“अंकल, जरा अपना मोबाइल फ़ोन दे दीजिये I"
“पर क्यों बेटा, तुम्हारे फ़ोन को क्या हुआ?”
“घर पर पिताजी बीमार हैं, माँ से बात कर रहा था, तभी फ़ोन की बैटरी डिस्चार्ज हो गयी, और देखिये ना यहाँ पर कोई चार्जिंग की जगह भी नहीं है, प्लीज अंकल, ज्यादा बात नहीं करूंगा, चाहे तो पैसे .. I"
“अरे नहीं, पैसे की कोई बात नहीं है बेटा, ये लो आराम से बात करो I"इतना कहते हुए शर्मा जी ने अपना फ़ोन उस नौजवान को दे दिया, और कुछ ही देर बाद वह लड़का वापस आया और बोला, “आपका बहुत-बहुत धन्यवाद अंकल, अब जाकर मन को तसल्ली हुई है, लीजिये! मेरा स्टेशन भी आ गया, अच्छा चलता हूँ I"
“अरे, धन्यवाद तो तुम्हारा करना चाहिये की तुमने मुझे सेवा का मौका दिया I"-शर्मा जी ने बड़ी विनम्रता से प्रत्युत्तर में कहा और करीब एक घंटे बाद वह भी मन में सन्तोष का भाव लिए घर पहुँच गए, पर वहाँ उनके स्वागत में पुलिसकर्मी तैनात थे I
“आत्मप्रकाश शर्मा आप ही हैं?"
“जी हाँ, कहिये क्या बात हो गयी?”
“वाह, बड़े अनजान बन रहे हैं, चलिए थाने, जानते हैं किसके ऊपर हाथ डाला है आपने?”
“साहब, कोई ग़लतफ़हमी हुई है, मैंने किया क्या है?” तभी एक सिपाही बोला -“अबे शर्मा, चल बैठ गाडी में, बाकी तेरे वहीँ समझ आ जाएगा I"
मैं भी साथ चलूंगी, उनकी पत्नी ‘सावित्री’ ने कहा I नहीं, तुम क्या करोगी, मैं अभी आ जाऊंगा, कोई अपराध थोड़ी किया है मैंने, तुम चिंता मत करना, कहकर शर्मा जी चल दिए I
“अब कल तक आदरणीय रहे ‘आत्मप्रकाश शर्मा’ जी आज एक अपराधी की तरह थाने में लाये गए, वहाँ थानाध्यक्ष ने अग्रवाल साहब( शहर के एक नामी बिल्डर), से कहा, ‘लीजिये साहब, यही है आपसे २० लाख रंगदारी मांगने वाला और इसी ने आपको पैसा न देने पर जान से मारने की धमकी भी दी थी’, हमने कॉल रिकॉर्ड निकलवा ली है, अब बताइये क्या करना है I"
“ठीक है, दर्ज कीजिये F.I.R, लगाइए धारा-387, पता करिए और कौन-कौन इसके साथ शामिल हैं, सुबह प्रेस में यह बात चली जानी चाहिये, ताकी दूसरा कोई ऐसी हिमाकत न कर सके, बाकी कोर्ट में देखेंगे I"- अग्रवाल साहब ने कहा I
“अग्रवाल साहब सुनिये, अरे सुनिए तो सही, मैंने कुछ नहीं किया है, वो तो ट्रेन में ... I"
“दीवान जी, ये शर्मा बहुत बोल रहा है जरा इसको चुप तो करवाइए, अग्रवाल साहब आपसे निवेदन है आप घर जाइए I” --थानेदार के इतना कहते ही शर्मा जी पर सिपाही टूट पड़े और हर थप्पड़ के साथ शर्मा जी चिल्ला रहे थे, “सावित्री अपना फ़ोन किसी को मत देना I"
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
अच्छा सन्देश देती हुई सुन्दर लघु कथा..बढ़िया सीख
भ्रमर ५
फोन के साथ जुड़े खतरों से आगाह करती अच्छी रचना ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय हरी प्रकाश जी
हार्दिक बधाई आदरणीय हरि प्रकाश जी!अच्छी एवम शिक्षाप्रद प्रस्तुति!
बढ़े धोके हैं विश्वास में .....सोच समझ के ...यहाँ जीना दुश्वार हो गया... बहुत अच्छी लघु कथा बढ़िया सीख
हार्दिक बधाई हरी प्रसाद जी
बिलकुल सही बात कही है आदरणीय। आजकल यही सब हो रहा है। शातिरों के शिकार अक्सर शरीफ ही हुआ करते हैं। इस संदेशप्रद लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई सर।
वाह बेहतरीन लघुकथा हुई है ...आजकल ऐसा होने भी लगा है ...अपना फोन बचाकर रखना चाहिए अच्छी सीख. आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी!
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