For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ुब्बारों और यथार्थ के बीच (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

सब उड़ान भर रहे थे अपने-अपने 'ग़ुब्बारों' में सवार होकर। कुछ 'धार्मिक कट्टरता' के, कुछ 'अत्याधुनिकता' के कुछ किसी 'राजनीतिक दल' के, कुछ 'उद्योगों' के ग़ुब्बारों में उड़ रहे थे, तो कुछ 'उच्च शिक्षा' और 'उच्च तकनीक' के। जबकि कुछ लोग 'अंधविश्वास' या 'कुरीतियों' या 'भ्रष्टाचार' के ग़ुब्बारों में उड़ रहे थे। कुछ ऐसे भी थे, जो 'दिवास्वप्न' या 'कोरी कल्पनाओं' के ग़ुब्बारों में अनजानी दिशाओं में उड़ते हुए कभी ख़ुश हो रहे थे, कभी उलझ रहे थे।

"तेरा ग़ुब्बारा कौन सा है, तुम क्यों नहीं उड़ते इस युग में औरों की तरह ? क्या दिशा है तेरी इस दशा में ?" एक भावुक, अंतर्मुखी व सामाजिक युवक से उसके अन्तर्मन ने पूछा।

कोई उत्तर न मिलने पर दूसरे प्रश्न किये गये।

"तुम 'आदर्शों', 'आध्यात्म' या 'दर्शन-शास्त्र' के ग़ुब्बारे में उड़ना चाहते हो न?"

इस सवाल पर विचलित होते हुए युवक ने कहा- "वे 'ग़ुब्बारे' नहीं ! 'धरातल' हैं यथार्थ के!"

"तो क्या तुम संत-महात्मा या 'गांधी' बनने की सोच रहे हो, या इस दुनिया के परे जाकर कहीं समाधि लगाने की तैयारी हो रही है?" अन्तर्मन ने व्यंगात्मक लहज़े में कहा।

"मैं आज की सदी का उच्च शिक्षित युवक हूँ! वह सब मैं क्यूँ करने चला?" युवक ने आसमान की ओर देखते हुए कहा- "वे जो उड़ रहे हैं न, वे दिशाहीन हों या न हों, लेकिन यथार्थ के धरातल पर उन्हें एक दिन आना ही होगा!

"तुम्हारी सोच और विचारधारा में विरोधाभास है या टकराव?" अन्तर्मन ने युवक से पूछा।

"ज़मीन और ज़मीर से जुड़े हर शख़्स का यही हाल है! मन विचलित है, ग़ज़ब का उलझाव है!" युवक ने चारों दिशाओं में नज़रें क्रमशः घुमाते हुए कहा।

"मुझे तो लगता है कि तुम 'कर्मशील' और 'न्यायप्रिय' भले हो लेकिन 'आस्तिक' नहीं हो, तभी परेशान रहते हो!"

समालोचना सुन कर युवक बोला- "मैं नास्तिक भी तो नहीं हूँ! "

"तो फिर तुम अपने आपको कैसा समझते हो ? क्या मक़सद है तुम्हारे जीने का?" अन्तर्मन का अगला सवाल था।

कुछ पलों की चुप्पी के बाद वह युवक बड़बड़ा कर बोला- " मैं उन सब लोगों जैसा नहीं हूँ! इन्सान बनने की कोशिश करने में हर्ज़ ही क्या है!"

इन्सान बनने के लिए उसे किसी वैसे ग़ुब्बारे की ज़रूरत नहीं थी। उसे 'इन्सानियत' और अपनी क़ाबीलियत' पर ही भरोसा था।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 515

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 14, 2017 at 6:50pm
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देकर हौसला अफ़जा़ई हेतु व राय साझा करने के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी, जनाब मोहम्मद आरिफ साहब, व आदरणीय प्रतिभा पाण्डेय जी।
Comment by pratibha pande on February 12, 2017 at 10:05pm

आज के माहौल में इंसानियत को ढूढ़ते व्यक्ति का   अंतर्मन से संवाद ...  सुन्दर ताना बाना है ..हार्दिक बधाई आदरणीय उस्मानी जी 

Comment by Mohammed Arif on February 10, 2017 at 6:44pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्नी जी आदाब, बहुत बढ़िया, कटाक्षपूर्ण लघुकथा । बधाई !
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 10, 2017 at 5:44pm
पुनः हौसला अफ़जा़ई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब डॉ. आशुतोष मिश्रा जी।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 10, 2017 at 9:34am

आदरणीय शेख जी ..गहन चिंतन को जिन्दगी को उसकी जमीन दिखाती इस शानदार लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"अच्छी रचना हुई आदरणीय बधाई हो"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो 3 बोझ भारी तले को सुधार की आवश्यकता है"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय इस बह्र पर हार्दिक बधाई"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेंद्र इंसान जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत शुक्रिया आदरणीय भंडारी जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
1 hour ago
surender insan commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई जी  छन्न पकैया (सारछंद) में आपने शानदार और सार्थक रचना की है। बहुत बहुत बधाई…"
2 hours ago
surender insan commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय आज़ी भाई आदाब। बहुत बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करे जी।"
2 hours ago
surender insan commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सौरभ जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल पर आने के लिए और अपना कीमती वक़्त देने के लिए आपका बहुत बहुत…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service