“आज तो गज़ब की टाई पहनी है अमित, बहुत जम रहे हो यार, कहाँ से ली?”
“नेहरू प्लेस से लाया हूँ साले, 90 रूपये की है, चाहिये तो उतार दूं, बता?”
“अबे भड़क क्यों रहा है?, और सुबह-सुबह सिगरेट पर सिगरेट सूते चले जा रहा है, कोई टेंशन है क्या?”
“सॉरी यार, अभी बॉस ने मेरी तबियत से क्लास ले ली, दिमाग खराब कर दिया साले नेI”
“भाई इतनी गाली क्यों दे रहा है, क्या हो गया?"
“अरे यार, कह रहा है, आज अगर धंधा नहीं आया तो कल से आने की जरूरत नहीं है I”, ”पता नहीं किस मनहूस घड़ी में ये डायरेक्ट-सेल्स की नौकरी पकड़ ली, एक तो दर-दर जाकर भीख मांगो, ऊपर से इनकी सुनो, दूसरी नौकरी भी हाथ में नहीं है वरना आज ही इस्तीफा फेंक कर मार देता उस के मुंह पर I"
"क्यों टेंशन ले रहा है यार?, अबे कुछ नहीं तो शाम को एक फर्जी परचेज ऑर्डर....I"
“अबे! क्या बकवास कर रहा है?, चल छोड़, वरना फिर कहेगा की गाली दे रहा हूँ, शाम को मिलते हैं I"- कहकर वह अपनी मोटरसाईकिल स्टार्ट कर निकल गया पर थोड़ी ही दूर जाकर रेड लाइट पर अटक गया और तभी एक भिखारी पास आया और एक बड़ा सा कटोरा दिखा कर बोला “साहब, कुछ बोहनी ही करा दोI"
“अबे, जब मेरी ही बोहनी नहीं हुई तो तेरी कहाँ से करवा दूंI"
“कोई बात नहीं साहब, स्टाफ के लगते हो, अगली लाल बत्ती तक तो छोड़ दोI”
इतना सुनते ही अमित का चेहरा क्रोध से लाल हो गया वह कुछ कहता इससे पहले ही वह भिखारी कूद कर उसकी मोटरसाईकिल के पीछे बैठ गया और उसने अपना कटोरा हेलमेट की तरह सर पर रख लिया और बोला, चलो भी साहब बत्ती हरी हो गयी है I"
“अजीब जबरदस्ती है, चल आगे बताता हूँ तुझे I",और उसने थोड़ी ही दूर पर, एक पार्क के सामने गाडी लगा दी और गुस्से से बोला, “अब बता बे, स्टाफ किसे कह रहा था, और शर्म नहीं आती भीख मांगते हुए,कुछ काम क्यों नहीं कर लेता, दिमाग से पैदल है क्या?”
“अरे आप तो बुरा मान गए साहब, अब देखिये ना आप टाई पहन कर मांग रहे हैं और मैं कटोरा लेकर, और शर्म कैसी अरे दुनिया मांग रही है, कोई वोट, कोई नोट तो कोई धंधा और तो और लोग तो हमारे उद्धार के लिए ही चंदा मांग रहे हैं, मैं भी मांगता हूँ कोई चोरी- डकैती या घोटाला तो करता नहीं, हाँ! मेहनत करता हूँ, अरे कोई नहीं देता है तो क्या?, मेरा कटोरा तो छीन नहीं लेता, दूसरे से मांगता हूँ, इधर नहीं मिलता तो दूसरी जगह जाकर मांगता हूँ, साहब दिन भर फिरता हूँ, तभी चरता हूँ I"
“अच्छा ठीक है, चल मैं भी निकलता हूँ, तू ठीक कह रहा है ‘जो फिरता है वही चरता है’I"
अचानक अमित को अपने काम से प्यार हो गया था I"
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
बहुत सुंदर आ.प्रकाश दूबे जी .... आपकी ये पंक्तियाँ इस लघुकथा में बहुत भाई ;;“अबे, जब मेरी ही बोहनी नहीं हुई तो तेरी कहाँ से करवा दूंI"
“कोई बात नहीं साहब, स्टाफ के लगते हो, अगली लाल बत्ती तक तो छोड़ दोI”.... हंसी भी आयी। खैर वर्तमान को जीती इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।
बहुत बढ़िया आदरणीय ,नमन ।
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