मोटी - मोटी चादर तानी,
फिर भी भीतर घुसकर मानी,
जाड़े की जारी मनमानी,
बूढ़े बाबा की दीवानी,
दादा - दादी, नाना - नानी,
कहते बख्शो ठंडक रानी,
रविकर किरणें आनी जानी,
पावक लगती ठंडा पानी
देखो जिद मौसम ने ठानी,
बारिश करके की शैतानी,
राहें सब जानी पहचानी,
कुहरे ने कर दी अनजानी,
बंधू बोलो मीठी वानी,
सबके मन को है ये भानी.
Comment
आभार आदरणीय अजय सर
badia rachana badhai
वीनस भाई आपको रचना पसंद आई एक रचनाकार को और क्या चाहिए शुक्रिया
आदरणीया सीमा दी सराहना हेतु हार्दिक आभार
बंधू बोलो मीठी वानी,
सबके मन को है ये भानी.
वाह वाह वाह वाह
भाई अनन्त जी,
सौरभ जी पहले ही पूछ चुके हैं नहीं तो मैं जरूर पूछता ....
ये क्या है ?
रविकर किरणें आनी जानी,
पावक लगती ठंडा पानी
बालपन का भोलापन और शरारत लिए इस प्यारी सी रचना केलिए बधाई अरुण
गलतियाँ सीखने के क्रम का ही एक अहम् हिस्सा हैं इससे परेशान मत होइए
//सर लाख कोशिशें करता हूँ फिर भी कुछ खामियां रह ही जाती हैं आपने प्रश्न किया तो अब मुझे लग रहा है ये क्या लिख दिया.//
फिर वाह-वाही का अर्थ क्या है, कितना है ?
आभार आदरणीय लक्ष्मन सर
आभार सर अनेक-2 धन्यवाद गुरुदेव आपका, आपके मुख से वाह वाह सुनने के लिए बेताब रहता हूँ ह्रदय के अन्तःस्थल से धन्यवाद सर. सर लाख कोशिशें करता हूँ फिर भी कुछ खामियां रह ही जाती हैं आपने प्रश्न किया तो अब मुझे लग रहा है ये क्या लिख दिया.
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