समय
साक्षी है
अतीत का
वर्तमान का
मैं सिर्फ इसके
साक्ष्य को
दोहरा रहा हूँ
इसके लिखे गीतों को
गुनगुना रहा हूँ !
समय
ने बाँध दिया
जीवन और
मृत्यु की
डोर से मुझको
और मैं
पतंग की तरह
हवाओं में,
लहरा रहा हूँ !
धागा
ये प्रेम का
बड़ा नाजुक है
टूट ना जाये कहीं
ये सोच के
घबरा रहा हूँ
वो जैसे नचा रहा है
मैं वैसे नाच रहा हूँ !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया साहब बहुत बहुत धन्यवाद आपका ! सादर
आदरणीय गिरिराज सर,आपकी उत्साहवर्धक और प्रेरणादायी टिप्पणी के लिए हृदय से धन्यवाद आभार।
आदरणीया सविता मिश्र जी , आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हृदय से धन्यवाद । सादर
आदरणीय मिथिलेश भाई , आपका बहुत बहुत आभार , आपके मार्गदर्शन से एक पंक्ति बढ़ा दी है , धन्यवाद आपका ! सादर
आदरणीय Anurag Goel जी आपका बहुत - बहुत धन्यवाद
आदरणीय विश्वराज भाई,बहुत -बहुत धन्यवाद आपका !
आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi सर आपकी उत्साहवर्धक और प्रेरणादायी टिप्पणी के लिए हृदय से धन्यवाद आभार। सादर
बहुत सुंदर, आदरणीय हरिप्रकाश जी. सब कुछ समय ही है. बधाई स्वीकारें
आदरणीय हरि भाई , सभी का यही हाल है , समय नचाता है , हम नाचते हैं । सुन्दर रचना लगी ! बधाइयाँ ।
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ
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