For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चिड़िया थी उत्साह में, सम्मुख था आकाश
किन्तु स्वप्न धूसर हुए, तार-तार विश्वास !

तार-तार विश्वास,  मगर जीवन  चलता है.. .
भूमि भले  हो  रेह,  पुलक  टूसा  खिलता है ;
जुगनू-तितली-फूल, किरन हँसती सिन्दुरिया,
ले आया  नव वर्ष, चहकती फिर से चिड़िया.. .

**********

-सौरभ

Views: 1217

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2013 at 9:36pm

अन्वेषा जी, आपने रचना को पसंद किया, इस हेतु आपका आभार

Comment by Anwesha Anjushree on January 10, 2013 at 6:56pm

jeevan chalta hai...bus yahi to yathath hai....

Nav warsh ki shubkamnaye..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 5, 2013 at 9:48am

आदरणीय अम्बरीषजी, आपको भी नये साल की हार्दिक शुभकामनाएँ.! आप सपरिवार सानन्द, स्वस्थ तथा संतुष्ट रहें. विश्वास है, चिड़िया पूरे साल और तदनुसार आने वाले समय में सदा-सदा उत्साह में रहे.. .  :-))))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 5, 2013 at 9:43am

भाई नादिर खानजी, आपको भी प्रस्तुत छंद के माध्यम से नव वर्ष की अनेकानेक शुभकामनाएँ. नये साल आप सपरिवार सानन्द रहें.

Comment by Er. Ambarish Srivastava on January 5, 2013 at 1:14am

चिड़िया अब उत्साह में, छाया नया प्रकाश. 

पूरे होंगें स्वप्न सब, सम्मुख है आकाश.

सम्मुख है आकाश, नापनी हर ऊँचाई.

ठिठुराए नव वर्ष, कांपती उड़े बधाई.

कुहरा है भरपूर, परों पर जमती खड़िया.

फिर भी भरे उड़ान, चहकती प्यारी चिड़िया..

आदरणीय सौरभ जी,  हम सभी के लिए नव वर्ष २०१३ मंगलमय हो !

Comment by नादिर ख़ान on January 4, 2013 at 10:13pm

सुंदर छंद के साथ नए साल का स्वागत बहुत खूब अदरणीय सौरभ जी .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 4, 2013 at 9:38pm

सीमाजी, विषय ’मैं अब क्या कहूँ’ का नहीं बल्कि ’कैसे कहूँ’ का है. और मैं इस चर्चा को यहाँ अवश्य ही विराम देना चाहूँगा. लेकिन कुछ प्रश्न अवश्य उभर आये हैं और एक अच्छी प्रतीत होती हुई चर्चा एक गलत थ्रेड पर विस्तार पाती जा रही है.

आपको जानकारी है (सवैया पर मेरी समस्त पोस्टिंग के दौरान आपसे हुई फोन पर अपनी बातचीत) किंतु संभवतः आपको अभी याद न हो, कि, आप द्वारा उद्धृत पुस्तक जगन्नाथ प्रसाद भानु कवि रचित छंद प्रभाकर मेरे पास उपलब्ध है. इसके बावज़ूद मैंने तुक हेतु परिपाटी की बात कहते हुए ऐसा कुछ कहा है तो उसका कोई न कोई आशय रहा होगा. लेकिन बात कहीं की ओर घूम गयी दीखती है. 

दूसरे, मेरे कहे में गलत को प्रश्रय देने या जबर्दस्ती सही ठहराने की मंशा किसी को कैसे समझ में आ सकती है, या,  समझ में आ गयी ?  मैंने ’जो जैसा है, वो वैसा है’  के रूप में उदाहरण प्रस्तुत किये थे. क्या आपको कत्तई नहीं लगा कि मैं ऐसे किसी प्रयोग को गलत ही कहूँगा जहाँ छंद की तुक चंग से मिलायी गयी हो !?

मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे पोस्ट (टिप्पणियों) को, विशेषकर पिछली टिप्पणी को, आपने अवश्य ही पूरे मनोयोग से पढ़ा होगा. मैं यह भी मान कर चल रहा हूँ कि आपने इस संदर्भ में मेरे द्वारा तथ्यों को साझा होता हुआ ही समझ रही हैं, न कि आपको मैं अपनी बात को सही साबित करने की कुचेष्टा करता दीख रहा होऊँगा. ऐसा मेरा मानना है. क्या मैं अपको विश्वास में ले पाया हूँ ?

//आपने कहा अपने उत्कर्ष और स्पर्श का प्रयोग देखा है(जो शायद मेरी ही एक नव वर्ष की कविता की ओर संकेत है )//

जी नहीं, आदरणीया. एकदम नहीं.

मुझे आपके नवगीत का कोई संदर्भ मेरे दिमाग़ में नहीं था. यह एक संयोग मात्र है कि आपने अपने नवगीत में जो शब्द लिए थे वे मेरे उदाहरण से मेल खा गये. वस्तुतः मेरे दिमाग़ में ’रश्मिरथी’ या ’भारत-भारती’ थीं.

