For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पापा की लाडली .... मीना पाठक

मै अपने पापा 

की  लाडली 
उनकी ऊँगली 
पकड़   कर 
मचलती इठलाती 
थोड़ी ही दूर चली थी 
कि 
काल चक्र ने 
एक झटके से 
उनके हाथ से 
मेरी ऊँगली छुड़ा दी
 
अब मैं अकेली 
इस निर्जन 
बियावान जंगल 
में 

इधर - उधर 

भटकती   हूँ

एक सुरक्षा भरी 
छाँव  के  लिए 
जहाँ  बैठ  कर
मैं अपने आप को 
सुरक्षित महसूस 
करूँ 

जैसे अपने पापा 
की ऊँगली पकड़ कर 
अपने आप को 
सुरक्षित महसूस 
करती थी 

मैं 

अपने पापा की 

लाडली ।
  • मीना 

(चित्र-गूगल)

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 949

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Trivedi on March 3, 2013 at 3:25pm

पिता के लिए उसकी बेटी ही सर्वस्व होती है ..मन की गहराई में कुछ स्मृति अंकित होती है वो वात्सल्य की भी होती है... जिसे हम कभी नहीं भूल पातें और वोही हमारी ताकत बनती है

Comment by Meena Pathak on February 24, 2013 at 9:09pm

वंदना जी हृदय से आभार स्वीकार करें 

Comment by Meena Pathak on February 24, 2013 at 9:08pm

सही कहा आप ने आदरणीय अरुण श्रीवास्तवा जी ..... त्रुटियों की तरफ इंगित करने के लिए हार्दिक आभार 

Comment by Meena Pathak on February 24, 2013 at 9:05pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ जी रचना सराहने के लिए 

Comment by Vindu Babu on February 22, 2013 at 2:01pm
आज के परिवेश में तो ऐसी छांव तो अत्यन्त दुर्लभ है.
कितना दुखद है कालचक्र के साथ उंगली का छूट जाना पर इस साश्वत तथ्य को स्वीकारना ही पड़ता है.
इस पवित्र प्रेम को शत्-शत् नमन!
मार्मिक रचना के लिए बधाई आदरेया.
Comment by Arun Sri on February 22, 2013 at 1:04pm

भावनाओं की लड़ियाँ देखने में पढ़ने में बहुत ही अच्छी लगती हैं ! मुझे भी लगी ! लेकिन रचना कर्म के लिहाज से कुछ और समय कुछ और चिंतन मांग रही है कविता ! ऐसा मेरा मत है ! कृपया अन्यथा न लें ! सादर !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 22, 2013 at 12:52pm

कुछ पवित्र स्मृतियाँ मनःपटल पर अंकित हो स्थावर जाती हैं. हम आजीवन अपने उन स्मृतियों को जीते रहते हैं, वही नन्ही बिटिया बने, वही नन्हें बिटवा बने. निर्दोष भावों से भरी एक पवित्र रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया मीनाजी.

Comment by Meena Pathak on February 22, 2013 at 12:31pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी क्या कहूँ , कभी कभी शब्द नही मिलते अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए .. मेरा आभार स्वीकार करें 

Comment by Meena Pathak on February 22, 2013 at 12:25pm

सराहने के लिए सादर आभार संदीप पटेल जी 

Comment by Meena Pathak on February 22, 2013 at 12:23pm

प्रिय आरती शर्मा जी .. मेरा दिली आभार स्वीकारें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
15 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service