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बूढ़े बाबा की दीवानी

मोटी - मोटी चादर तानी,
फिर भी भीतर घुसकर मानी,

जाड़े की जारी मनमानी,
बूढ़े बाबा की दीवानी,

दादा - दादी, नाना - नानी,
कहते बख्शो ठंडक रानी,

रविकर किरणें आनी जानी,
पावक लगती ठंडा पानी

देखो जिद मौसम ने ठानी,
बारिश करके की शैतानी,

राहें सब जानी पहचानी,
कुहरे ने कर दी अनजानी,

बंधू बोलो मीठी वानी,
सबके मन को है ये भानी.

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on December 16, 2012 at 1:23pm

आभार आदरणीय अजय सर

Comment by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 2:02pm

badia rachana badhai

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 15, 2012 at 11:25am

वीनस भाई आपको रचना पसंद आई एक रचनाकार को और क्या चाहिए शुक्रिया

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 15, 2012 at 11:24am

आदरणीया सीमा दी सराहना हेतु हार्दिक आभार

Comment by वीनस केसरी on December 15, 2012 at 2:47am

बंधू बोलो मीठी वानी,
सबके मन को है ये भानी.

वाह वाह वाह वाह


भाई अनन्त जी,
सौरभ जी पहले ही पूछ चुके हैं नहीं तो मैं जरूर पूछता ....
ये क्या है ?

रविकर किरणें आनी जानी,
पावक लगती ठंडा पानी

Comment by seema agrawal on December 15, 2012 at 12:50am

बालपन का भोलापन और शरारत लिए इस प्यारी सी रचना केलिए बधाई अरुण  

गलतियाँ सीखने के क्रम का ही एक अहम् हिस्सा हैं इससे परेशान मत होइए 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 14, 2012 at 6:09pm

//सर लाख कोशिशें करता हूँ फिर भी कुछ खामियां रह ही जाती हैं आपने प्रश्न किया तो अब मुझे लग रहा है ये क्या लिख दिया.//

फिर वाह-वाही का अर्थ क्या है, कितना है ?

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 14, 2012 at 2:41pm

आभार आदरणीय लक्ष्मन सर

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 14, 2012 at 2:38pm

आभार सर अनेक-2 धन्यवाद गुरुदेव आपका, आपके मुख से वाह वाह सुनने के लिए बेताब रहता हूँ ह्रदय के अन्तःस्थल से धन्यवाद सर. सर लाख कोशिशें करता हूँ फिर भी कुछ खामियां रह ही जाती हैं आपने प्रश्न किया तो अब मुझे लग रहा है ये क्या लिख दिया.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 14, 2012 at 2:37pm
मौसम जाड़े का हो, या गर्मी का, अपना रुतबा (या अपनी मनमानी) दिखाने से कब रुके है ।
और तो और इन्द्रदेव ही नहीं रुकते । फिर भी रचना सुन्दर लगी बधाई 

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