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लाल सलाम: लघुकथा : हरि प्रकाश दुबे

घने जंगलों के बीच जगह जगह लाल झंडे लगे हुए थे. सैनिकों की जैसी वर्दी में कुछ लोग आदिवासियों को समझा रहे थे, “सुनो इस जंगल, जमीन और सारे संसाधनों पर सिर्फ तुम्हारा और तुम्हारा ही हक़ है, इन पूंजीपतियों के और इनकी रखैल सरकार के खिलाफ, हम तुम्हारे लिए ही लड़ रहें है, इनको तो हम नेस्तनाबूद कर देंगें !”

“पर कामरेड अब तो सरकार हम पर ध्यान दे रही है, सड़क पानी उद्योग की व्यवस्था भी कर रही है, क्यों न इस लड़ाई को छोड़ दिया जाए, वैसे भी सालों से कितना खून बह रहा है?”

“चुप हरामजादी, तेरे मुहँ से बगावत की बू आ रही है, ‘कल्याणी’ अगर तू महिला विंग की कमांडर न होती तो तेरी जान ले लेता साली, कहकर कामरेड ने उसके मुहँ पर एक थप्पड़ जड़ दिया !”

इस से पहले बात आगे बढ़ती तभी जंगलों के बीच से अचानक, एक ‘स्वयंभू जनरल’ कुछ हथियारबंद लोगों के साथ प्रकट हुआ और, लाल सलाम, लाल सलाम के नारों से जंगल गूँज उठा !

‘स्वयंभू जनरल’ कुछ किताबें लाया था, उसने सिंह की तरह गर्जन किया- “लाल सलाम का नारा, तभी सफल होगा, जब इस सम्पूर्ण राज्य पर हमारा राज होगा और उसे पाने के लिए ‘खून’ बहाना पड़ेगा जिसके लिए हमे आधुनिक हथियार चाहियें, और उनके लिए पैसा!”

आनन-फानन में जिसके पास जो था उसने अपना पैसा ,गहना सब देकर एक-एक किताब खरीद ली! अंत में एक किताब बच गयी !

‘स्वयंभू जनरल’ ने ललकार लगाईं, “लगाओ बोली कमाण्डरों-अब तुम्हारी बारी, पर ध्यान रखो, इस पर में अपने खून से हस्ताक्षर कर के दूंगा!”

उसकी बात सुनते ही बोली लगाने वालों की आवाजें उठीं ! “एक–लाख”. दूसरा स्वर गूंजा “दो-लाख” तीसरी आवाज ‘कल्याणी’ की आई “सात-लाख”, इतना सुनते ही सभी लोग हतप्रभ रह गए,अब बारी कल्याणी की थी!

उसने कहा “मेरी जमीन पर जो हाईवे निकला है, उसका मुआवजा है यह, मैं अपना सबकुछ नीलाम कर दूँगी पर यह मुझे ही चाहिये !

‘स्वयंभू जनरल’ ने अपनी उँगली पर काँटा चुभाया और अपने खून से उस आखिरी किताब पर हस्ताक्षर किये और कल्याणी को गले लगाते हुए दे दी, तभी एक जबरदस्त धमाके के साथ सभी के चीथड़े उड़ गए!

कल्याणी ने जनरल के कान में धीरे से कहा था “जय हिन्द!”

"मौलिक व अप्रकाशित"

© हरि प्रकाश दुबे       

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Comment by Mohammed Arif on August 7, 2017 at 8:33am
आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी आदाब, लाजवाब , विचारोत्तेजक लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 6, 2017 at 10:04am
"लाल सलाम" और कल्याणी द्वारा "कल्याणकारी" त्याग/बलिदान। बहुत बढ़िया अनुपम भावपूर्ण सृजन के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी। प्रवाहमय विचारोत्तेजक रचना शुरू से अंत तक बांधे रखती है। सादर।
Comment by Samar kabeer on August 5, 2017 at 3:25pm
जनाब हरि प्रकाश दुबे जी आदाब,अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
कृपया पटल पर अपनी सक्रियता बनाएं ।

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