For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हवा में - डॉo विजय शंकर

हमने एक मकान बनाया ,
सबसे पहले
छत को बनाया ,
चढ़ कर उस पर
उछले-कूदे ,
खूब चिल्लाये ,
नाचे- गाये ,
देख आसमान ,
खूब इतराये ,
लगा , लपक कर
छू लेंगें ,
मुठ्ठी में नभ कर लेंगें ,
और जब नीचे झाँका , देखा ,
अचानक तब घबराये ,
हा , बुनियाद ,
कहाँ छोड़ आये।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1126

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 31, 2017 at 7:27am
विशद व्याख्या के लिए आभार , आदरणीय शेख़ शहजाद उस्मानी जी , धन्यवाद , सादर।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 30, 2017 at 11:29pm
समझदार लोगों, चिंतित लोगों की सोच का प्रतिनिधित्व करती बेहतरीन रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत बधाई आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी। दुनिया के व्यावसायीकरण/वैश्वीकरण के दौर में लालची लोग विशेष रूप से मानवतावादी संस्कृति की जड़ें कमज़ोर कर रहे हैं/काट रहे हैं, पशुता और शैतानियत की ओर बढ़ रहे हैं। समय रहते सबको जागरूक करने के लिए इस तरह के साहित्यिक सरल सृजन की नितांत आवश्यकता है। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 29, 2017 at 7:13pm
आभार , आदरणीय ब्रजेश कुमार ब्रज जी , सादर।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 29, 2017 at 11:12am
बहुत सटीक और सार्थक कविता हुई आदरणीय डा. साहब
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 26, 2017 at 8:29pm
आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्र जी , आपकी सारपूर्ण विशद टिप्पणी के लिए आभार , बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 26, 2017 at 5:54pm
आदरणीय विजय सर आपकी रचनाएं चिंतन से भरपूर होती हैं और जहाँ चिंतन है वहां ऐसी ताजगी भी अपेक्षित है।।आपकी रचना उसपर आपकी और आदरणीय समर सर आरिफ जी और सौरभ सर की प्रतिक्रियाओं से बहुत कुछ नया सीखने को मिला रचना पर हरदुक बधाई स्वीकार करें सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 26, 2017 at 10:50am

ऐसी भूल कई जगह पर हुई है. कई पुस्तकों में अनंत ही कर दिया गया है. लेकिन लेखक ने अपना नाम अभिमन्यु अनत ही मान्य करवाया है. अतः यह जानकारी साझा कर लिया.

शुभेच्छाएँ 

Comment by Mohammed Arif on October 26, 2017 at 10:34am

आदरणीय सौरभ पांडे जी आदाब,
आपके द्वारा मॉरीशस के कवि, लेखक के नाम के संदर्भ में अवगत करवाया । मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई । लेकिन मैं ध्यानाकर्षण करवाना चाहता हूँ कि:-
(1) म.प्र.की पाठ्यपुस्तक ( म.प्र. राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल द्वारा प्रकाशित ) की कक्षा 12 वीं में शामिल पाठ "कुछ कविताएँ"पेज नं.74 पर लेखक का नाम पाठ के अंत में "अभिमन्यु अनंत" ही मुद्रित है । सादर ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 26, 2017 at 8:43am
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , रचना आपको पसंद आई, आपका आभार। आपसे पूर्णतया सहमत हूँ , बात संस्कृति और तथाकथित उन्नति के सभी मार्गों पर चलने की है। मैंने बहुत गौर से देखा है , दुनिया में लोग बहुत आधुनिक हैं , पर अपने सांस्कृतिक मूल्यों , चाहे वे कितने भी पुरातन क्यों न हों , से समझौता नहीं करते हैं , कम से कम दूसरों को देख कर तो बिलकुल नहीं। हम तो शायद अपनी संस्कृति के मूल तत्वों को जानते भी नहीं। फिर तजते जा रहे हैं , मजाक भी बना रहे हैं। आपकी बधाई धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 26, 2017 at 8:43am
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , रचना की इतनी विशद विवेचना के बहुत बहुत आभार। हमारा अपने घर और संस्कृति दोनों के प्रति जो आज के युग का दृष्टिकोण है वह गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण है। घर और संस्कृति का निर्माण प्रकृति पर आधारित होता है , दूसरों को देख कर नहीं। हमारी जलवायु के अनुरूप हवादार , cross veltiletion वाले मकान बनना लगभग बंद हो गए , बिल्डरों के बनाये मकान उसकी आमदनी को उछाल देने के नियमों के अंतर्गत बनाये जाते हैं। बिजली आती नहीं , लोग पूरा घर ए सी कटवा नहीं सकते , घुटन तो होगी ही। नये मकानों में रोशन दान होते ही नहीं , गर्म और दूषित हवा बाहर निकल पाती ही नहीं। जहां घर का केंद्र आँगन हुआ करता था वहां आँगन रहित मकान की श्रृंखला उदित हो रही है। तर्क यह दिया जाता है , यही आधुनिक पैटर्न है , यूरोप से लिया गया है। यह यूरोप के लिए अच्छा है , वहां ठण्ड की वजह से अधिक खुले घर नहीं रख सकते , यह हमारी आवश्यकता नहीं है , पर बिल्डर को लाभदायक है। प्रभाव सामने है। ऐसे मकान रोग और उमस ही दे रहे हैं। पर मूल कारण यह है कि अर्थतंत्र सर्वोपरि होता जा रहा है , जीवन के आधारिक तत्व गौण होते जा रहे हैं।
श्री अभिमन्यु अनत की कविता को प्रस्तुत करने के लिए आभार. बधाई हेतु धन्यवाद , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
5 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
18 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
yesterday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
yesterday
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service