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कैसे जाएगी याद दिल को बताऊं कैसे - शीवेन्द्र

कैसे जाएगी याद दिल को बताऊं कैसे
मेरी नजरों में बसी तस्वीर हटाऊं कैसे।


उसने आवाज तलक भी नहीं दी मुझे
खुद के जीने के लिए सांस जुटाऊं कैसे।


की बड़ी दूर से थी मौहब्बत हमने
जख्म उनको मैं दिखाकर रूलाऊं कैसे।


अब हवाओं से दीवार यहां हिलती है
अपने सपनों की तस्वीर लगाऊं कैसे।


उनकी हर बात का हमने तो भरम रखा है
तोड़कर वो ही कसम आंख मिलाऊं कैसे।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 18, 2015 at 5:28pm

आदरणीय समर कबीर साहब ने जो इस्लाह दी है उसका शुक्रिया.

अब भाई शिवेन्द्र पर है वे अपने को इस इस्लाह के कितना हवाले कर पाते हैं. 

शुभकामनाएँ.

Comment by वीनस केसरी on May 16, 2015 at 1:26am

बेशक इस राह की मंजिल ग़ज़ल है ...
लगे रहिये, मंजिल दूर नहीं 

समर साहब ने अच्छी इस्लाह दी है, इस्लाह लेते रहिये ......यही सीखने का सबसे बढ़िया तरीका है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 13, 2015 at 10:00pm
आदरणीय शिवेंद्र जी अच्छी ग़ज़ल हुई है। बहुत बधाई।
Comment by shivendra on May 13, 2015 at 3:56pm

प्रिय मनोज जी, गिरिराज जी आपका आभारी हूं। आपने मुझमें उत्साह भरा है, अच्छा लगा। आप जैसे ज्ञानी मित्रों के सहयोग और मार्गदर्शन से मैं शायद कुछ सीख सकूं और आपके साथ चलने लायक हो जाऊं। एक बार फिर आपका धन्यवाद।
- शीवेन्द्र

Comment by मनोज अहसास on May 12, 2015 at 9:46pm
आदरणीय शिवेंद्र जी बहुत बधाई एवम शुभकामनाये
बहुत काबिल ज्ञानी और गुणी लोगो के बीच में आप आ गए है
इनसे बहुत प्रेरणा मिलेगी आपको कला पक्ष की बातें और बहर आदि सिखने में भाव आपमें पहले से ही बहुत है
आपकी ग़ज़ल यात्रा बहुत बड़ी बने

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 12, 2015 at 8:36pm

आ. शिवेन्द्र भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है , प्रथम प्रयास बहुत सफल है । बाक़ी बातें आ. समर भाई कह ही चुके हैं । गज़ल के ऊपर बहर लिखने की आदत बना  लीजियेगा , सभी को सीखने - सिखाने मे आसानी  होती है ।

Comment by shivendra on May 12, 2015 at 4:42pm

जनाब समर साहेब आदाब, ये मेरा पहला प्रयास है और आपने शुरूआत में अच्छे ज्ञान की बात बताई है। मैं आपकी बात अन्यथा नहीं ले रहा आप तो मुझे कुछ ज्ञान ही दे रहे हो। कमी पता चलेगी तभी दूर होगी। मैं आगे कोशिश सीखने की कर रहा हूं। मैंने एक बार पहली कक्षा ही पढ़ी है। उसके  बाद थोड़ा ज्ञान प्राप्त कर उल्टा सीधा लिखा है। शुक्रिया दोबारा आपने मुझे रास्ता दिखाया।

Comment by Samar kabeer on May 12, 2015 at 3:06pm
जनाब शिवेन्द्र जी,आदाब,सबसे पहले तो यह कि आपने अपनी ग़ज़ल की बह्र नहीं लिखी है ,आपकी ग़ज़ल की बह्र है :-

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन/फ़इलुन

(1)"कैसे जाएगी याद दिल को बताऊं कैसे
मेरी नजरों में बसी तस्वीर हटाऊं कैसे"

इस शैर को इस तरह लिखें तो ठीक रहेगा :-

"याद जाती नहीं इस दिल को बताऊँ कैसे
तेरी तस्वीर निगाहों से हटाऊँ कैसे"

(2)"उसने आवाज तलक भी नहीं दी मुझे
"खुद के जीने के लिए सांस जुटाऊं कैसे"

इस शैर को इस तरह लिखें :-

"उसने आवाज़ तलक भी नहीं दी है मुझको
ख़ुद के जीने के लिये सांस जुटाऊँ कैसे"

(3)"की बड़ी दूर से थी मौहब्बत हमने
"जख्म उनको मैं दिखाकर रूलाऊं कैसे"

इस शैर को इस तरह लिखें :-

"टूट कर की है हमेशा ही मुहब्बत उनसे
ज़ख़्म-ए-दिल उनको दिखाकर मैं रुलाऊँ कैसे"

(4)"अब हवाओं से दीवार यहां हिलती है
अपने सपनों की तस्वीर लगाऊं कैसे"

इस शैर को इस तरह लिखें :-

"अब हवाओं से ये दीवार बहुत हिलती है
अपने सपनों की मैं तस्वीर लगाऊँ कैसे"

(5)"उनकी हर बात का हमने तो भरम रखा है
तोड़कर वो ही कसम आंख मिलाऊं कैसे"

इस शैर को इस तरह लिखें :-

"उनकी हर बात का मैंने तो भरम रख्खा था
तोड़कर अब ये क़सम आँख मिलाऊँ कैसे"

इसी तरह प्रयास करते रहें ,दूसरे सदस्यों की ग़ज़लें पढ़ते रहें ,एक दिन आप अच्छा लिखने लगेंगे,कृपया अन्यथा न लें ।

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