For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मगरमच्छ : कहानी : हरि प्रकाश दुबे

नीली बत्ती की एक अम्बेसडर कार तेजी से आकर रुकी और ‘साहब’ सीधा निकलकर अपने केबिन में चले गए ! पीछे – पीछे ‘बड़े-बाबू’ भी केबिन की तरफ भागे ! तभी एक आवाज आई ,“ क्या बात है ‘बड़े-बाबू’ बड़े पसीने से लतपथ हो , कहाँ से आ रहे हो ?”

“ पूछो मत ‘नाज़िर भाई’ , नए ‘साहब’ के साथ गाँव- गाँव के दौरे पर गया था, राजा हरिश्चंद्र टाईप के लग रहें हैं, मिजाज भी बड़ा गरम दिख रहा है, आपको भी अन्दर तलब किया है , आइये , मनरेगा, जल-संसाधन और बजट वाली फ़ाइल भी लेते हुए आइयेगा ! “

“ठीक है, आप चलिए मैं आ रहा हूँ !”

क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ ‘साहब’ ?

“आइये –आइये ‘बड़े-बाबू ’,.... ‘नाज़िर भाई’ कहाँ है ?... ये लीजिये आ ही गए आपके पीछे-पीछे, बैठिए- बैठिए, और हाँ ‘बड़े-बाबू’ जरा राजू को बुलाइए, AC  चला देगा, और जरा ये दरवाजा बंद कर दीजिये !”

“जी साहब, अभी बुलाता हूँ !” राजू ,....अबे राजू ..., अबे ‘साहब’ के कमरे का AC चला और ३ ठंढ़ा ले के आ जल्दी से, और हाँ दरवाजा बंद कर दे ,किसी को अन्दर मत आने देना , मीटिंग चल रही है !”

राजू भी गोली सी तीव्र गति से गया और सब काम निपटा कर दरवाजा बंद कर के बाहर दरबान की तरह खड़ा हो गया, इसी बीच ‘साहब’ ने सभी फाइलों को उलट –पुलट कर देखा लिया था  !

“ हाँ ,तो ‘नाज़िर भाई’, और ‘बड़े-बाबू’ आप भी , जरा बताइए ये खेल है क्या ?”

“नाज़िर भाई बोले, साहब, कुछ समझा नहीं, आखिर हुआ क्या ?”

अब ‘बड़े-बाबू’ बोले , “अरे ‘नाज़िर भाई’, आपको याद है वो जो सक्सेना साहब के समय टेंडर हुआ था गाँव- गाँव में तालाब बनाने का , उसमे वो ‘शाहपुर’ गाँव वाला तालाब नहीं मिल रहा है !”

“अरे ‘बड़े-बाबू’ जी ऐसा कैसे हो सकता है, वो काम तो हमारी निगरानी में ही हुआ था, गाँव के बीचों-बीच कितना सुन्दर तालाब बनाया था, पूरे चालीस लाख का खर्चा हुआ था याद है न  !”

“ भाई, वही तो मैं ‘साहब’ को समझा रहा हूँ, लेकिन यार जब हम दोनों ने आज गाँव का दौरा किया तो वो तालाब वहाँ था ही नहीं ! “

“ ओह हो, आप दोनों ने ही लगता है गलत गाँव का दौरा कर लिया, अरे वो गाँव शाहपुर नहीं शाहपुरा है !”

इतना सुनते ही ‘साहब’ भड़क उठे और चिल्ला कर बोले , “बहुत देर से तुम लोगों की  बकवास सुन रहा हूँ, अब भी सही-सही बता दो वरना दोनों की नौकरी पी जाऊंगा !”

अब क्या था दोनों उठे और ‘साहब’ के पैरों पर गिर पड़े , गिडगिडाते हुए कहने लगे “माफ़ कर दो ‘साहब’, हम तो नौकर आदमी हैं, छोटे- छोटे बच्चे हैं, बड़ी बदनामी हो जाएगी साहब  ,सब सक्सेना साहब का खेल था , दरअसल तालाब तो बना ही नहीं था !”

“ साहब’ फिर गरजे , “अरे जब तालब बना ही नहीं तो पैसा कहाँ गया ?”

“पता नहीं ‘साहब’ पर हम दोनों को २-२ प्रतिशत मिला था, इस मामले में सक्सेना साहब बहुत ईमानदार थे, खैर अब तो साहब रिटायर हो गए !”

“अरे यार तुम लोग भी ना, अरे पैर तो छोडो, चलो बैठो, और काँप क्यों रहे हो, AC बंद करवा दूं क्या ?”

“नहीं ‘साहब’ , बस जरा दहशत हो गयी है ,माफ़ कर दो ‘साहब’, वर्ना हार्ट अटैक हो जाएगा !”

“तुम लोग भी न, भावुक कर दिया यार, रुको तुम्हारी नौकरी बचाने का कोई हल निकालता हूँ, जरा जाओ ५-७ मिनट घूम के आओ, तब तक में जरा एक-दो फ़ोन मिलाता हूँ !”

“जी साहब - कहकर दोनों बाहर निकल गए !”

“ अरे यार ‘नाज़िर भाई’ , चलो एक एक सिगरेट सूत कर आते है ,हाँ ‘बड़े-बाबू’  चलो यार बड़ा तनाव हो गया है, पर ‘साहब’ लगते तो कठोर हैं,पर दिल के बढ़िया आदमी हैं, देखो क्या करतें हैं !”

ठीक ७ मिनट बाद दोनों ‘साहब’ के कमरे के अंदर हाथ जोड़े खड़े थे !

“अरे आ गए आप लोग, चलिए आपकी समस्या का भी समाधान कर देतें हैं , अच्छा आप दोनों में टाइपिंग किसकी बढ़िया है ?”

