टूटता ये दिल रहा है जिंदगी भर,
दर्द भी हासिल रहा है जिंदगी भर,
अधमरा हर बार जिन्दा छोड़ देना,
मारता तिल-2 रहा है जिंदगी भर,
देखकर मुझको निगाहें फेर लेना,
दौर ये मुश्किल रहा है जिंदगी भर,
बेवजह मुझको मिली बदनामियाँ हैं,
जबकि वो कातिल रहा है जिंदगी भर,
नींद से मैं जाग जाता हूँ अचानक,
खौफ यूँ शामिल रहा है जिंदगी भर,
चाह है मैं चाहता उसको रहूँ बस,
इक यही आदिल रहा है जिंदगी भर।
Comment
तहे दिल से शुक्रिया आदरणीया सुमन जी.
देखकर मुझको निगाहें फेर लेना
दौर ये रहा मुश्किल जिंदगी भर,,,,,बहुत ही मर्म से पूर्ण रचना अरुण जी
शुक्रिया आदरणीय अविनाश सर
बेवजह मुझको मिली बदनामियाँ हैं,
जबकि वो कातिल रहा है जिंदगी भर,nice
संदीप भाई आप कभी भी निःसंकोच कह सकते है आपका विचार वाकई काबिले तारीफ है आभार मित्र सहयोग व स्नेह हेतु.
बहुत खूब साधा है आपने अनंत भाई जी
खूब दाद क़ुबूल करें
इस शेर को ऐसे कहते तो शायद और खूबसूरत बन पड़ता
टूटता ये दिल रहा है जिंदगी भर,
दर्द ही हासिल रहा है जिंदगी भर,
ये केवल मेरे विचार हैं ...............
आदरणीय गणेश सर आपका जवाब नहीं आपने तो पूरी ग़ज़ल का रूप ही निखार दिया, बिलकुल सही रहेगा सर अनेक-2 धन्यवाद
आभार आदरणीय लक्ष्मन सर
//अधमरा हर बार जिन्दा छोड़ देना,
मारता तिल-2 रहा है जिंदगी भर,// अधमरा और जिन्दा , दोनों शब्दों का प्रयोग कुछ अच्छा नहीं लग रहा, यदि ऐसे करे तो ...
अधमरा हर बार करके छोड़ देना,
मारता तिल-2 रहा है जिंदगी भर,
//चाह है मैं चाहता उसको रहूँ बस,
इक यही आदिल रहा है जिंदगी भर।//
मिसरा उला देखे, चाह है मैं चाहता ....कुछ अटपटा सा लग रहा, यदि ऐसे कहे तो
आरजू है चाहता उसको रहूँ मैं
बाकी सभी शेर मस्त मस्त , बधाई स्वीकार करें |
सुन्दर गजल के लिए बधाई अरुण शर्मा अनंत जी
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