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कलाधर छंद......होलिका दबंग है

विधान---गुरु लघु की पंद्रह आवृति और एक गुरु रखने का प्राविधान है. अर्थात २, १ गुणे १५  तत्पश्चात एक गुरु रखकर इस छंद की रचना की जाती है.   इस प्रकार इसमें इकतीस वर्ण होते हैं.  संदर्भ अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद की पुस्तक " छंद माला के काव्य-सौष्ठव"  में ऐसे अनेकानेक सुंदर छंद विद्यमान हैं..

यथा----

कृष्ण संग गाय ग्वाल, वृक्ष छांव, ठांव-ठांव, रंग में रॅगें समाज, बाजते मृदंग हैं.

गांव-हाट, ठांट-बांट रंग गांठ-गांठ आज, मस्त भाव में सरोज भृंगराज संग हैं.

पोर-पोर बांस की लिये सुराग फाग की, उड़ी हवा रुकी नहीं अनंग की उमंग है.

अंग-अंग झूमते सुब्रह्म-शैव रीझते, सुभाषिनी करें सुनृत्य होलिका दबंग है.

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 29, 2016 at 7:56pm

आ० आमोद भाई जी, आप भी छन्द सीख सकते हैं....http://www.openbooksonline.com/group/chhand यहां सारे विधान उपलब्ध हैं. उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत हर्दिक आभार. सादर

Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 28, 2016 at 8:14pm
आ छंद की जानकारी तो नही है हमें अभी पर आप का यह छंद बेहतरीन है पढ़ा गुनगुनाया बहुत ही लयबद्ध तरीके से सृजन किया है आप ने ....आप की कलम को बारम्बार नमन बधाई
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 28, 2016 at 4:28pm

आ० रामबली भाई जी,  आपका बहुत-बहुत हर्दिक आभार. सादर

Comment by रामबली गुप्ता on March 27, 2016 at 1:40pm
वाह वाह आदरणीय बहुत ही सुंदर छंद रचना हुई है।

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