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सदी ऊपर का मुकद्दमा - डॉo विजय शंकर।

अदालत लगी हुयी थी। वकील साहब लोग अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठ चुके थे। तभी एक मुवक्किल दौड़ता हुआ आया , सीधे अपने वकील साहब के पास पहुंचा और हाथ जोड़ कर बोला ,
" राम राम साहेब " ,
" राम राम " वकील साहेब ने कहा और उसे पीछे एक बेंच दिखा कर कहा , " वहां बैठ जाओ " . वह बैठ गया। दो चार आस पास बैठे लोगों को भी हाथ जोड़ कर वह राम राम करता रहा। तभी अर्दली ने अदालत की डॉयस पर आकर इत्तला दी ,
" साहेब पधार रहे हैं " .
सभी लोग अपने अपनी जगह पर उठ कर खड़े हो गए।
जज साहेब आये , उन्होंने अपनी कुर्सी पर बैठने के पहले सभी को अभिवादन में थोड़ा सा सर आगे की ओर झुकाया , और बैठने लगे। तभी वह मुवक्किल बोल पड़ा ,
" राम राम साहेब , राम राम " .
बैठते बैठते जज साहेब ने नज़र उठाई , उसकी ओर देख कर बोले , " राम राम " , और बैठ गए।
अदालत की कार्यवाही शुरू हुई।
आरोप पक्ष के वकील खड़े हुए।
जज साहेब ने पूछा , " हाँ, मुकद्दमा क्या है ? "
आरोप पक्ष के वकील ने जोर दार लहजे में कहा , " माननीय , मुकद्दमा ये है कि बचाव पक्ष को राम के होने का सबूत देना है ? "
एक पल को तो जैसे कुछ हुआ ही नहीं ,फिर हँसी , और फिर जोर की हँसी और उसके बाद हँसी का फुव्वारा।
आरोप कर्ता के वकील को समझ में ही नहीं आया कि गड़बड़ क्या हो गई l

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on October 24, 2017 at 10:32am
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , विस्तृत विश्लेषण के लिए आभार , बधाई हेतु धन्यवाद , सादर।
Comment by Mohammed Arif on October 20, 2017 at 5:40pm
आदरणीय विजय शंकर जी आदाब, आपकी लघुकथा को निम्न बिन्दुओं पर देख लेना समीचीन होगा:-
(1) कथानक -कथानक की दृष्टिकोण से देखा जाय तो यह कथानक अपने आप में बहुत कुछ कहता है । हर काल परिस्थिति में राम को मुवक्किल बनाया जाएगा । बेहतरीन कथानक है , लाजवाब कथानक है ।
(2) पात्र या चरित्र-चित्रण- पात्र या चरित्र-चित्रण को देखा जाय तो यहाँ आपने सोच समझकर एक उदात्त पौराणिक पुरुषोत्तम का चरित्र केंद्र में रखकर न्याय की गुहार लगा दी । इस चरित्र को तो हर काल-खंड में अपनी परीक्षा से गुज़रना होगा । इसकी अग्नि-परीक्षा तो कालजयी हो गई है ।
(3) देशकाल या वातावरण- इसका काल निर्धारण अपने आप में ही अजर-अमर है ।
(4)उद्देश्य-इसका सीधा-सा उद्देश्य है पाठक का अपना निजी दृष्टिकोण ।
हार्दिक-हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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