For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्टाफ :लघुकथा: हरि प्रकाश दुबे

“आज तो गज़ब की टाई पहनी है अमित, बहुत जम रहे हो यार, कहाँ से ली?”                  

“नेहरू प्लेस से लाया हूँ साले, 90 रूपये की है, चाहिये तो उतार दूं, बता?”

“अबे भड़क क्यों रहा है?, और सुबह-सुबह सिगरेट पर सिगरेट सूते चले जा रहा है, कोई टेंशन है क्या?”

“सॉरी यार, अभी बॉस ने मेरी तबियत से क्लास ले ली, दिमाग खराब कर दिया साले नेI” 
“भाई इतनी गाली क्यों दे रहा है, क्या हो गया?"
“अरे यार, कह रहा है, आज अगर धंधा नहीं आया तो कल से आने की जरूरत नहीं है I”, ”पता नहीं किस मनहूस घड़ी में ये डायरेक्ट-सेल्स की नौकरी पकड़ ली, एक तो दर-दर जाकर भीख मांगो, ऊपर से इनकी सुनो, दूसरी नौकरी भी हाथ में नहीं है वरना आज ही इस्तीफा फेंक कर मार देता उस के मुंह पर I"
"क्यों टेंशन ले रहा है यार?, अबे कुछ नहीं तो शाम को एक फर्जी परचेज ऑर्डर....I" 

“अबे! क्या बकवास कर रहा है?, चल छोड़, वरना फिर कहेगा की गाली दे रहा हूँ, शाम को मिलते हैं I"- कहकर वह अपनी मोटरसाईकिल स्टार्ट कर निकल गया पर थोड़ी ही दूर जाकर रेड लाइट पर अटक गया और तभी एक भिखारी पास आया और एक बड़ा सा कटोरा दिखा कर बोला “साहब, कुछ बोहनी ही करा दोI"

“अबे, जब मेरी ही बोहनी नहीं हुई तो तेरी कहाँ से करवा दूंI"

“कोई बात नहीं साहब, स्टाफ के लगते हो, अगली लाल बत्ती तक तो छोड़ दोI”

इतना सुनते ही अमित का चेहरा क्रोध से लाल हो गया वह कुछ कहता इससे पहले ही वह भिखारी कूद कर उसकी मोटरसाईकिल के पीछे बैठ गया और उसने अपना कटोरा हेलमेट की तरह सर पर रख लिया और बोला, चलो भी साहब बत्ती हरी हो गयी है I"

“अजीब जबरदस्ती है, चल आगे बताता हूँ तुझे I",और उसने थोड़ी ही दूर पर, एक पार्क के सामने गाडी लगा दी और गुस्से से बोला, “अब बता बे, स्टाफ किसे कह रहा था, और शर्म नहीं आती भीख मांगते हुए,कुछ काम क्यों नहीं कर लेता, दिमाग से पैदल है क्या?”

“अरे आप तो बुरा मान गए साहब, अब देखिये ना आप टाई पहन कर मांग रहे हैं और मैं कटोरा लेकर, और शर्म कैसी अरे दुनिया मांग रही है, कोई वोट, कोई नोट तो कोई धंधा और तो और लोग तो हमारे उद्धार के लिए ही चंदा मांग रहे हैं, मैं भी मांगता हूँ कोई चोरी- डकैती या घोटाला तो करता नहीं, हाँ! मेहनत करता हूँ, अरे कोई नहीं देता है तो क्या?, मेरा कटोरा तो छीन नहीं लेता, दूसरे से मांगता हूँ, इधर नहीं मिलता तो दूसरी जगह जाकर मांगता हूँ, साहब दिन भर फिरता हूँ, तभी चरता हूँ I"

“अच्छा ठीक है, चल मैं भी निकलता हूँ, तू ठीक कह रहा है ‘जो फिरता है वही चरता है’I"

अचानक अमित को अपने काम से प्यार हो गया था I"

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

    

Views: 688

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on February 26, 2016 at 12:08am
वाह ! बड़ी ही रोचकता से आपने इस कथा की प्रस्तुति की है । चिंता ,चिंतन , सब साथ में , बिना कटोरे के ही , हाथ में थमा गया । यह तो सच है कि अनदेखा सा एक कटोरा सबके हाथ में होता है । माँगने का तरीका अलग है । बेहतरीन लघुकथा बनी है यह आपकी आदरणीय हरि प्रकाश जी । बधाई स्वीकार कीजियेगा ।
Comment by Rahila on February 25, 2016 at 9:24pm
बहुत बढ़िया आदरणीय दुबे सर जी! पढ़कर मजा आ गया । जहाँ बेहद कड़वी सच्चाई उजागर करती है रचना वही अपने हास्य पुट से मुस्कुराने पर मजबूर । बहुत बधाई ।सादर
Comment by Sushil Sarna on February 25, 2016 at 7:53pm

बहुत सुंदर आ.प्रकाश दूबे जी .... आपकी ये पंक्तियाँ इस लघुकथा में बहुत भाई ;;“अबे, जब मेरी ही बोहनी नहीं हुई तो तेरी कहाँ से करवा दूंI"
“कोई बात नहीं साहब, स्टाफ के लगते हो, अगली लाल बत्ती तक तो छोड़ दोI”.... हंसी भी आयी। खैर वर्तमान को जीती इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 25, 2016 at 7:45pm
सब माँग ही तो रहे हैं... कड़वी बात बढ़िया प्रस्तुति से कह डाली है आपने। हार्दिक बधाई आपको आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी।
Comment by Samar kabeer on February 25, 2016 at 2:50pm
जनाब हरि प्रकाश दुबे जी आदाब,इस शानदार प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें !
Comment by Pawan Jain on February 25, 2016 at 1:29pm

बहुत बढ़िया आदरणीय ,नमन ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service