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221, 2121, 1221, 212


दैरो हरम से दूर वो अंजान ही तो है ।
होंगी ही उससे गल्तियां इंसान ही तो है ।।

हमको तबाह करके तुझे क्या मिलेगा अब ।
आखिर हमारे पास क्या, ईमान ही तो है ।।

खुलकर जम्हूरियत ने ये अखबार से कहा ।
सारा फसाद आपका उन्वान ही तो है ।।

खोने लगा है शह्र का अम्नो सुकून अब ।
इंसां सियासतों से परेशान ही तो है ।।

उसने तुम्हें हिजाब में रक्खा है रात दिन ।
वह भी तुम्हारे हुस्न का दरबान ही तो है ।।

देखा नहीं किसी ने कभी मौत की डगर ।
कहते हैं लोग रास्ता वीरान ही तो है ।।

इक दिन उसे है जाना इसी घर को छोड़ कर ।
ये रुह मेरे जिस्म की मेहमान ही तो है।।

जिंदा खुदा के रहमो करम पर मैं आज तक ।
माना ये रब के प्यार का एहसान ही तो है ।।

क्या बिक गया कलम है तेरा खास दाम पर ।
लिक्खा तेरी किताब में गुणगान ही तो है ।।

बरबाद गांव हो गया ठर्रा खरीद कर ।
कहने को एक छोटी सी दूकान ही तो है ।।

अब हौसलों के साथ मे जलना तुझे चराग ।
यह भी गुज़र ही जाएगा तूफान ही तो है ।।

माना कि मुश्किलात हैं मंजिल के आस पास।
बस टूट के न बिखरे ये अरमान ही तो है ।।

निकलो न बेनकाब जमाने की है नजर ।
हर शख्स तेरे हुस्न से अनजान ही तो है ।।

तुमने कहाँ है देखी अभी दर्दो गम की रात ।
तुमको भी दौरे हिज्र का अनुमान ही तो है ।।

यूँ मुस्कुरा के आप ने नज़रें झुका ली जब ।
मुझको लगा ये इश्क़ का फरमान ही तो है ।।

दिन भर संवारता है कोई ज़ुल्फ़ बारहा ।
ये आशिक़ी के वक्त का ऐलान ही तो है ।।


तुझको अभी नहीं है कोई तज्रिबा ए इश्क़ ।
मेरी नजर में तू अभी नादान ही तो है ।।

डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Naveen Mani Tripathi on March 27, 2019 at 12:15am

आ0 कबीर सर सादर नमन 

आपका स्वास्थ्य ठीक न होने के बाद भी अपने इतनी मेहनत की यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है । निः शब्द हूँ ।

Comment by Samar kabeer on March 26, 2019 at 2:26pm

जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'होंगी ही उससे गल्तियां इंसान ही तो है'

बहुत कम लोग जानते हैं कि "ग़लतियाँ" का वज़्न 1112 होता है,इसलिए इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'होगी ही उससे भूल वो इंसान ही तो है'

'खुलकर जम्हूरियत ने ये अखबार से कहा'

इस मिसरे में 'जम्हूरियत' का वज़्न 2212 है,इसलिए इस मिसरे को यूँ कर लें :-

'जम्हूरियत ने खुल के ये अख़बार से कहा'

'देखा नहीं किसी ने कभी मौत की डगर'

इस मिसरे में 'मौत' और 'डगर' दोनों स्त्रीलिंग हैं,इसलिए 'देखा' को "देखी" कर लें ।

'इक दिन उसे है जाना इसी घर को छोड़ कर'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'इस घर को छोड़कर इसे जाना है एक दिन'

'जिंदा खुदा के रहमो करम पर मैं आज तक'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'ज़िंदा मैं उसके रह्म-ओ-करम पर हूँ आज तक'

'निकलो न बेनकाब जमाने की है नजर ।
हर शख्स तेरे हुस्न से अनजान ही तो है '

इस शैर में शुतरगुरबा है,इसे हटा देना ही उचित है ।

'तुमको भी दौरे हिज्र का अनुमान ही तो है '

ये मिसरा लय में नहीं है ।

'तुझको अभी नहीं है कोई तज्रिबा ए इश्क़'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'तुझको नहीं है इश्क़ का कुछ तज्रिबा अभी'

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