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बूढ़े बाबा की दीवानी

मोटी - मोटी चादर तानी,
फिर भी भीतर घुसकर मानी,

जाड़े की जारी मनमानी,
बूढ़े बाबा की दीवानी,

दादा - दादी, नाना - नानी,
कहते बख्शो ठंडक रानी,

रविकर किरणें आनी जानी,
पावक लगती ठंडा पानी

देखो जिद मौसम ने ठानी,
बारिश करके की शैतानी,

राहें सब जानी पहचानी,
कुहरे ने कर दी अनजानी,

बंधू बोलो मीठी वानी,
सबके मन को है ये भानी.

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 14, 2012 at 2:16pm

वाह वाह वाह वाह.. .

रविकर किरणें आनी जानी,
पावक लगती ठंडा पानी   ... ये क्या है ???

Comment by Abhinav Arun on December 14, 2012 at 12:53pm

बचपन मे पढी ज़बान पर चढ जाने वाली कविताओ सा आनन्द देती सहज सफल रचना हार्दिक बधाई श्री अरुण जी !

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 14, 2012 at 12:52pm

अनेक-2 धन्यवाद आदरणीय गणेश सर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 14, 2012 at 12:40pm

सुन्दर रचना अरुण जी, बधाई |

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 14, 2012 at 12:14pm

 आभार सुमन जी

Comment by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 12:12pm

बहुत प्यारी सी कविता अरुण जी,,,,बहुत सुंदर ,,,

कृपया ध्यान दे...

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"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार "
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
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