For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बन्दर और मदारी (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

उसका निरंतर विकास हो रहा है। वह बन्दर ही है, लेकिन बन्दर ही कहलाना नहीं चाहता है। उसने अपनी आँखों पर या कानों पर या मुख पर हथेलियां रखना छोड़कर आदर्शों पर न चलने का फैसला भी कर लिया है। वह अब किसी मदारी के इशारे पर भी नहीं चलना चाहता है। वह अब खुद मदारी बनना चाह रहा है। अब उसके अपने फैसले होते हैं, कब-कितना नाचना है? किसको-कितना नचाना है? लेकिन उसे यह पता नहीं है कि 'फैसले' अब उसके 'मदारी' माफ़िक हो गये हैं। 'फैसले' उसे नचाते रहे हैं! 'फैसले' के जवाब में 'फैसले' हो रहे हैं। 'फैसले' की प्रतिध्वनि में 'फैसलों' की घंटियां गूँज रही हैं। 'फैसले' के प्रतिबिम्ब में 'फैसले' ही नज़र आ रहे हैं। सच उसे समझ में कभी आता भी है, लेकिन सच को स्वीकार करने का 'फैसला' वह नहीं कर पाता है!

"मैं विकसित जैसा तो नहीं, विकासशील तो हूँ!"
"विकासशील हूँ, अन्दर से या बाहर से! कितना विकासशील हूँ?"

वह सिर्फ सोच रहा है, या वास्तविकता है या फिर यह उसकी परिकल्पना है या यह उसका मात्र दिवास्वप्न है, उसे स्वयं कुछ समझ में नहीं आ रहा है! लेकिन 'फैसले' वह 'विकसित' कहलाने वालों की नकल करते हुए ले रहा है! उसके 'मन' में बात कुछ और है, कह कुछ और रहा है और कर कुछ और रहा है और जो कुछ भी वह करवा रहा है, वह कितना सही है, इसका सही 'फैसला' वह नहीं कर पा रहा है।

"मैं विकास के सही मार्ग पर हूँ। मैं सच्चा इंसान, सच्चा भारतीय नागरिक, सच्चा पालक-अभिभावक, सच्चा उद्योगपति, सच्चा देशभक्त, सच्चा छात्र, सच्चा गुरू, सच्चा नेता, और मैं ही तो परिवार, समाज, जनता और देश का सच्चा सेवक हूँ! "

बस यही सोच-सोच कर, अपनी छाती दिखा-दिखाकर डंका बजा-बजा कर अपने 'फैसलों' की उद्घोषणा करता रहता है, उनका क्रियान्वयन करता रहता है! जबकि 'फैसले' ही उसे नचा-नचा कर घोषणा कर रहे हैं -"तुम बन्दर ही हो और तुम्हारे 'फैसले' मदारी ही हैं!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 647

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 28, 2017 at 4:42pm
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देकर अनुमोदन करने, अपने विचार रखने और हौसला अफ़जा़ई हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय डॉ.आशुतोष मिश्रा जी, आ. तेजवीर सिंह जी, आ. सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप', जनाब मोहम्मद आरिफ साहब व जनाब महेन्द्र कुमार साहब।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 19, 2017 at 6:16pm
आदरणीय शेख जी जबरदस्त कटाक्ष करती उस शान्दार लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई।इस बात को जिस शानदार तरीके से आपने लघु कथा जे माध्यम से आपने व्यक्त किया है काबिले तारीफ है। और मेरे अंतस में लघु कथा के प्रति दिलचस्पी बढ़ाती एक और शानदार कड़ी सादर ओरणं के साथ
Comment by Mahendra Kumar on February 19, 2017 at 12:20pm
आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी, बहुत ही उम्दा कटाक्षपूर्ण लघुकथा लिखी है आपने। मेरी तरफ से दिल से बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on February 18, 2017 at 4:27am
आद0 शेख शहजाद उस्मानी साहब सादर प्रणाम। बेहतरीन लघुकथा, बन्दर के माध्यम से, वैसे इस कटाक्ष को बहुधा नकार भी सकते है, क्योकि सच सभी स्वीकार नही करते, पर आपने जितनी खूबसूरती से इसे बयाँ किया है, वह काबिलेतारीफ है। आप की इस हुनर को मेरा नमन। बधाई आपको।
Comment by Mohammed Arif on February 17, 2017 at 5:52pm
वाह!वाह!! आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, क्या ख़ूब कटाक्षपूर्ण लघुकथा लिखी है आपने । "फैसले"लेने वाला भी क्या किसी से मशविरा लेता है या नहीं ? बधाई!बधाई!!
Comment by TEJ VEER SINGH on February 17, 2017 at 12:55pm

आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी। हार्दिक बधाई।सत्यम, शिवम, सुंदरम।सत्य सदैव कटु होता है।सत्य हर किसी को नहीं सुहाता।"इंसान था पहले बंदर"आपने इस कहावत की  बहुत सही व्याख्या की है मगर मुझे शक़ है कि हर कोई इसे हज़म कर पायेगा।आपके प्रयास की सराहना करता हूं।आज के हालात पर करारा प्रहार।बेहतरीन प्रस्तुति।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service