राहुल ने जैसे ही रात को घर में कदम रखा वैसे ही उसका सामना अपनी धर्मपत्नी ‘कविता’ से हो गया । उसे देखते ही वह बोली “देख रही हूं आजकल, तुम बहुत बदल गए हो, मुझसे आजकल ठीक से बात भी नहीं करते हो ।”
नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, बस जरा काम का बोझ कुछ ज्यादा ही लग रहा है ।”
ये बहाना तो तुम कई दिनों से बना रहे हो, हाय राम ! कहीं तुम मुझसे कुछ छुपा तो नहीं रहे हो, “कौन है वो करमजली?”
यह सुनते ही राहुल का पारा चढ़ गया उसने झुंझुलाते हुए कहा “कविता, तुम ये बकवास बंद करो और ये टेसुए बहाना भी, कहा ना ! बस किसी वजह से परेशान हूँ ।”
राहुल का मिज़ाज गर्म होता देख वह प्यार से बोली, अरे गुस्सा क्यों होते हो, मैं हूँ ना, तुम बताओ तो सही समस्या क्या है, शायद मैं तुम्हारी परेशानी दूर कर सकूँ, बताओ ना राहुल ।
अब राहुल ने कहा ! तो लो सुनो – “कस्टम में शिपमेंट अटक गयी है, एक तो बाजार में कोई नया खरीदार नहीं है, ऊपर से दिया गया उधार भी वापस नहीं आ रहा है, एक तो अकाउंटेंट भी रोज़ गोली दे रहा है साला... ऑफिस ही नहीं आ रहा है, ऊपर से टीडीएस रिटर्न, सम्पति कर , आयकर, जीएसटी रिटर्न सब फाइल करना है, सीलींग का लफड़ा और फंस गया है, अब दो मुझे समाधान की क्या करूँ?”
अचानक एक लम्बे सन्नाटे के बाद कविता बड़े प्यार से बोली – “सुनिए आपकी वो बोतल जो मैंने छुपा के रख दी थी ले आती हूँ, केवल दो ही पेग मारना हाँ, और अब तो वैसे नवरात्रे भी समाप्त हो गए हैं । इतना कहकर वो चुपचाप किचन की तरफ बढ़ गयी ।
"मौलिक व अप्रकाशित"
© हरि प्रकाश दुबे
Comment
aabhar aadarniya surender insan ji 1SADAR
आदरणीय आपकी रचना पढ़ी । बहुत उम्दा। अच्छा शीर्षक रखा आपने। कामयाब रचना। हर सिक्के के दो पहलू होते है अक्सर एक ही देखा जाता है। और जब दूसरा पहलू सामने आता है तो सच्चाई से मुह मोड़ा जाता है। आपकी रचना में व्यंग्य भी है और एक सार्थक संदेश भी । बहुत बहुत बधाई आपको।
आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani साहब, आपने रचना का मर्म समझा और आपका समीक्षात्मक विवेचन लाजवाब है ! एक प्रश्न मन में आ रहा है कि क्या यह हरदम जरूरी है कि लघुकथा का अंत सकारात्मक ही होना चाहिए? क्या सहज भाव काफी नही है? क्या इस तरह हम इस विधा को नैतिक शिक्षा के रूप में तो परिवर्तित नहीं कर रहे? एक जिज्ञासा! बाकी आपने रचना पर को सुझाव दिए हैं,उस दिशा में प्रयास करूंगा! आपका हार्दिक आभार ! सादर !
आदरणीय Samar kabeer साहब, उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत धन्यवाद! सादर अभिवादन।
आदरणीया KALPANA BHATT ('रौनक़') जी, इसे दुसरे व्यंगात्मक दृष्टिकोण से देखिये की एक गृहणी जिसे व्यापार की समझ नहीं है और वह समाधान देने की कोशिश कर रही है पर समस्याओं को सुनते ही उसे समझ ही नहीं आता की क्या करे तो वह पिंड छुडाकर अपने काम में लगना ही ठीक समझती है, मतलब जिसका काम उसी को साजे ! सादर आभार।
आदरणीय Mohammed Arif साहब शुक्रिया आपका, पूरी कोशिश करूंगा आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने का! सादर!
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी, यह समाधान लगता है आपको पसंद नहीं आया, निवेदन है एक बार आप इसे फिर से पढ़ें,इससे मुझे फिर से आपकी राय जानने का मौका मिलेगा , हार्दिक आभार आपका ! सादर।
आदरणीय VIRENDER VEER MEHTA Bhai साहब आपने कई बार समझाया था कि whatsapp पर कलाकारी मत करो,यह फिर से उसी गलती का खामियाजा है:-) क्या लघुकथा vayangaatmak नहीं हो सकती है, यह जिज्ञासा है ! रचना पर आपकी अमूल्य टिप्पणी के लिए आभार ! सादर!
somesh kumar जी, आपकी बात शत प्रतिशत सही है,यह मजाक - मजाक में मैंने ही हिंगलिश में अपने कुछ फ्रेंड्स ग्रुप में ब्रॉडकास्ट कर दी थी पर शब्द इतने विस्तारित नहीं थे ,दरअसल लैपटॉप की हार्ड डिस्क क्रैश हो गई है और मैं उस समय नॉएडा में था ,सेल फोन से ठीक से लिख नहीं पाता हूं, अब रही रचना की बात तो कल हरिद्वार में बैठकर इसे लिखा ,और बेहतर हो सकता था, पर लिखते समय जो प्रवाह बना वही आपके सामने है, आपकी बातों से सहमत ! सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online