आदरणीय श्री अरुण कुमार निगम सर के द्वारा संशोधित की गई कुण्डलिया आप सभी के समक्ष सादर पेश कर रहा हूँ कृपया स्वीकारें .
सोवत जागत हर पिता, करता रहता जाप,
रखना बिटिया को सुखी, हे नारायण आप
हे नारायण आप , कृपा अपनी बरसाना
मिले मान सम्मान,मिले ससुराल सुहाना
बीते जीवन नित्य,प्रेम के पुष्प पिरोवत
अधरों पर मुस्कान,सदा हो जागत सोवत ||
सादर
Comment
अनेक-अनेक धन्यवाद आदरणीय कुशवाहा सर
बहुत सुन्दर भाव
बधाई
वाह गुरुदेव सत्य बतलाया आपने सुन्दरता और निखर गई है आभार..
धन्यवाद, अरुन अनन्तजी..
अब सोवत जागत आदि शब्दों को सोता जगता आदि कर के अपने छंद को पुनः देखिये, आप अपने प्रयास पर स्वयं दंग हो जायेंगे.
आदरणीय गुरुदेव आपकी वाह - वाही मिली मैं धन्य हुआ, गुरुदेव आपका कथन मेरे लिए सदैव प्रेरणादाई होता है, मुझे ज्ञात है की आप हम सबका भला चाहते हैं और भला सोंचते हैं ऐसे में आपकी प्रतिक्रिया को मैं अन्यथा कैसे ले सकता हूँ सर, सादर
मिले मान सम्मान,मिले ससुराल सुहाना .. वाह-वाह ! बहुत ही सुन्दर !!
एक सधा हुआ प्रयास हुआ है, अरुण जी. हृदय से बधाई कह रहा हूँ.
आपकी कलम योंही संयत और उर्वर रहे.
एक निवेदन : जागत, सोवत, पिरोवत जैसे शब्दों के प्रयोग के पीछे क्या आग्रह रहा होगा ? ये आसानी से जगता, सोता, पिरोता किये जा सकते हैं और इन शब्दों का यह रूप प्रस्तुत छंद को खड़ी हिन्दी भाषा का सुन्दर उदाहरण बनाता.
भाई, यह अवश्य है कि आंचलिक शब्दों का यदा-कदा प्रयोग हिन्दी भाषा में पदों के लालित्य तथा उसकी संप्रेषणीयता को कई गुणा बढ़ा देता है. लेकिन ऐसा प्रयोग यदि संयत न हुआ तो यही अजीब सा लगता है.
विश्वास है, मेरे कहे को आलोचना की तरह न ले कर इसे मेरी समझ मान कर स्वीकारेंगे.
शुभेच्छाएँ.
आदरणीय प्राची दीदी आपकी सराहना, स्नेह और सहयोग मुझे सदैव प्रेरित करता है, आपसे बधाई पाके ह्रदय प्रसन्न हुआ अनेक-२ धन्यावाद दी.
आदरणीय अशोक सर कुण्डलिया आपको पसंद आई प्रयास सफल हुआ हार्दिक आभार.
प्रिय अरुण जी,
अपनी पुत्री के प्रति एक पिता के स्वाभाविक मनोभावों को फ़िक्र को सुन्दर शब्द दिए हैं, हार्दिक बधाई.
अरुणजी भाई, बिटिया के लिए सुन्दर भाव पिरोती कुंडलिया के लिए बधाई स्वीकारें.
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