For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कैसे कैसे बिकता है आदमी -- डॉo विजय शंकर

आदमी की कीमत समझता है आदमी
किस किस भाव देखिये बिकता है आदमी ॥

जमीर कीमती है जानता है आदमी
तभी उसका बड़ा खरीदार है आदमी ॥

जब चाहे जहां चाहे खरीद ले कोई
हर जगह हर वक़्त खूब बिकता है आदमी ॥

रिश्ते - दोस्ती में सब देखता है आदमी
बिकते समय कुछ नहीं देखता है आदमी ॥

खरीदार होना चाहिए देशी हो विदेशी
जानवर से भी सस्ते में बिकता है आदमी ॥

गुलामी कुप्रथा थी इक जो खत्म हो गयी
अब तो खुद बिकने को आज़ाद है आदमी ॥

नेता, अफसर-बाबू , चपरासी सब बिकते हैं
बराबर होते हैं सब, जब बिकता है आदमी ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 894

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 7, 2015 at 6:28pm
आदरणीय डॉO आशुतोष मिश्रा जी , लघु - कथा की स्वीकृति हेतु आपका आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 7, 2015 at 12:59pm

आदरणीय विजय सर इस सुंदर रचना हेतु तहे दिल बधाई स्वीकार करें ..बिलकुल सच कहा है आपने हर बस्तु की तरह आदमी भी बिकने लगा है /

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 6, 2015 at 11:06am
आदरणीय हर्ष महाजन जी, आपकी स्वीकृति एवं मूल्यांकन के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 6, 2015 at 11:04am
प्रिय मिथिलेश वामनकर जी, आपकी स्वीकृति पूर्ण विवेचना के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Harash Mahajan on August 5, 2015 at 10:27pm

आदरणीय विजय शंकर जी अति सुंदर भावपूर्ण पेशकश !! दाद !!! साभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 5, 2015 at 9:31pm

आदरणीय विजय शंकर सर, इस सुन्दर भावाभियक्ति हेतु हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 5, 2015 at 9:15pm
आदरणीय सुश्री प्रतिभा पाण्डे जी , आपका बहुत बहुत आभार एवं विशद विवेचना लिए धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 5, 2015 at 9:10pm
आदरणीय सुशील सरना जी , आपकी विस्तृत विवेचना एवं रचना को मान देने के लिए बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 5, 2015 at 9:06pm
प्रिय कृष्ण मिश्रा " जान " गोरखपुरी जी , आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 5, 2015 at 9:03pm
आदरणीय मोहन सेठी " इंतज़ार " जी , आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय निलेश जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। "
57 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय अजय जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है। बधाई स्वीकार करें"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय निलेश जी, बहुत धन्यवाद"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय अजय जी, बहुत धन्यवाद"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय निलेश जी, बहुत धन्यवाद"
1 hour ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय आज़ी जी, बहुत धन्यवाद"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . संबंध

दोहा सप्तक. . . . संबंधपति-पत्नी के मध्य क्यों ,बढ़ने लगे तलाक ।थोड़े से टकराव में, रिश्ते होते खाक…See More
1 hour ago
मनोज अहसास replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"अगर ये ग़ज़ल बेकार है आदरणीय अमित जी तो कुछ सुझाव दे दीजिए आप कुछ सुझाव दे दीजिए सादर"
2 hours ago
मनोज अहसास replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"हार्दिक आभार आदरणीय सादर"
2 hours ago
मनोज अहसास replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"हार्दिक आभार आदरणीय सादर"
2 hours ago
मनोज अहसास replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"हार्दिक आभार आदरणीय सादर"
2 hours ago
मनोज अहसास replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"हार्दिक आभार आदरणीय सादर"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service