For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इसी देश की धरती पे थे, जन्मे स्वयं विधाता

यही देश था वीरों की, गाता अद्भुत गाथा,
इसी देश की धरती पे थे, जन्मे स्वयं विधाता,

कभी यहाँ प्रेम -सभ्यता, की भी बात निराली,
आज यहाँ प्रणाम नमस्ते, से आगे है गाली,
इक मसीहा नहीं बचा है, कौन करे रखवाली,
शहरों में तब्दील हो रही, प्रकृति की हरियाली,

आज इसी धरती पे, प्राणी को प्राणी है खाता,
इसी देश की धरती पे थे, जन्मे स्वयं विधाता,

घटती हैं हर रोज हजारों, शर्मसार घटनाएं,
काम दरिंदो से बद्तर, खुद को पुरुष बताएं,
पान सुपारी ध्वजा नारियल, जो हैं रोज चढ़ाएं,
जनता का धन लूटपाट के, अपना काम चलाएं,

अपना ही व्यख्यान सुनाकर, फूले नहीं समाता,
इसी देश की धरती पे थे, जन्मे स्वयं विधाता,

होंठों पे सौ किलो चासनी, दिल में पर मक्कारी,
बुरी नज़र की दृष्टि कोण से, देखी जाएँ नारी,
भ्रष्टाचार ले आया है, भारत में लाचारी,
अब जनता की खैर नहीं, फैली अजब बिमारी,

ऐसी हालत देख खड़ा, बुत भी है शर्माता, 
इसी देश की धरती पे थे, जन्मे स्वयं विधाता...

Views: 412

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 27, 2012 at 11:11am

सत्य कह रहे हैं आदरणीय भ्रमर सर अन्याय और भ्रष्टाचार तीब्र गति से आगे बढ़ रहा है.

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 27, 2012 at 11:10am

आभार आदरणीय रक्ताले सर

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 26, 2012 at 10:26pm

कभी यहाँ प्रेम -सभ्यता, की भी बात निराली,
आज यहाँ प्रणाम नमस्ते, से आगे है गाली, 
इक मसीहा नहीं बचा है, कौन करे रखवाली,

प्रिय अनंत जी भ्रष्टाचार और अन्याय की चलती तीव्र  चक्की में लोगों का पिसना दर्द का मंजर सब कुछ दिखा के आँखें खोल गयी ये रचना ...सुन्दर 

लोग जागें होश सम्हालें अन्यायेन लताड़े जाएँ तो आनंद और आये ...
भ्रमर 5 
Comment by Ashok Kumar Raktale on December 26, 2012 at 6:11pm

समय के साथ देशवासियों कि मानसिकता में हो रहे परिवर्तन पर सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें.

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 24, 2012 at 11:10am

आदरणीया प्राची दीदी आपकी टिपण्णी सदैव मेरा हौंसला बढाती है, अपने अनुज पर यूँ स्नेह एवं आशीष बनाये रखें.

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 24, 2012 at 11:09am

आदरणीय श्री प्रदीप जी, आपने रचना को सराहा आपका अनेक-२ धन्यवाद .

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 24, 2012 at 11:06am

नमस्कार महिमा श्री जी, आपको रचना पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ आभार सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 24, 2012 at 9:48am

पुण्य भूमि भारत की बदलती तस्वीर को प्रस्तुत करती सुन्दर रचना, बधाई प्रिय अरुण जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 23, 2012 at 9:55pm

आदरणीय अनन्त जी सादर 

घटती हैं हर रोज हजारों, शर्मसार घटनाएं, 
काम दरिंदो से बद्तर, खुद को पुरुष बताएं,
पान सुपारी ध्वजा नारियल, जो हैं रोज चढ़ाएं, 
जनता का धन लूटपाट के, अपना काम चलाएं,

बहुत खूबसूरती से प्रस्तुर किया है 

बधाई. 

Comment by MAHIMA SHREE on December 23, 2012 at 8:11pm

नमस्कार अनंत जी ..

आपकी प्रस्तुति मुझे बहुत अच्छी लगी / बड़ी सहजता से आप सारी बात कह गए / बहुत-2 बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
17 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
yesterday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
yesterday
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service