//शास्त्रीय छंदों से इतर रचनाओं में यदि phoneticsको follow किया जाये तो मैं उसे गलत नहीं मानती  ...परन्तु छंदों में मैं इसका प्रयोग ठीक नहीं समझती //

मैंने इसी थ्रेड में तुलसीदास का नाम लिया था. उनका नाम लिया जाना क्या ऐसे ही किसी संदर्भ का कारण नहीं रहा होगा ? किन्तु, सनातनी या शास्त्रीयता के बावज़ूद और को लेकर मेरी बात आधुनिक य आज के अनुसार उच्चारण (?) के तहत नकार समझ ली गयी.

सीमाजी, ओबीओ भी देश के उन गिने-चुने मंचों में से है जहाँ शास्त्रीय छंदों को आज की भाषा की मुख्यधारा में लाने का सद्-प्रयास किया जा रहा है. यह तो आप भी जानती हैं. जो इन तथ्यों को नहीं जानते उनको मैं अपने ढंग से समझा लूँगा, लेकिन आपसे इतना अवश्य ही पूछना है कि इस परिप्रेक्ष्य में आधुनिक हिन्दी में शास्त्रीय छंदों के उदाहरण कहाँ से लिये जायँ ? या, शास्त्रीय छंदों में उन्हीं तुलसी बाबा द्वारा प्रयुक्त पतंग और भृंग की तुक को मेरे जैसा व्यक्ति फिर कैसे अनुमोदित करे ? लेकिन ऐसे उदाहरण तो हैं न ? यह भृंग शब्दानुसार और उच्चारण के अनुसार भ्रंग कत्तई नहीं है जो पतंग के साथ तुक में बिना संदेह आ जाता.

//दूसरी बात मुझे जैसे ही इस गलती को इंगित कराया गया था मैंने उसे हटा लिया था (कई दिन पहले ही)//

आप किस प्रस्तुति की बात कर रही हैं, सीमाजी, यह मुझे स्पष्ट नहीं हुआ है. और, आपकी उक्त गलती (?) को किसने इंगित किया ? ऐसी कोई व्यवस्था अभी तक नहीं है जहाँ और के तुक में किसी गलती को इंगित करे. व्यक्तिगत मान्यताएँ चाहे कोई जो बना ले या गढ़ ले. व्यक्तिगत मान्यताएँ स्वीकार्य हुई तो अवश्य मान्य हो कर नियम बना करती हैं. लेकिन उसमें सर्वस्वीकार्यता की बात सर्वोपरि होती है. 

यह अवश्य है कि हम आगे से पद्य-संस्कार में स्वयं को संयमित करते हुए कुछ विशेष करना शुरु करें. लेकिन यह तो आगे की बातें हैं. अभी ऐसी प्रहारवत चर्चा क्यों करना, गोया, तुक को लेकर दो तरह के मंतव्य साहित्य क्षेत्र में चल रहे हैं ?

तुक पर एक स्वस्थ प्रतीत होती हुई चर्चा तो हुई लेकिन जिस ढंग से और जैसे अलहदे थ्रेड पर होनी थी, वह नहीं हो पायी. 

सादर

Comment by seema agrawal on January 4, 2013 at 2:33pm
सौरभ जी आपने  ने  तुक के सम्बन्ध में कहा की कोई नियम नहीं हैं यह सिर्फ परिपाटी है अतः  कुछ जानकारी जो इस सन्दर्भ में मेरे पास है आप सबके साथ शेयर करना चाहूंगी ....................

साथ ही यह भी कहूंगी कि मेरा संशय कुंडलिया छंद को लेकर नहीं है तुक को लेकर है निसंदेह कुण्डलिया उकृष्ट कोटि का है  .........

 तुक जिस पर मैंने विमर्श की बात कही है , उससे सम्बंधित जो पुस्तक मेरे पास है उसी के सन्दर्भ से (छन्दः प्रभाकर) बात कहूंगी ----

"यद्यपि यह विषय पिंगल का नहीं साहित्य संबंधी है तथापि छन्दः प्रभाकर के पाठको के लाभार्थ इसका संक्षिप्त वर्णन यहाँ इसलिए कर दिया जाता है की भाषा कविता में इसका बहुत काम पड़ता है प्रत्येक पद के चार चरण होते हैं इन चरणों के अन्त्याक्षरों को तुकांत कहते हैं .........
भाषा में तुकांत प्रिय कवियों को निम्नांकित नियमो को ध्यान में रखना समुचित है ...केवल इतना ही नहीं की चरणों के अन्त्याक्षर ही मिल जाएँ, किन्तु स्वर भी मिलना चाहिए यथा .....

