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दानव शिक्षा ( लघु-कथा ) : डॉo विजय शंकर

दानव गुरु ने अपने शिष्यों को गुरु-मन्त्र दिया : स्वर्ग में सेवा करने के बजाय नर्क में शासन करना अधिक अच्छा होता है।
एक जिज्ञासु शिष्य ने एक गम्भीर प्रश्न किया : पर गुरु जी , यह तो धरती स्वयं ही स्वर्ग जैसी है तो हम कहा जाएँ ?
दानव गुरु ने तुरंत उत्तर दिया : धरती को नर्क बना दें और उस पर शासन करें।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on January 8, 2016 at 6:50am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , आपकी उपस्थित से हौसला बढ़ता है , आपका बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 8, 2016 at 6:48am
आदरणीय शेख सहज़ाद उस्मानी जी , आपकी टिप्पणी पढ़ कर अच्छा लगा। ये फ़रिश्ते ही हैं जिनकी बदौलत दुनियाँ चल रही है , वरना कुछ लोग तो खुद के पैरों पर कुल्हाड़ी ही मार रहे हैं , कुछ आगे बढ़ने के नाम पर , कुछ उद्योग बढ़ाने के नाम पर। लघु - कथा पर उपस्थिति हेतु आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 8, 2016 at 6:40am
आदरणीय तेजवीर जी , आपको लघु कथा अच्छी लगी , आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 8, 2016 at 6:39am
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , इधर कुछ समय से पारिवारिक व्यस्तता के कारण ओ बी ओ पर आना काम हो पा रहा है , पर कुछ न कुछ लिखना बना रहता है। कभी कभी सोचता हूँ कुदरत ने तो सब कुछ बहुत ही सुन्दर बनाया है , हमी ने उसे कैसे कैसे रूप दे दिए हैं। बस यही प्रयास किया है। आपको पसंद आया , बहुत अच्छा लगा। आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2016 at 10:11pm

क्या बात है ! आदरनीय , यही तो हो रहा है आज कल , सुनदर सटीक लघुकथा के लिये हार्दिक बधाई आपको ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 7, 2016 at 6:25pm
यही तो हो रहा है/होता रहा है! वो तो गनीमत है कि नरक बनती इस धरती पर फरिश्तों के रुप में कुछ इन्सान मौजूद रहते हैं। लघुकथा क्या होती है,उसका उत्कृष्ट उदाहरण इस कृति में मिला। बहुत गहराई लिए इस प्रस्तुति के लिए तहे दिल बहुत बहुत बधाई आपको डॉ.विजय शंकर जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on January 7, 2016 at 5:55pm

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ विजय शंकर जी!बेहतरीन प्रस्तुति!शानदार गुरुमंत्र देती सुंदर लघुकथा!

Comment by Samar kabeer on January 7, 2016 at 5:24pm
आली जनाब डॉ.विजय शंकर जी आदाब,बहुत अरसे बाद आपकी रचना से रूबरू हुवा हूँ,और लघुकथा पर पहली हाज़री है,इस कला में तो आप दक्ष हैं माशाअल्लाह,बहुत मुतास्सिर किया इस रचना ने,वाह वाह बहुत ख़ूब जितनी तारीफ़ की जाए कम होगी,ढेरों दाद के साथ बधाई स्वीकार करें जनाब |

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