“ साहब, ‘नाज़िर भाई’ की , ‘बड़े-बाबू’ बोले !”

“अच्छा तो लिखिए पत्रांक संख्या ... , हाँ तारीख ५ दिन बाद की डालियेगा, सेवा में माननीय सचिव, .....शासन, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग....बाकी लिख लोगे न !”.         

“जी ‘साहब’ !”  “ आगे लिखो दिनांक...(आज की तारीख डाल देना) को जिला ..के अधिकाँश  गाँवों का दौरा किया गया ,और इस सन्दर्भ मैं आपको अवगत करना है की  २ वर्ष पहले शाहपुर गाँव के बीचों –बीच एक तालाब का  निर्माण शासन द्वारा जनहित में कराया गया था ,जिसकी जल आपूर्ति शारदा कैनाल द्वारा होती है ,पर पिछले साल की बाढ़ में इस जलाशय में कई मगरमच्छ बह कर आ गए थे और अब इन्होने बड़ा आकार ले लिया है , गाँव के लोगों से बातचीत करने पर यह  संज्ञान मैं आया है की पिछले कुछ दिनों से कई गाय , भैस और अन्य पालतू जानवर लापता है ,जो लगता है की मगरमच्छों का शिकार बन गए है ,साथ की गाँव के कुछ छोटे बच्चे भी लापता है जो संभवतः इसी तालाब में डूब गए हैं , गाँव के लोगों द्वारा इसमें कूड़ा कचरा फैंकने के कारण इसका जल विषाक्त हो गया है,तथा हर बरसात में यह तालाब भर जाता है जिससे इस गाँव के तथा आस पास के अन्य गांवों के जलमग्न होने का खतरा मंडराता रहता है अत: जनहित मे इसको तुरन प्रभाव से बंद करवाने की अनुमति प्रदान करें, कुछ सरकारी मान्यता प्राप्त ऐजेंसियों से इसका सर्वेक्षण करवाने पर इसको और कैनाल को बंद करवाने की अनुमानित लागत लगभग ३५ लाख रूपये की पायी गयी है ,पर पारदर्शिता बनाए रखने हेतु आपसे निवेदन है की टेंडर की प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिये (कॉपी संलग्न है ).

साथ ही मगरमच्छों के पुनर्वास के लिए चिड़ियाघर के अधिकारियों को निर्देशित करने की कृपा करें !

सादर !

“ क्यों ठीक है न ‘बड़े-बाबू’, ये टेंडर और ठेकेदार का जुगाड़ आपकी जिम्मेदारी रहेगी  !”

“अरे सर कमाल है आपका भी, आप निश्चिंत रहिये  !”

“और ‘नाज़िर भाई’, इसको भेजने से पहले सभी कागज पूरे करके लगा दीजियेगा तब मैं हस्ताक्षर करूंगा , और इसकी कॉपी माननीय मुख्यमंत्री जी , सचिव- वित्त को भी करनी है, इस बार आप लोगों का ३ %- ३ % रहेगा,खुश हैं ना हा हा हा !”

“और हाँ ,इस बजट के आ जाने के बाद एक नया बड़ा तालाब वो चार गावों के बीच पंचायत  वाली गहरी जमीन पर खोदना है ,..रेन वाटर हार्वेस्टिंग , अनुमानीत बजट १ करोड़ समझ गए ना ..हा हा हा !”

“ पर साहब वो ऊपर का और  मगरमच्छ का कैसे मैनेज होगा !”

“उसकी चिंता आप मत करिए ‘नाज़िर भाई’, वहाँ पहले से ही, हमसे भी बड़े–बड़े मगरमच्छ बैठे हैं !”

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”         

 

 

 

Views: 1088

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on March 26, 2015 at 10:34am

आ. कृष्ण मिश्र जी ,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ! सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on March 26, 2015 at 10:32am

आदरणीया  निधि अग्रवाल जी ,आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह मिला आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 23, 2015 at 11:20pm

वाह आदरणीय कहानी बिल्कुल शीर्षक के अनुरूप उतर कर आई है,पात्रों चित्रण भी सुंदर है!हार्दिक बधाइयाँ!

Comment by Nidhi Agrawal on March 23, 2015 at 1:48pm

उफ़.. सच्चाई जानते हुवे भी सच्चाई को पढना और आत्मसात करना कितना कठिन होता है ये आपकी रचना को पढ़ कर ज्ञात हुआ 

बहुत सटीक रचना 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 23, 2015 at 1:34am

आदरणीय विनय जी आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 23, 2015 at 1:32am

आदरणीय डॉक्टर गोपाल नारायण सर , रचना पर आपकी बधाई के लिए आपका बहुत बहुत  आभार , और इसी श्रृंखला में आपने इस विधा की जो जानकारी प्रदान करी है उसको संज्ञान में  लेते हुए , अगली रचना प्रस्तुत करूंगा ! बहुत बहुत धन्यवाद आपका सर ! सादर  

Comment by Hari Prakash Dubey on March 23, 2015 at 1:25am

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी रचना पर आपके समर्थन के लिए आभार आपका ,सादर !

Comment by Hari Prakash Dubey on March 23, 2015 at 1:22am

भाई महर्षि त्रिपाठी जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! सस्नेह 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 23, 2015 at 1:21am

आदरणीय डॉक्टर विजय शंकर सर ,बहुत सही कहा आपने "वैसे तो पानी में जैसे जैसे नीचे जाते हैं बड़े बड़े जलचर मिलते हैं पर व्यवस्था में जैसे ऊपर जाते हैं और  बड़े मगरमच्छ ( जलचर ) मिलते हैं।" रचना पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 23, 2015 at 1:17am

आदरणीय श्याम मठपाल जी , आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार ! सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service