तुकांत
...........उत्तम ................माध्यम.................. निकृष्ट 
.......................................................................
SS....तिहारी, बिहारी ........तुम्हारी, हमारी .........सुरारी, घनेरी 
............................................................................
l S.....मानकी, जानकी......ध्याइये, गाइए ..........देखिये,चाहिए 
..........................................................................
S l.....मोजान, सोजान......कुमार,अपार.............अहीर,हमार 
..........................................................................
l l......टेरत, हेरत ...........ध्यावत,गावत...........भोजन, दीनन
.........................................................................
l l l ....गमन,नमन..........सुमति,लसति........ ..उचित,कहत 
.........................................................................
l l l l ...बरसत, तरसत.....बिहँसत ,हुलसत........तपसिन, दरसन

अभिप्राय यह की तुकांत में अन्त्याक्षर और स्वर अवश्य मिले अंत के पूर्व का अक्षर भी जहाँ तक हो सवर्णी हो यदि यह न हो तो सामान स्वर मिलित तो अवश्य हो" ..छन्दः प्रभाकर ..द्वारा श्री जगन्नाथ प्रसाद 'भानु कवि '

बहुत दिनों से 'तुक ' से सम्बंधित चर्चा की अपेक्षा थी ..यदि और विचार भी इस सम्बन्ध में आ सकें तो अच्छा रहेगा

शास्त्रीय छंदों से इतर रचनाओं में यदि phonetics को follow किया जाये तो मैं उसे गलत नहीं मानती ... परन्तु छंदों में मैं इसका प्रयोग ठीक नहीं समझती

आपने कहा अपने उत्कर्ष और स्पर्श का प्रयोग देखा है (जो शायद मेरी ही एक नव वर्ष की कविता की ओर संकेत है ) तो पहली बात तो यह की वो कोई छन्द नहीं है... दूसरी बात मुझे जैसे ही इस गलती को इंगित कराया गया था मैंने उसे हटा लिया था (कई दिन पहले ही) आगे उसे के तुक के साथ ही प्रस्तुत करूंगी | पूर्णिमा जी का मैं स्वयं बहुत सम्मान करती हूँ परन्तु उनके इस तुक को मैं सम्मान नहीं दे सकती... अगर यह तुक दोहे के अतिरिक्त और कहीं होता तो भी और   phonetics के लिहाज़ से भी गलत हैं |

यहाँ यह बात नहीं करना चाहूंगी की किन किन रचनाकारों ने ऐसा किया है मेरी बात सिर्फ सही या गलत पर आधारित है

तुक पर एक  स्वस्थ चर्चा का माहौल बना ये देख कर संतुष्टि हुयी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 4, 2013 at 1:51pm

//यह न कहूँगा कि हम किन्हीं स्वनामधन्य या किन्हीं विशेष के कहे का मात्र अनुकरण करें.//

लगता है, आदरणीय, आप अपना नाम भर देख पाये मेरी उसी टिप्पणी में. उपरोक्त पंक्ति नहीं देख पाये. ’गलत’ को किसने ’सही’ कहा है, आदरणीय ?  वैसे, आपका मुखर होना रुचा मुझे. आप का आशय, किन्तु, अब, मुझे बिखरा हुआ लग रहा है. अच्छा हो,  हम अपनी-अपनी तार्किकता को अब इस संदर्भ में विराम दें. सारी बातें उजागर हो गयी हैं. अब सभी समझ-जान रहे होंगे कि सही क्या है और गलत कितना है.

आदरणीय, आपकी इन संदर्भों में प्रतिक्रिया ही नहीं, अब आपकी प्रस्तुति और आपके संप्रेषण की भी इस मंच को चाह है. विश्वास है कृतार्थ करेंगे. आपका स्वागत है.

आपका नव वर्ष मंगलमय हो...   जोकि इस प्रस्तुति का आशय है

Comment by rajneesh sachan on January 4, 2013 at 1:05pm

क्षमा चाहूँगा सौरभ जी की आप ने मुझसे संबोधित होकर ये बात नहीं कही है मगर फिर भी मैं अपनी टिपण्णी दे रहा हूँ ...
पूर्णिमा वर्मन जी एक बड़ी लेखिका हैं ..फिर भी अगर उन्होंने छंद और चंग को तुकान्त समझा है तो आपत्ति उठाना लाजिमी है ... कलाकार कितन अभी बाद हो कला से ऊपर कभी नहीं हो सकता .. हाँ आप गलत को गलत कह कर लिख सकते हैं मगर गलत को सही साबित करना कला नहीं है ..
ऐसी गलतियाँ बहुत बड़े बड़े शायर कवी और लेखक कभी न कभी करते रहे हैं , चूँकि इनका प्रतिशत बहुत कम होता है इस लिए ऐसे मुद्दों को उठाना ठीक नहीं होता क्यूंकि मुद्दा ज़रुरत से ज्यादा बहस का बायस हो जाता है ...
तो एक्सेप्शन को उदाहरण बना लेना ठीक नहीं ..
क्या आप बताएँगे की पूर्णिमा जी ने ऐसा कितनी बार किया है?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
14 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service