सुबह शाम
दफ्तर काम
ढलता सूरज
उगता चाँद
रात, तुम्हारी याद
आखों से बरसात !!
कभी भूख
कभी प्यास
कभी हर्ष
कभी विषाद
तन्हाई, रात वीरान
सुलगते हुए अरमान !!
तन्हा सफर
स्ट्रीट लाईट
पाखी जलता
मन मचलता
प्यास, बैचैन करवटें
बिस्तर पर सिलवटें !!
उगता सूरज
आँखें लाल
वही सवाल
वही मदहोशी
गुम, खुद में कहीं
नहीं सुध किसी चीज़ की !!
फिर वही
सिलसिला
सुबह शाम
दफ्तर काम
ढलता सूरज
उगता चाँद
रात, तुम्हारी याद
आखों से बरसात !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीया परी जी, रचना पर आपकी उपस्थिति और आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ! सादर
आदरणीय डॉ आशुतोष जी,रचना पर आपकी उपस्थिति और प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार ! सादर !
आदरणीय मुकेश जी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर ,रचना पर आपकी उपस्थिति और प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार ! सादर !
आदरणीया राजेश कुमारी जी ,आपकी बधाई सहर्ष शिरोधार्य है. आपका ह्रदय से आभार,अपना स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा ,सादर!
आदरणीय खुर्शीद खैरादी साहब आपकी सुन्दर विस्तृत प्रतिक्रिया से उत्साह मिला आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर
आदरणीय सुशील सरना सर आपकी अत्यंत उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पाकर बहुत मनोबल मिला, आपका आभारी हूँ सादर! "
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर, हृदय से धन्यवाद , सादर
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, आपकी प्रतिक्रिया से हमेशा उत्साह मिलता है आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर
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