For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तमाचा : लघुकथा : हरि प्रकाश दुबे

सर्द सुबह में गुनगुनी धूप आज विधायक ‘बाबू राम’ के सरकारी बंगले पर मेहरबान थी, ‘बाबू राम’ जी, जो अब मंत्री भी बन चुके थे अपने सफ़ेद कुरते, पायजामे के साथ नीली जैकेट पहन, इत्र छिड़क कर अपने आप को शीशे में निहार-निहार कर आत्ममुग्ध हुए जा रहे थे तभी उनके नौकर ‘हरिया’ ने आवाज़ लगाई, “साहब ! साहब ! नाश्ता तैयार है।”

 

“अच्छा तो बाहर गार्डन में लगा दे और सुन ! जरा अखबार भी लेते आना, देखें क्या खबर है आज अपनी।”

 

जी सरकार, ...कहकर ‘हरिया’ चला गया और मंत्री महोदय बाहर जाकर गोल मेज पर टांग पसार कर कुर्सी पर पड़ गए, ‘हरिया’ एक कप चाय के साथ अखबार रख गया और ‘बाबू राम’ खुद को अखबार में खोजने लग गए, तभी अचानक कुछ हो-हल्ला सुनकर उनकी तन्मयता टूटी और उन्होंने देखा बाहर गेट पर कुछ लोग सुरक्षाकर्मीयों से उलझ रहे हैं अब मंत्री जी चिल्लाये.. “अबे.. ‘हरिया’ ! ‘हरिया’, अबे देख तो सही बाहर, क्या पंचायत चल रही है ?”

 

‘हरिया’ गोली की तरह गेट की तरफ भागा और वापस आकर बोला- “सरकार कुछ लोग आपसे मिलना चाह रहे हैं, पर गार्ड लोग उनको आने नहीं दे रहे हैं, कह रहे हैं साहब से दफ्तर में मिलना, पर वो लोग मान नहीं रहें हैं, कहतें हैं आपके गावं / क्षेत्र के लोग हैं और आपसे घर पर ही मिलने की बात हुई थी।”

 

“अरे भूल गया था, ब्राहमण समाज के लोग होंगे, जा, जल्दी से भेज, अबे वोट बैंक हैं हमारे यार ।”

 

“आइये-आइये पाण्डेय जी, आप सभी लोगों को दण्डवत् प्रणाम, आज तो हम धन्य हो गए, साक्षात देवता लोग पधारे हैं, अबे ‘हरिया’ जल्दी से आप लोगों के बैठने की वयवस्था कर, और बताइये पाण्डेय जी कैसे आना हुआ ?”

 

“कुछ नहीं ‘बाबू राम’ जी ये अपने क्षेत्र की कुछ समस्यायें हैं, लिखकर लाये हैं, उधर कोई सुन ही नहीं रहा है इसीलिए.. ।”

 

“आप लोग काहें चिंता करते हैं, समझिये सब काम हो गया, हम देख लेंगें सब, बस अभी आप लोगों के स्नान-ध्यान और भोजन पानी का प्रबन्ध करवाते हैं, बताइये क्या खाएंगे ?”

इधर सब एक दूसरे का मुहँ ताकने लगे और थोड़ी देर के लिए मौन पसर गया कुछ देर बाद पाण्डेय जी ने कहा..........अरे ‘बाबू राम’ जी बस अब इजाज़त दीजिये ।

 

“अरे ऐसे कैसे ? आप लोग इतनी दूर से आये हैं बिना खाए तो हम आपको जाने ही नहीं देंगे, अरे हम समझ रहे हैं, हमारे यहाँ आप क्यों नहीं खाना चाहतें हैं? पर निश्चिंत रहिये।”

“अबे हरिया, सुन तो जरा, वो अपना खानसामा महाराज पंडित है ना ?”.. जी साहब, हरिया ने कहा ।

तब ठीक है, उसी से साहब लोगों के लिए बढ़िया खाना बनवा और ठीक से समझ ले, खाना भी वही परोसेगा, और हाँ सब नए बर्तन में और पानी भी बोतल वाला मंगवा दे, ये देवता लोग हैं, कवनो तकलीफ नहीं होनी चाहिये ।”

 

सबके मुँह पर एक –एक तमाचा पड़ चुका था, किसी के समझ नहीं आ रहा था कि कोई इतिहास दोहरा रहा है या इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है ।  

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

       

         

Views: 573

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on February 23, 2016 at 9:29am
गजब का वाक्य - विन्यास देखने को मिला आपकी इस लघुकथा में । जाति भेद पर यह बढिया व सार्थक तमाचा हुआ है आपका आदरणीय हरि प्रकाश जी । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 22, 2016 at 12:52pm
बहुत बढ़िया प्रस्तुति है, बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी। शीर्षक पढ़कर ही पाठक पूर्वानुमान से कथा पढ़ने लगता है तो कथा का अंत पहले ही समझ आ जाता है। अतः सार्थक सटीक होते हुए भी मेरे विचार से शीर्षक कुछ और ही रखना था। सादर
Comment by Archana Tripathi on February 22, 2016 at 10:24am
बढ़िया कथा और करारा तंज कसा हैं आपने अपनी कथा से हार्दिक बधाई
Comment by Samar kabeer on February 21, 2016 at 3:10pm
जनाब हरी प्रकाश दुबे जी आदाब,बहुत अच्छी लगी आपकी लघुकथा बधाई स्वीकार करें !
Comment by Manan Kumar singh on February 20, 2016 at 8:31am
बढ़िया संदेश,बधाई!
Comment by Rahila on February 19, 2016 at 8:32pm
सुन्दर लघुकथा हुई आदरणीय दुबे सर जी!बहुत अच्छा विषय और बेहतरीन तंज के साथ रचना के प्रवाह ने चार चांद लगा दिये । बहुत बधाई ।सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service