For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - मछलियाँ तय्यार हैं जारों में पलने के लिए !

ग़ज़ल -

ज़िन्दगी की दौड़ में आगे निकलने के लिए ,
आदमी मजबूर है खुद को बदलने के लिए ।

सिर्फ कहने के लिए अँगरेज़ भारत से गए ,
अब भी है अंग्रेजियत हमको मसलने के लिए ।

हाथ में आका के देकर नोट की सौ गड्डियां ,
आ गये संसद में कुछ बन्दर उछलने के लिए ।

गुम गयीं बापू तेरी मूल्यों की सारी टोपियाँ,
और लाठी रह गयी सच को कुचलने के लिए ।

नित गिरावट के बनाए जा रहे हैं कीर्तिमान 
सभ्यता की छातियों पर मूंग दलने के लिए ।

घर बुजुर्गों के बिना कितने वियाबां हो गए ,
अब नसीहत किस से पाएं हम संभलने के लिए ।

रात भर में फ़िक्र को उनकी न जाने क्या हुआ ,
सुब्ह हमसे आ मिले पाला बदलने के लिए ।

मुंगे मोती से भरे सागर में ऐसा क्या हुआ ?
मछलियाँ तय्यार हैं जारों में पलने के लिए ।

आने वाली पीढ़ियों के नाम पौधे रोप दें ,
शुद्ध शीतल वायु तो हो साँस चलने के लिए ।

                                - अभिनव अरुण 
                                  [14052013]

Views: 1180

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज लाली बटाला on August 30, 2013 at 11:01am
wah
Comment by Praveen Kumar Rajbhar on July 3, 2013 at 2:23pm

बहुत उम्दा .. हार्दिक शुभकामनायें 

.

Comment by Abhinav Arun on June 28, 2013 at 2:07pm

आदरणीया डॉ नूतन साहिबा और श्री केतन जी हार्दिक आभार आपका !

Comment by Ketan Parmar on June 27, 2013 at 9:22pm

UMDA KALAM ABHINAV JI BHOT HI SUNDAR KATAKSH KIYA HAI AAPNE

सिर्फ कहने के लिए अँगरेज़ भारत से गए ,
अब भी है अंग्रेजियत हमको मसलने के लिए ।

MUKAMAL SHE'R HAI

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on June 25, 2013 at 8:15pm

बहुत सुन्दर गज़ल है अभिनव जी... बधाई 

आने वाली पीढ़ियों के नाम पौधे रोप दें ,
शुद्ध शीतल वायु तो हो साँस चलने के लिए ।..........एक सुबर सन्देश के साथ 

Comment by Abhinav Arun on June 19, 2013 at 4:14pm

बहुत शुक्रिया श्री अमन जी !

Comment by Abhinav Arun on June 19, 2013 at 4:13pm

आपकी तारीफ से अभिभूत हूँ आदरणीया विजयश्री जी बहुत आभार !

Comment by Abhinav Arun on June 19, 2013 at 4:13pm

आदरणीया मंजरी जी बहुत धन्यवाद हौसला बढ़ाने के लिए !

Comment by Abhinav Arun on June 19, 2013 at 4:12pm

क्या कहने श्री अवनीश जी बहुत शुक्रिया !

Comment by Abhinav Arun on June 19, 2013 at 4:12pm

बहुत आभार आदरणीय श्री विजय साहिब ग़ज़ल पसंद आई लिखना सार्थक हुआ स्नेह बना रहे यही कामना है ..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । सर यह एक भाव…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया दोहा लेखन किया है आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। बहुत बहुत…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"अच्छे दोहें हुए, आ. सुशील सरना साहब ! लेकिन तीसरे दोहे के द्वितीय चरण को, "सागर सूना…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Er. Ambarish Srivastava's discussion तोमर छंद in the group भारतीय छंद विधान
"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"हरिगीतिका छंद विधान के अनुसार श्रीगीतिका x 4 और हरिगीतिका x 4 के अनुसार एक प्रयास कब से खड़े, हम…"
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service