो पैसे .. I"
“अरे नहीं, पैसे की कोई बात नहीं है बेटा, ये लो आराम से बात करो I"इतना कहते हुए शर्मा जी ने अपना फ़ोन उस नौजवान को दे दिया, और कुछ ही देर बाद वह लड़का वापस आया और बोला, “आपका…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 1, 2016 at 4:30pm — 7 Comments
“आज तो गज़ब की टाई पहनी है अमित, बहुत जम रहे हो यार, कहाँ से ली?”
“नेहरू प्लेस से लाया हूँ साले, 90 रूपये की है, चाहिये तो उतार दूं, बता?”
“अबे भड़क क्यों रहा है?, और सुबह-सुबह सिगरेट पर सिगरेट सूते चले जा रहा है, कोई टेंशन है क्या?”
“सॉरी यार, अभी बॉस ने मेरी तबियत से क्लास ले ली, दिमाग खराब कर दिया साले नेI”
“भाई इतनी गाली क्यों दे रहा है, क्या हो गया?"
“अरे यार, कह रहा है, आज अगर धंधा नहीं आया तो कल से आने की जरूरत नहीं है I”, ”पता नहीं किस…
Added by Hari Prakash Dubey on February 25, 2016 at 11:00am — 6 Comments
आख़िरकार आज पिछले सत्रह सालों की साधना रंग ला ही गई, कसम से क्या–क्या पापड़ बेलने पड़े इस सचिवालय तक पहुँचने के लिए... नए सचिव साहब, मन ही मन सोचते हुए, कभी अपने खूबसूरत दफ्तर और कभी अपने स्वागत में प्रस्तुत फूलों के अम्बार को देख–देख कर मुस्करा रहे थे कि तभी, दरवाजे की घंटी बज उठी, एक आवाज आयी “क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ ? “जी, फ़रमाइए।”
“जय हिन्द सर, मै आपका ‘वैयक्तिक सहायक’ हूँ, आपका इस नए कार्य क्षेत्र में स्वागत है, मेरी तरफ से ये तुच्छ भेंट स्वीकार कीजिये साहब।”
“ओह ! धन्यवाद आपका,…
Added by Hari Prakash Dubey on February 22, 2016 at 10:06am — 6 Comments
सर्द सुबह में गुनगुनी धूप आज विधायक ‘बाबू राम’ के सरकारी बंगले पर मेहरबान थी, ‘बाबू राम’ जी, जो अब मंत्री भी बन चुके थे अपने सफ़ेद कुरते, पायजामे के साथ नीली जैकेट पहन, इत्र छिड़क कर अपने आप को शीशे में निहार-निहार कर आत्ममुग्ध हुए जा रहे थे तभी उनके नौकर ‘हरिया’ ने आवाज़ लगाई, “साहब ! साहब ! नाश्ता तैयार है।”
“अच्छा तो बाहर गार्डन में लगा दे और सुन ! जरा अखबार भी लेते आना, देखें क्या खबर है आज अपनी।”
जी सरकार, ...कहकर ‘हरिया’ चला गया और मंत्री महोदय बाहर…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on February 19, 2016 at 4:09pm — 6 Comments
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