For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज उसे अपने वादे के मुताबिक अपनी पत्नी के साथ पास के एक माॅल में ही फिल्म देखने जाना था। कुछ ज्यादा उत्साहित तो नहीं था, लेकिन फिर भी अपनी पत्नी के लिए कुछ 'खास' करने की खुशी उसके चेहरे पर दिखाई दे रही थी। आॅफिस की नोंक झोंक और रास्ते में ट्रैफिक की रोक टोक जैसी बाधाओं को पार कर, जब वो घर पहुंचा तो अत्याधिक शांति पाकर थोड़ा ठिठक सा गया। हाॅल में घुसते ही, एक जाना पहचाना चेहरा जो शायद कुछ किलोमीटर दूर रहता था, सामने आ गया।

"अरे... मां तुम?"

"हां, आज तुम दोनों की सालगिरह है ना। मैंने सोचा तुम्हें आॅफिस से तो वक्त मिलता नहीं, तो क्युं ना मैं खुद हीं शुभकामनाएं दे आंऊ।"

पत्नी के चेहरे पर दिखावटी मुस्कान देखकर उसे आने वाली प्रलय का अंदाजा हो गया था।

"लेकिन मां, हमने तो आज बाहर जाने का प्लान बनाया था।"

"कोई बात नहीं, मैंने भी बहुत दिनों से बाहर का खाना नहीं खाया और अब अकेले बनाकर खाने का जी भी नहीं करता। चलो, आज सब मिलकर खाना खाते हैं।"

अब मसला और भी गंभीर हो गया। पत्नी की नज़र मेज़ पर रखे नाईट शो की टिकटों पर थी, और उसकी नजर अपनी पत्नी पर।

तभी हंसी के साथ आई उस आवाज ने माहौल हल्का कर दिया।

"मैं मज़ाक कर रहीं हुं। मुझे मालूम है कि आज तुम दोनों अकेले जाना पसंद करोगे! जाओ।"

एक मुस्कान के साथ, उम्र की लालिमा लिए उस बुजुर्ग औरत ने अपनी जिंदगी की सारी तकलीफ़ों को परे रखकर, इस शख्स को काबिल बना दिया , इतना काबिल कि आज महीनों तक अपनी मां को देखे बगैर वो सुकुन से जीए, और अपनी खुशियां भी अपनी मां के बगैर हीं मना सके।

भारी कदमों के साथ बाहर आते हीं, मुस्कुराते से उस चेहरे पर आंसुओं की दो चार बुंदें स्वतः हीं छलक उठीं।

(c) हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 573

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on November 1, 2018 at 9:56pm

आदरणीय  Samar kabeer सर , आदरणीय विनय कुमार भाईसाहब ,आदरणीय TEJ VEER SINGH जी ,आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी ,आदरणीय  narendrasinh chauhan जी आप सभी का हृदय की अतल  गहराइयों से हार्दिक आभार ! सादर 

Comment by narendrasinh chauhan on September 12, 2018 at 1:33pm

बहोत खूब सुन्दर रचना । हार्दिक बधाई ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 12, 2018 at 6:11am

आ. भाई हरि प्रकाश जी, अच्छी कथा हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 11, 2018 at 12:08pm

हार्दिक बधाई आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी।बेहतरीन लघुकथा।विवाहित जीवन की सच्चाई थोड़ी कड़वी है क्योंकि आदमी को शादी के बाद बीवी और माँ के बीच तालमेल बिठाने में बहुत कशमकश का सामना करना पड़ता है।

Comment by Samar kabeer on September 11, 2018 at 12:07pm

जनाब हरिप्रकाश दुबे जी आदाब, बहुत समय बाद आपको पटल पर देखकर प्रसन्नता हुई,इतने दिन कहाँ रहे भाई?

बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by विनय कुमार on September 10, 2018 at 7:10pm

वाह, वाह, बहुत गजब की लघुकथा लिखी है आपने, शानदार. आखिरी पैरा ने तो रचना में चार चाँद लगा दिया. बहुत बहुत बधाई आ हरी प्रसाद दुबे जी इस बेहतरीन रचना के लिए

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service