नेह के आंसू को सरजू कहता हूँ
अपनेपन से तुझको मैं तू कहता हूं।
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रात छत पे जब निकल आता है तू
इन सितारों को मैं जुगनू कहता हूँ। **
ये जो तन से मेरे आती है महक़..
मैं इसे भी तेरी खुशबू कहता हूँ।
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ये अदब,शोख़ी, नज़ाकत, लहज़े में..
मैं इसी लहज़े को उर्दू कहता हूँ।
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सब थकन मेरी पी जाती है ये धूप
मैं सदा को तेरी जादू कहता हूँ।
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जान कहता था जो तू ,सो अब भी मैं
जान खुदको तुझको जानू कहता हूँ।
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मौलिक व अप्रकाशित
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Comment
आ.अमीरुद्दीन अमीर सर ग़ज़ल पर आपके सुखद स्नेह और इस्लाह का सदैव आकांछी रहता हूँ।
//सब थकन मेरी पी जाती है ये धूप.// इस मिसरे में एक मात्रा की छूट का फ़ायदा उठाया है।
// 'पी' को 1 के वज़्न पर लेना उचित है?// इस पर मैं बहुत यकीन से तो नहीं कह सकता कि ये सही है या नहीं, लेकिन जितना मेरी जानकारी में है उस हिसाब से तो मात्रा गिरा सकते हैं। obo में किसी रचना को रखने का ये फ़ायदा रहता है कि उसकी कमियां दोष वग़ैरह गुनीजन बता देते हैं इस प्रकार सीखने का क्रम चलता रहता है। उस उद्देश्य से ही रचना प्रस्तुत है।इस पर गुणीजनों को सलाह का इंतजार है।
आपके स्नेह और हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रगुजार हूँ आदरणीय।इसी प्रकार स्नेह बनाये रक्खें। सादर।
शुक्रिया भाई आजी तमाम जी।
आदरणीया रचना जी ग़ज़ल पर आपकी मुक्तकंठ प्रतिक्रिया पाकर हृदय रचनाकर्म के प्रति संतुष्ट हुआ।हार्दिक आभार। मक्ते पर आपने बेहतरीन सलाह दी है, लयात्मकता को यह बढ़ा रहा है।बस इस बात में जरा सोच में हूँ कि...
जान खुदको तेरा जानू कहता हूँ।.........यह मिसरा बहुत सपाट हो जा रहा है।
जान खुदको, तुझको जानू कहता हूँ।.........जबकि.इस मिसरे में खुदको के बाद अल्पविराम ले, तो अधिक स्पष्टता होगी।
खैर इस परिवर्तन को ग़ज़ल में आभार सहित, " समय/लयात्मकता/शे'र के वज़न " के प्रकाश में भविष्य के हाथ छोड़ता हूँ। बहुत शुक्रिया आभार।
जनाब कृष मिश्रा 'जान' साहिब आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।
2122- 2122 -212
सब थकन मेरी पी जाती है ये धूप. इस मिसरे की बह्र चेक कर लें, क्या यहाँ 'पी' को 1 के वज़्न पर लेना उचित है?
जान कहता था जो तू ,सो अब भी मैं
जान खुदको तुझको जानू कहता हूँ इस शे'र के दोनों मिसरों में' जान' और खुदको के साथ तुझको खटकता है। सादर।
आदरणीय जनाब जान जी
खूबसूरत ग़ज़ल है
क्या लगाया है मक्ता वाह वाह............!
आदरणीय कृष मिश्रा जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई। वाह वाह वाह। आदरणीय मक़्ते में 'तुझको' के बदले 'तेरी' अधिक अच्छा लगा मुझे।
सादर।
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