लगी आग जलके, हुआ राख मंजर,
जुबां सुर्ख मेरी, निगाहें सरोवर,
लुटा चैन मेरा, गई नींद मेरी,
मुहब्बत दिखाए, दिनों रात तेवर,
सुबह दोपहर हर घड़ी शाम हरपल,
रही याद तेरी हमेशा धरोहर,
गिला जिंदगी से रहा हर कदम पे,
बिताता समय हूँ दिनों रात रोकर,
दिलासा दुआ ना दवा काम आये,
उठे दर्द जब और उमड़े समंदर.
Comment
आभार आदरणीय अशोक सर
दिलासा दुआ ना दवा काम आये,
उठे दर्द जब और उमड़े समंदर.
वाह अरुण भाई जी सुन्दर भाव बधाई स्वीकारें.
आभार आदरणीया महिमा श्री जी
लगी आग जलके, हुआ राख मंजर,
जुबां सुर्ख मेरी, निगाहें सरोवर,
दिलासा दुआ ना दवा काम आये,
उठे दर्द जब और उमड़े समंदर.....बहुत खूब अनंत जी ....बधाई स्वीकार करें
आभार मित्रवर संदीप जी
waah bahut umda bandhuwar .......................
आदरणीया सीमा दीदी सराहना एवं आशीष हेतु अनेक-2 धन्यवाद
लगी आग जलके, हुआ राख मंजर,
जुबां सुर्ख मेरी, निगाहें सरोवर,
.....बहुत बढ़िया अरुण सरोवर शब्द का बहुत खूब प्रयोग किया है आपने
आभार आदरणीया सुमन जी.
पारदर्शी मन और आपकी पंक्तियाँ ,,,अच्छा तारतम्य है अरुण जी,,,,
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