For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सोने का संसार !

उषा छिप गयी नभस्थली में,

देकर यह उपहार !

लघु–लघु कलियाँ भी प्रभात में,

होती हैं साकार !

प्रातः- समीरण कर देता है,

नव-जीवन संचार !

लोल-लोल लहलही लतायें,

नव-जीवन-संचार !

झुकी जा रही हैं ले तन में,

नव यौवन का भार !

भ्रमर छूटकर पंकज दल से,

करने लगे विहार !

भानु-करों ने खोल दिया है ,

काराग्रह का द्वार

कल-किरणें हैं शयन-सदन की ,

मंजुल वंदनवार !

सजनी रजनी की सुख स्मृति ही,

बस अब है आधार !

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित

  

Views: 974

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on February 11, 2015 at 9:17pm

उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी साहब सादर ! एक निवेदन है अपने नाम की हिंदी में लिपि  टाइप कर के भेज दें ! 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 11, 2015 at 8:58pm

आदरणीय डॉ आशुतोष जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, आपका विश्लेषण सही है , देखिये मंच पर ही सीख रहा हूँ , मार्दर्शन करते रहिएगा ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 11, 2015 at 8:57pm

प्रिय सोमेश भाई आपकी प्रतिक्रिया, उत्साहवर्धन और सराहना हेतु दिल से आभार.

 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 11, 2015 at 8:55pm

आदरणीया प्रतिभा त्रिपाठी जी , रचना पर आपकी उपस्तिथी ,उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार  , सादर!

 

Comment by khursheed khairadi on February 10, 2015 at 11:32pm

लोल-लोल लहलही लतायें, सजनी रजनी की सुख स्मृति ही, लघु–लघु कलियाँ भी प्रभात में,

आदरणीय हरिप्रकाश जी सुन्दर कविता में बहुत  ही सुन्दर मनभावन अनुप्रास की छठा बिखेरी गई है ,हार्दिक बधाई |सादर अभिन्दन | 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 10, 2015 at 7:43pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु  सादर धन्यवाद ! 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 10, 2015 at 7:41pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया सर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु  आपका हार्दिक आभार ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 10, 2015 at 7:38pm

रचना की मुक्तकंठ से प्रशंसा हेतु हार्दिक आभार भाई मिथिलेश वामनकर जी। आपका सुझाव भी शिरोधार्य है ,ठीक करता हूँ ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 10, 2015 at 7:33pm

आदरणीया सविता मिश्रा जी, रचना की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार ! सादर 

Comment by somesh kumar on February 9, 2015 at 10:54pm

सुंदर शब्दों में प्रभात कल का मनोहरी वर्णन |सुंदर प्रस्तुति पर बधाई भाई जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service