याद में तेरी जिऊँ, मैं आज में जीता नहीं,
लड़खड़ाते पांव मेरे, जबकि मैं पीता नहीं,
नाज़ नखरे रख रखें हैं, आज भी संभाल के,
मैं नहीं इतिहास फिरभी, सार या गीता नहीं,
तोलना है तोल लो तुम, नापना है नाप लो,
प्यार मेरा है समंदर, यार दो बीता नहीं,
आह निकलेगी नहीं, तुम लाख चाहो भी सनम,
दर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,
चाहता हूँ भूलके सब, दो कदम आगे चलूँ,
और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.
Comment
दमदार गज़ल अरुन भाई ! पूरी गज़ल बढियां, पर इन दो असआरों के लिए विशेष दाद कबूलें !
आह निकलेगी नहीं, तुम लाख चाहो भी सनम,
दर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,
चाहता हूँ भूलके सब, दो कदम आगे चलूँ,
और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.
bina piye hi per ladkhdate he khusbaseeb he badhai
वीनस भाई आपको रचना पसंद आई मेरे लिए ख़ुशी की बात है. आपका सुझाव बेहद रुचिकर है इसपर विचार अवश्य करूँगा आभार शुक्रिय.
आदरणीया सुमन जी आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत-2 शुक्रिय.
शैलेन्द्र जी सराहना हेतु आभार
आदरणीय अरुण सर तहे दिल से आभार, सर आज भिवाड़ी शादी में जा रहा हूँ और कल प्रातःकाल पुनः वापिस आऊंगा, कल आपसे मिलता हूँ कृपया बताएं कि गुडगाँव में कहाँ ठहरे हैं सादर.
शानदार ग़ज़ल है
यह शेअर विशेष रूप से पसंद आया
चाहता हूँ भूलके सब, दो कदम आगे चलूँ,
और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.
तोलना है तोल लो..... में काफिये को बहुत अच्छे से निभा ले गये हैं :))))
शानदार ग़ज़ल है बधाई स्वीकारें
भाव के विषय में एक निवेदन है कि गमे-जानां (व्यग्तिगत दुःख) से गमे-दौरा (समाज का दुःख) की ओर बढ़ें तो ग़ज़ल में तेवर और भाव की गहरी और बढ़ जायेगी
आह निकलेगी नहीं, तुम लाख चाहो भी सनम,
दर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,.....bahut sunder shabdaawali
चाहता हूँ भूलके सब, दो कदम आगे चलूँ,
और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं. एक अच्छी गजल पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें
अरुण जी, मस्त ग़ज़ल, नए बिम्ब मन को भा गए .......
आंख को मरुथल समझ कर ,लौटते हो क्यों सनम
डूब कर देखो ,मेरा दिल प्यार से रीता नहीं ।
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