For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अहसास की ग़ज़ल -मनोज अहसास

2×16

बेकार सताते हो खुद को बेकार तमाशा करते हो,
जो छुपकर तुमको देख रहा तुम उसको ढूंढा करते हो।

जब पास कोई तस्वीर नहीं, न उसका पता मालूम तुम्हें,
दर दर की ठोकर खाकर बस तकलीफ़ बढ़ाया करते हो।

मिल जाएगा वो है शक इसमें, खो जाओगे तुम ये मुमकिन है
सागर को पाने की जिद में क्यों झील का सौदा करते हो।

ऐसा तो कोई दस्तूर नहीं अजनबियों में कोई बात न हो,
तुमको ही पुकारा है मैंने,पीछे क्या देखा करते हो।

गर मांगने से मिल जाता कुछ ,किस्मत का लिक्खा फिर क्या है
उम्मीद से ज्यादा की चाह में उम्मीद ही तोड़ा करते हो।

जो बिन मांगे ही पा बैठे उसको तो संभाला जा न सका,
घोल दिया सांसों में विष अर पानी को गंदा करते हो।

भूखे बच्चों को देखके तो आंखों में लाज नहीं आती,
और हलवा पूरी के बदले सौ मन्नत मांगा करते हो।

दीवार झुकी हो तो उसके साये में डर भी होता है,
मेरे शोषण की जिद में तुम खुद से ही धोखा करते हो।

ऐसे में अगर वो आ जाये इतना ही कहेगें बस मुझसे,
तुम करके बहाना मेरा ग़ज़ल में मौज उड़ाया करते हो।

ये जगती आंखों की रातें और मायूसी की सर्द सुबह,
मेरी धड़कन कहती है मुझे बस जीवन जाया करते हो।

'अहसास' तो अपने जीने का मकसद ही भुलाकर ज़िंदा है,
हिम्मत से सब कुछ हासिल है क्यों उसको बुलाया करते हो।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 314

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on January 21, 2020 at 7:44am

आद0 मनोज कुमार अहसास जी सादर अभिवादन। एक बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ने को मिली आपके हवाले से। बधाई। आद0 समर साहब की बातों का संज्ञान लीजियेगा। सादर

Comment by मनोज अहसास on January 20, 2020 at 10:14pm

बहुत-बहुत शुक्रिया एवं सादर आभार आदरणीय समर कबीर साहब आपने अरकान सुझाए हैं मैं भी अरकान पर काम करना चाहता था लेकिन मैं अरकान भूल गया था इसलिए मुझे लय तो याद थी मैंने उस लय पर ही बांधन की कोशिश की तो मैंने उसको 2 गुना 16 के करीब पाया अब इस ग़ज़ल पर दोबारा काम करूंगा तथा आपके बताएं अरकान पर ही ग़ज़ल को बांधने की कोशिश करूंगा

आपका साथ अमूल्य निधि है

सादर आभार

Comment by Samar kabeer on January 19, 2020 at 8:35pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'उम्मीद से ज्यादा की चाह में उम्मीद ही तोड़ा करते हो'

ये मिसरा लय में नहीं है,देखियेगा ।

'ये जगती आंखों की रातें और मायूसी की सर्द सुबह,'

इस मिसरे में 'जगती' शब्द उचित नहीं,सहीह शब्द है "जागती" और 'सुबह' शब्द भी ग़लत है सहीह शब्द है "सुब्ह"21,देखियेगा ।

वैसे इस ग़ज़ल को 221 1222 22, 221 1222 22 पर सेट करते तो अच्छा होता ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service