For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सप्त सिन्धु घट बह रहे, कर्ण पार स्वर सप्त.

व्योम वृहत निज व्याप्त है, सप्त वर्ण संतृप्त//१//

**************************************************

तर्षण लब्धासक्ति का, करता उर संतप्त.

तर्कण कर तर्पण करें, वृथा फिरें अभिशप्त//२//

**************************************************

मुद्रा, कीर्ति, स्वरुप भ्रम, क्षणिक करें मन तृप्त.

तप्त इष्टि परिशान्तिनी, शक्ति उर अनुज्ञप्त//३//

**************************************************

डॉ. प्राची 

Views: 955

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SUMAN MISHRA on January 24, 2013 at 6:17pm

lekhan me aapki maharat ko mera naman

Comment by राजेश 'मृदु' on January 24, 2013 at 6:13pm

बहुत ही सुंदर रचना है, आपने इसे अधिक सुगम कर दिया, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 5:51pm

आदरणीय राजेश झा जी, 

रचना की प्रस्तुति पसंद करने के लिए आभार.

// किंतु जो दिखता है वह अर्थ नहीं है, मूल भाव साझा करें तो अधिक आनन्‍द आएगा//

शब्दों के आवरण में जिन भावों को समेटा गया है, उस सामंजस्य को टटोलती टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय..

प्रथम दोहे में, मानव देह की विशिष्टता का वर्णन है, ...यथा,  पिंड में ही समस्त ब्रह्माण्ड व्याप्त है, यह बताने की कोशिश है.

दुसरे दोहे में, तृष्णा और आसक्ति से जनित संताप की बात कही गयी है जीरे आत्म विवेचना (तर्कण ) से ही तृप्त ( तर्पण) किया जा सकता है.

तथा,

तीसरे दोहे में, अतृप्त मन की तपती इच्छाओं को जो शांत कर सकती है वह शक्ति ह्रदय ही जानता है, वो बाहर नहीं अन्दर है, यह कहने की चेष्टा की है.

उम्मीद है, इतने भाव देने मात्र से यह दोहे अब आपतक अपना निहित अर्थ संप्रेषित कर सकेंगे. 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 24, 2013 at 5:47pm

//तप्तिप्सा = तप्त + ईप्सा अर्थात ज्वलंत चाहना ही है,.. . मुझे यह लिखते हुए एक संशय हुआ था कि क्या 'तप्तीप्सा' लिखना चाहिए या 'तप्तिप्सा'..//

तब यह शुद्ध शब्द तप्तेप्सा होगा, आदरणीया. 

 

संधि के ’गुण संधि’ नियमों के अनुसार या के बाद या रहे तो मिल कर या रहे तो दोनों मिल कर तथा रहे तो अर् हो जाते हैं. 

तप्त + ईप्सा = तप्तेप्सा 

आगे, गुणीजन और सुधी पाठक अवश्य परख कर कहें.  :-))

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 5:22pm

रचना पर आपके अनुमोदन हेतु आभारी हूँ सुमन मिश्रा जी, यह दोहे समझने में कठिन हैं, जानती हूँ, इसलिए क्षमा चाहती हूँ, कठिन शब्दों के अर्थ भी देने चाहिए थे, पुनः एडिट कर देती हूँ, सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 5:18pm

सादर आभार आदरणीय प्रदीप सिंह कुशवाहा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 5:17pm

राम शिरोमणि पाठक जी, आपके अनुमोदन हेतु आपकी आभारी हूँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 5:17pm

आदरणीय डॉ. अजय खरे जी,

रचनाकारिता को मान देने के लिए सादर आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 5:10pm

आदरणीय सौरभ भाई जी, 

आपके द्वारा इन दोहों पर सराहना पाना , बेहद संतोषकारी और उत्साहवर्धक है, आपकी संवेदनशील गंभीर व उदात्त सराहना हमेशा ही हम नवरचनाकारों को उत्कृष्ट लेखन के लिए प्रेरित करती है.

इन दोहों के भाव व गूढ़ अर्थ पर आपकी सहज समझ प्रणम्य है, सादर.

तप्तिप्सा = तप्त + ईप्सा अर्थात ज्वलंत चाहना ही है,

मुझे यह लिखते हुए एक संशय हुआ था कि क्या 'तप्तीप्सा' लिखना चाहिए या 'तप्तिप्सा'.....कृपया संशय दूर करें . सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 24, 2013 at 5:01pm

आदरणीय योगी सारस्वत जी, आपको यह दोहे और इनमें प्रयुक्त हिंदी शब्द पसंद आये, इस हेतु आपका आभार.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
48 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
52 minutes ago
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मिथिलेश भाई, ओबीओ की परम्परा का क्या ही सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया है आपने ! जय…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा है। सादर"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मेरे कहे को मान देने और अनुमोदन हेतु आभार। सादर"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service