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इसी देश की धरती पे थे, जन्मे स्वयं विधाता

यही देश था वीरों की, गाता अद्भुत गाथा,
इसी देश की धरती पे थे, जन्मे स्वयं विधाता,

कभी यहाँ प्रेम -सभ्यता, की भी बात निराली,
आज यहाँ प्रणाम नमस्ते, से आगे है गाली,
इक मसीहा नहीं बचा है, कौन करे रखवाली,
शहरों में तब्दील हो रही, प्रकृति की हरियाली,

आज इसी धरती पे, प्राणी को प्राणी है खाता,
इसी देश की धरती पे थे, जन्मे स्वयं विधाता,

घटती हैं हर रोज हजारों, शर्मसार घटनाएं,
काम दरिंदो से बद्तर, खुद को पुरुष बताएं,
पान सुपारी ध्वजा नारियल, जो हैं रोज चढ़ाएं,
जनता का धन लूटपाट के, अपना काम चलाएं,

अपना ही व्यख्यान सुनाकर, फूले नहीं समाता,
इसी देश की धरती पे थे, जन्मे स्वयं विधाता,

होंठों पे सौ किलो चासनी, दिल में पर मक्कारी,
बुरी नज़र की दृष्टि कोण से, देखी जाएँ नारी,
भ्रष्टाचार ले आया है, भारत में लाचारी,
अब जनता की खैर नहीं, फैली अजब बिमारी,

ऐसी हालत देख खड़ा, बुत भी है शर्माता, 
इसी देश की धरती पे थे, जन्मे स्वयं विधाता...

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Comment by अरुन 'अनन्त' on December 27, 2012 at 11:11am

सत्य कह रहे हैं आदरणीय भ्रमर सर अन्याय और भ्रष्टाचार तीब्र गति से आगे बढ़ रहा है.

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 27, 2012 at 11:10am

आभार आदरणीय रक्ताले सर

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 26, 2012 at 10:26pm

कभी यहाँ प्रेम -सभ्यता, की भी बात निराली,
आज यहाँ प्रणाम नमस्ते, से आगे है गाली, 
इक मसीहा नहीं बचा है, कौन करे रखवाली,

प्रिय अनंत जी भ्रष्टाचार और अन्याय की चलती तीव्र  चक्की में लोगों का पिसना दर्द का मंजर सब कुछ दिखा के आँखें खोल गयी ये रचना ...सुन्दर 

लोग जागें होश सम्हालें अन्यायेन लताड़े जाएँ तो आनंद और आये ...
भ्रमर 5 
Comment by Ashok Kumar Raktale on December 26, 2012 at 6:11pm

समय के साथ देशवासियों कि मानसिकता में हो रहे परिवर्तन पर सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें.

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 24, 2012 at 11:10am

आदरणीया प्राची दीदी आपकी टिपण्णी सदैव मेरा हौंसला बढाती है, अपने अनुज पर यूँ स्नेह एवं आशीष बनाये रखें.

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 24, 2012 at 11:09am

आदरणीय श्री प्रदीप जी, आपने रचना को सराहा आपका अनेक-२ धन्यवाद .

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 24, 2012 at 11:06am

नमस्कार महिमा श्री जी, आपको रचना पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ आभार सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 24, 2012 at 9:48am

पुण्य भूमि भारत की बदलती तस्वीर को प्रस्तुत करती सुन्दर रचना, बधाई प्रिय अरुण जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 23, 2012 at 9:55pm

आदरणीय अनन्त जी सादर 

घटती हैं हर रोज हजारों, शर्मसार घटनाएं, 
काम दरिंदो से बद्तर, खुद को पुरुष बताएं,
पान सुपारी ध्वजा नारियल, जो हैं रोज चढ़ाएं, 
जनता का धन लूटपाट के, अपना काम चलाएं,

बहुत खूबसूरती से प्रस्तुर किया है 

बधाई. 

Comment by MAHIMA SHREE on December 23, 2012 at 8:11pm

नमस्कार अनंत जी ..

आपकी प्रस्तुति मुझे बहुत अच्छी लगी / बड़ी सहजता से आप सारी बात कह गए / बहुत-2 बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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