“छोटी आज सुबह से ही सज धज कर बैठी थी, उसने बहुत ही सुन्दर राखी खरीद कर पहले ही रख ली थी, थाली में रोली, चावल, दीया- बाती और मिठाई सजा कर बैठी थी, आज कई दिनों बाद उसका राजा भईया आ रहा था, आज ‘रक्षाबंधन’ जो था !”
“तभी उसके मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी ,एक एस.ऍम.एस था.. “हे छोटी ,हैप्पी रक्षाबंधन टू यू”, सॉरी आज नहीं आ पाऊंगा तुम्हारी भाभी को लेकर ससुराल आ गया हूँ , मॉम, डैड को हेलो कहना , लव यू बाय !”
“छोटी ने लैपटॉप उठाया ,एक अटैचमेंट बनाया ,मेल किया , भाई को एस.ऍम.एस किया “भईया, राखी मेल में भेज दी है ,प्रिंटआउट निकाल कर बाँध लेना , लव यू टू !”
“ इधर मिठाई मैं न जाने कहाँ से चीटियाँ आ गयीं थी !”
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित”
Comment
आदरणीया वंदना जी इस लघुकथा पर आपकी प्रतिक्रिया ,प्रोत्साहन के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ! सादर
आदरणीया राजेश कुमारी जी ,आपकी बधाई सहर्ष शिरोधार्य है. आपका ह्रदय से आभार, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा ,सादर!
आदरणीय अनुराग गोयल जी ,इस लघुकथा पर आपकी प्रतिक्रिया ,प्रोत्साहन के लिए आपका धन्यवाद !
आदरणीय खुर्शीद खैरादी साहब आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
आदरणीय गुमनाम भाई आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ ,हार्दिक धन्यवाद !
आदरणीय वीरेन्द्र वीर मेहता जी , आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया सर, आपके प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपका हार्दिक आभार ! सादर
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर,आपकी उत्साहवर्धक और प्रेरणादायी टिप्पणी के लिए हृदय से धन्यवाद , सादर ।
आदरणीया सविता मिश्रा जी, रचना की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार ! सादर
आदरणीय विश्व राज सिंह राठौर जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
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