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तिरंगे का सौदा :लघुकथा: हरि प्रकाश दुबे

सर्द रात में कोहरे को चीरती हुईं कई गाड़ियाँ, आपस में बतियाती हुयीं शहरों की झुग्गियों में कुछ ढूँढ रहीं थी तभी अचानक !

 

“अबे गाड़ी रोक, बॉस का फ़ोन आ रहा है I”

 

ड्राईवर ने कस कर ब्रेक दबा दिया और धमाके के साथ “जी, साहब , कहते ही आदमी फ़ोन सहित गाडी के बाहर I”

 

“अबे ! यह धमाका कैसा सुनाई दिया, जिन्दा हो या फ्री में खर्च हो गए ?”

 

“नहीं जनाब, सब ठीक है, लगभग सब काम हो गया है, सारे छुटभैये नेता खरीद लिए हैं!” “अल्लाह ने चाहा तो काफी भीड़ इकठ्ठी हो जायेगी!”

 

“और झंडे कितने इकट्ठे हुए?”

 

“साहब पाकिस्तान के हजार हो गयें है !”

 

“और भारत के?” ........इस सवाल पर गहरा सन्नाटा पसर जाता है, उधर से फ़ोन पर कड़कती आवाज आती है, अरे*****साँप सूंघ गया क्या?” साले जलाना तो उन्ही झण्डों को है, कुछ तो बोल !”

 

“जनाब “तिरंगे का सौदा’ नहीं हो पाया, अपने ही धर्म का है साला, मगर मान नहीं रहा है, कह रहा है चाहो तो गोली मार दो पूरे परिवार को मगर “तिरंगे का सौदा” नहीं करूंगा !”   

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

 

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Comment by Hari Prakash Dubey on July 16, 2017 at 7:09pm

रचना पर आपके उत्साहवर्धन से मन प्रसन्न हो गया आदरणीय Samar kabeer सर ! हार्दिक आभार आपका ! सादर

 

Comment by Hari Prakash Dubey on July 16, 2017 at 7:00pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर ! सादर 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 16, 2017 at 4:11pm

कहीं कहीं अधूरी सी लग रही है कथा | सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on July 16, 2017 at 3:45pm

आभार आदरणीय  Mohammed Arif  साहब ! सादर 

Comment by Nita Kasar on July 14, 2017 at 2:42pm
देशप्रेम से लबरेज़ कथा के लिये बधाई आ हरिप्रसाद दुबे जी ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 13, 2017 at 9:16am
भाई हरिप्रकाश जी अच्छी लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।
Comment by Mahendra Kumar on July 12, 2017 at 8:02pm

आ. हरि प्रकाश जी, आपकी लघुकथा का अन्त इसकी जान है, मगर कुछ बातें अस्पष्ट हैं या मुझे समझ में नहीं आयीं जैसे धमाका क्यों और किसने किया और सर्द रात में इतनी गाड़ियाँ झुग्गियों में क्या ढूंढ रही रही थीं? इस प्रस्तुति पर मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Samar kabeer on July 11, 2017 at 10:48pm
जनाब हरि प्रकाश दुबे जी आदाब,बहुत दिनों बाद आपकी रचना के दर्शन हुए,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
एक निवेदन ये है कि कृपया मंच पर अपनी सक्रियता बनाये रखें,ये हमारी ज़िम्मेदारी है ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 11, 2017 at 8:59pm

आदरणीय , बहुत  बढ़िया विषय मज़ा गया .

Comment by Mohammed Arif on July 11, 2017 at 8:09am
आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी आदाब, बहुत ही कटाक्षपूर्ण , देशभक्ति का भाव जगाती लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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