For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तिरंगे का सौदा :लघुकथा: हरि प्रकाश दुबे

सर्द रात में कोहरे को चीरती हुईं कई गाड़ियाँ, आपस में बतियाती हुयीं शहरों की झुग्गियों में कुछ ढूँढ रहीं थी तभी अचानक !

 

“अबे गाड़ी रोक, बॉस का फ़ोन आ रहा है I”

 

ड्राईवर ने कस कर ब्रेक दबा दिया और धमाके के साथ “जी, साहब , कहते ही आदमी फ़ोन सहित गाडी के बाहर I”

 

“अबे ! यह धमाका कैसा सुनाई दिया, जिन्दा हो या फ्री में खर्च हो गए ?”

 

“नहीं जनाब, सब ठीक है, लगभग सब काम हो गया है, सारे छुटभैये नेता खरीद लिए हैं!” “अल्लाह ने चाहा तो काफी भीड़ इकठ्ठी हो जायेगी!”

 

“और झंडे कितने इकट्ठे हुए?”

 

“साहब पाकिस्तान के हजार हो गयें है !”

 

“और भारत के?” ........इस सवाल पर गहरा सन्नाटा पसर जाता है, उधर से फ़ोन पर कड़कती आवाज आती है, अरे*****साँप सूंघ गया क्या?” साले जलाना तो उन्ही झण्डों को है, कुछ तो बोल !”

 

“जनाब “तिरंगे का सौदा’ नहीं हो पाया, अपने ही धर्म का है साला, मगर मान नहीं रहा है, कह रहा है चाहो तो गोली मार दो पूरे परिवार को मगर “तिरंगे का सौदा” नहीं करूंगा !”   

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

 

Views: 579

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on July 16, 2017 at 7:09pm

रचना पर आपके उत्साहवर्धन से मन प्रसन्न हो गया आदरणीय Samar kabeer सर ! हार्दिक आभार आपका ! सादर

 

Comment by Hari Prakash Dubey on July 16, 2017 at 7:00pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर ! सादर 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 16, 2017 at 4:11pm

कहीं कहीं अधूरी सी लग रही है कथा | सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on July 16, 2017 at 3:45pm

आभार आदरणीय  Mohammed Arif  साहब ! सादर 

Comment by Nita Kasar on July 14, 2017 at 2:42pm
देशप्रेम से लबरेज़ कथा के लिये बधाई आ हरिप्रसाद दुबे जी ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 13, 2017 at 9:16am
भाई हरिप्रकाश जी अच्छी लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।
Comment by Mahendra Kumar on July 12, 2017 at 8:02pm

आ. हरि प्रकाश जी, आपकी लघुकथा का अन्त इसकी जान है, मगर कुछ बातें अस्पष्ट हैं या मुझे समझ में नहीं आयीं जैसे धमाका क्यों और किसने किया और सर्द रात में इतनी गाड़ियाँ झुग्गियों में क्या ढूंढ रही रही थीं? इस प्रस्तुति पर मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Samar kabeer on July 11, 2017 at 10:48pm
जनाब हरि प्रकाश दुबे जी आदाब,बहुत दिनों बाद आपकी रचना के दर्शन हुए,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
एक निवेदन ये है कि कृपया मंच पर अपनी सक्रियता बनाये रखें,ये हमारी ज़िम्मेदारी है ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 11, 2017 at 8:59pm

आदरणीय , बहुत  बढ़िया विषय मज़ा गया .

Comment by Mohammed Arif on July 11, 2017 at 8:09am
आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी आदाब, बहुत ही कटाक्षपूर्ण , देशभक्ति का भाव जगाती लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
8 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
11 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
22 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service